सुप्रीम कोर्ट ने सहारा से एजेंटों की सूची मांगी

सुप्रीम कोर्ट ने सहारा इंडिया रीयल एस्टेट को निर्देश दिया है कि वह ओएफसीडी (ऑप्शनी फुली कनवर्टिबल डिबेंचर) स्कीम के आवेदन का फॉर्मैट और कंपनी की तरफ से धन जुटानेवाले अपने सभी मान्यताप्राप्त एजेंटों की सूची उपलब्ध कराए। सुप्रीम कोर्ट ने सहारा परिवार की इस कंपनी को यह निर्देश तब दिया जब कंपनी ने कहा कि वह निवेशकों द्वारा दिए गए गलत पतों व अन्य ब्यौरों के लिए जवाबदेह नहीं है।

प्रधान न्यायाधीश एस एच कपाडिया की अध्यक्षता वाली पीठ ने सोमवार को सहारा इंडिया रीयल एस्टेट को निर्देश दिया कि वह गुरुवार, 12 मई तक यह सारी जानकारियां सुप्रीम कोर्ट के सामने पेश कर दे। पीठ ने कहा, “याचिकाकर्ता को निर्देश दिया जाता है कि वह निवेशक फॉर्म का फॉर्मैट उपलब्ध कराए जिसमें ओएफसीडी के लिए आवेदन किया जाना था। उसे मान्यताप्राप्त एजेंटों की सूची भी देनी होगी।”

यह मामला पूंजी बाजार नियामक संस्था, सेबी की उस मांग से जुड़ा है जिसमें सेबी ने सहारा इंडिया रीयल एस्टेट कॉरपोरेशन से ओएफसीडी स्कीम के सभी निवेशकों का विवरण मांगा है। सहारा समूह ने यह विवरण इस आधार पर देने से इनकार कर लिया कि उसके निवेशकों की संख्या 50 से कम है। इसलिए ओएफसीडी स्कीम को कलेक्टिव इनवेस्ट स्कीम (सीआईएस) नहीं माना जा सकता है और इसलिए सेबी को सहारा से यह जानकारी मांगने का कोई हक नहीं बनता।

यह मामला कई महीनों से इलाहाबाद हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट के गलियारों में टहल रहा है। असल में सेबी ने 24 नवंबर 2010 को 34 पन्नों का एक आदेश जारी कर कहा था कि सहारा समूह अगले आदेश तक किसी भी रूप में पब्लिक से धन नहीं जुटा सकता। सहारा ने इसके बाद बाकायदा एक पत्र जारी कर कहा था कि सेबी के कुछ अधिकारी 9 लाख परिवारों की आजीविका से जुड़े सहारा इंडिया परिवार को बिना किसी वजह के जान-बूझकर परेशान कर रहे हैं।

सहारा ने इस आदेश के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील कर दी। हाईकोर्ट ने 13 दिसंबर को अंतरिम आदेश में सेबी के फैसले पर स्टे दे दिया। सेबी ने हाईकोर्ट के इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील कर दी जिस पर सुप्रीम कोर्ट 4 जनवरी 2011 को दिए गए फैसले में कहा कि सेबी को जांच का पूरा हक है। लेकिन कंपनियों को धन जुटाने से रोकने से उसने इनकार कर दिया। साथ ही मामले की सुनवाई कर रही मुख्य न्यायाधीश एस एच कपाडिया की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा था, “हम स्पष्ट करते हैं कि सेबी को इन कंपनियों के ओएफसीडी (ऑप्शनली फुली कनवर्टिबल डिबेंचर्स) के निवेशकों के नाम सहित सभी आवश्यक जानकारियां मांगने का हक है।”

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट में सहारा अपनी दो संबंधित कंपनियों – सहारा इंडिया रीयल एस्टेट कॉरपोरेशन लिमिटेड और सहारा हाउसिंग इनवेस्टमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड के ओएफसीडी के निवेशकों का ब्योरा देने को मजबूर हो गया। पता चला कि जिस ओएफसीडी इश्यू में निवेशकों की संख्या 50 से कम होने के आधार पर सहारा समूह सेबी के अधिकार क्षेत्र से बाहर होने का दावा करता रहा है, उसमें निवेशकों की असली संख्या 66 लाख है। यह हकीकत सामने आने के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 7 अप्रैल को सेबी के आदेश पर लगाया गया स्टे हटा लिया।

सहारा समूह हाईकोर्ट के इसी आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई है जिस पर 29 अप्रैल को कोर्ट ने कहा कि समूह ने सेबी को आवश्यक जानकारियां नहीं दी हैं। 2 मई को सुनवाई हुई तो इसे आज सोमवार तक के लिए टाल दिया गया। आज, सोमवार को प्रधान न्यायाधीश एस एच कपाडिया की पीठ ने सुनवाई के बाद सहारा समूह से नई जानकारियां मांगी है। असल में वरिष्ठ अधिवक्ता सोली सोराबजी ने सहारा की तरफ से बार-बार यही कहा कि अगर निवेशकों के पते ठिकाने गलत है तो इसके लिए कंपनी को जिम्मेदार नहीं ठहाराया जा सकता।

3 Comments

  1. सहारा इंडिया एक रजिस्टर्ड पार्टनरशिप फर्म है जो अपनी समस्त प्राइवेट व पब्लिक लिमिटेड कम्पनियों के लिए कलेक्शन एजेंट का काम करती है।
    गौर से देखिये इस के तमाम ऑफिसों में आज तक जितनी स्टेशनरी जारी हुई है उसमें सबसे ऊपर सहारा इंडिया लिखा होता है नीचे छोटे अक्षरों में पब्लिक लिमिटेड कम्पनी का नाम होता है जिस के लिए कलैक्शन की जा रही है। देश भर में सहारा की जितनी शाखाएं है वे वस्तुत: सहारा इंडिया नामक पार्टनरशिप फर्म की है। यह पार्टनरशिप फर्म अब तक सैंकड़ों लिमिटेड कम्पनियों के नाम से सार्वजनिक जमाएं ले चुकी है। दैनिक, मासिक या वार्षिक या फिक्सड डिपोजिट का अच्छा खासा अनक्लेम्ड धन जमा हो जाता है तो यह सम्पतियों व देनदारियों के हस्तांतरण, नाम परिवर्तन आदि सुविधाओं का लाभ उठा कर समय समय पर नाम परिवर्तन करती है व अच्छा खासा लाभ …

  2. यह जाँच का विषय होना चाहिए कि कैसे कोई पार्टनरशिप फर्म किसी कम्पनी की जमाओं के लिए एकल एजेण्ट होती है और देश भर में हजारों शाखाएं खोल कर धन एकत्र करती है और अपनी सुविधा से यह धन सम्बन्धित कम्पनियों में देती है ( देती है या नही क्या पता? स्टेशनरी पर लिखा है, उदाहरण के लिए: SAHARA INDIA (Agent to: Sahara India Financial Corporation) | तकनिकी तौर पर निवेशक ने सहारा इंडिया नामक पार्टनरशिप फर्म को पैसा दिया है जो कि एक लिमिटेड कम्पनी की किसी स्कीम के लिए है। निवेशक के पास इसी साझेदार फर्म की रसीदें आदि होती है। जमा से लेकर मेच्योरिटी तक सारी स्टेशनरी पार्टनर्शिप शिप फर्म की होती है। जब म्यूचुअल फण्ड के नाम पर डिपोजिट की गई थी तो अनिवार्य सदस्यता की खानापूर्ति के लिए एक रूपये के शेयर आवेदन पत्र पर हस्ताक्षर लिये गये थे। बैंकिंग इंडस्ट्री की सबसे बड़ी आमदनी तो अनक्लेम्ड विशाल राशियाँ है। ये धन राशि कम्पनियाँ स्वयं अन्य उपयोग में नही ले सकती है। पर मर्जर डीमर्जर के खेल में सम्पत्तियों के हस्तांतरण द्वारा इस राशि के स्वतंत्र उपयोग का रास्ता खुल जाता है …

  3. एजेण्टों की सूचि पर सहारा इंडिया की सफाई देखने लायक होनी चाहिए। क्यों कि सहारा ग्रुप की सभी कम्पनियों की अधिकृत एजेण्ट तो अकेली सहारा इंडिया पार्टृनरशिप फर्म है। यह फर्म देश भर में अपनी शाखाएं खोल कर एजेण्ट नियुक्त करती है (इस तरह से वस्तुत: सारे एजेण्ट सहारा इंडिया पार्टनरशिप फर्म के एजेण्ट हुए जिनका एक विस्तृत और व्यवस्थित मार्केटिंग और प्रोमोशन चैनल है)

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