झूठ और भ्रम के पांव नहीं होते। वो पल भर में उड़कर कहीं से कहीं पहुंच जाते हैं। लेकिन झूठ और भ्रम का स्रोत अगर देश की सरकार ही बन जाए तो उस देश का बेड़ा गरक होने लगता है। केंद्र सरकार का एक मंत्रालय है सांख्यिकी व कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय। इसने देश के आर्थिक व औद्योगिक विकास का दो तरह का डेटा पेश किया है। एक है नेशनल एकाउंट्स स्टैटिसटिक्स (एनएएस) और दूसरा है एनुअल सर्वेऔरऔर भी

मोदी सरकार ने चीन के साथ घृणा व प्रेम का विचित्र रिश्ता बना रखा है। सैटेलाइट तस्वीरें बताती है कि चीन लद्दाख में भारतीय सीमा के भीतर अवैध निर्माण कर रहा है। खुद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सितंबर 2020 में राज्यसभा में बताया था कि चीन ने लद्दाख में भारत की 38,000 वर्ग किलोमीटर ज़मीन पर अवैध कब्ज़ा कर रखा है। राजनीतिक रूप से चीन को भारत का नंबर-एक दुश्मन माना जाता है। लेकिन प्रधानमंत्री मोदीऔरऔर भी

मॉरगन स्टैनली रिसर्च का अनुमान है कि भारत तीन साल बाद 2027 में ही जापान व जर्मनी को पीछे छोड़ दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है। साथ ही साल भर के भीतर बीएसई सेंसेक्स 82,000 अंक के पार जा सकता है। यह एक विदेशी ब्रोकरेज़ फर्म की सदिच्छा या मार्केटिंग पैंतरा है। हो सकता है कि ऐसा हो भी जाए। लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था अंदर से तब मजबूत होगी, जब उसकी बुनियाद सत्यनिष्ठा व ईमानदारीऔरऔर भी

शेयर बाज़ार देश में राजनीतिक स्थिरता चाहता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने एनडीए सरकार में जिस तरह टीडीपी और जेडी-यू की बैसाखियों पर निर्भरता के बावजूद वित्त व कॉरपोरेट मामलात, वाणिज्य व उद्योग, रेल, राजमार्ग, पोर्ट व शिपिंग, डिफेंस, शिक्षा, आईटी और सूचना प्रसारण जैसे तमाम अहम मंत्रालय अपने पास रखे हैं, उससे बाज़ार को निरतंरता का यकीन हो गया है। इसलिए देशी-विदेशी कॉरपोरेट क्षेत्र को लगता है कि मोदी सरकार अपने तीसरेऔरऔर भी

देश में काम का और काम भर का रोज़गार तब तक नहीं पैदा होगा, जब तक मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र जमकर नहीं बढ़ता। जीडीपी बढ़ रहा है। लेकिन उसमें मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र का योगदान नहीं बढ़ रहा। मनमोहन सरकार ने 2012 में इसे 2022 तक 25% और मोदी सरकार ने 2014 में इसे 2025 तक 25% पर पहुंचाने का लक्ष्य रखा था। लेकिन यह 2012 में 16% था और अब भी 16% के आसपास अटका है। दरअसल जीडीपी में मैन्यूफैक्चरिंगऔरऔर भी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मानें तो देश में रोज़गार की कहीं कोई कमी नहीं है। परसों लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि निजी क्षेत्र ने 18 सालों का रिकॉर्ड रोज़गार पैदा किया है। लगा जैसे कि वे सरकार का कोई आंकड़ा दे रहे हों। लेकिन वे दरअसल 23 मई को आए विदेशी बैंक एचएसबीसी के परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई) के आधार पर यह दावा कर रहे थे। इस इंडेक्स में कोई आंकड़ाऔरऔर भी

विचित्र-सी हकीकत है कि अर्थव्यवस्था बढ़ रही है। भारत का जीडीपी दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेज़ गति से बढ़ रहा है। लेकिन आम लोगों की खपत घटती जा रही है। सरकार की तरफ से 31 मई 2024 को जारी अद्यतन आंकड़ों के मुताबिक इसे दर्शानेवाला निजी अंतिम खपत खर्च (पीएफसीई) वित्त वर्ष 2021-22 में जीडीपी का 58.1% हुआ करता था, जबकि 2023-24 तक घटकर 55.8% रह गया है। निजी खपत बढ़ेगी नहीं तो निजी उद्योगऔरऔर भी

मोदी सरकार ने दस साल में अवाम पर जमकर टैक्स लगाए और उसे सत्ता तंत्र की सेवा में लगाने के साथ-साथ सरकार का पूंजीगत खर्च बढ़ाने में लगा दिया। इससे जहां अंदर-बाहर सबको दिखाने के लिए सड़कों से लेकर हवाई अड्डों समेत तमाम इंफ्रास्ट्रक्चर चमकने लगा, वहीं सरकारी ठेकों से उसके करीबी लोगों व कंपनियों को अच्छा धंधा मिल गया और इनके कमीशन से इलेक्टोरल बॉन्ड के रूप में भाजपा का खजाना भरता चला गया। लेकिन सुप्रीमऔरऔर भी

शेयर बाज़ार बम-बम कर रहा है। निफ्टी और सेंसेक्स बराबर नई ऊंचाई छू रहे हैं। लेकिन यह तेज़ी तभी जारी रह सकती है जब अर्थव्यवस्था का तेज़ विकास होता रहे और यह तभी संभव है जब मोदी सरकार अब साहसी व गंभीर आर्थिक सुधार लागू करे। देश का उद्योग समुदाय, खासकर बड़ी देशी-विदेशी कंपनियां और सीआईआई व फिक्की जैसे उद्योग संगठन ऊपर-ऊपर आश्वस्त हैं कि कमज़ोर राजनीतिक बहुमत के बावजूद मोदी सरकार देश में तमाम मूलभूत आर्थिकऔरऔर भी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने युवा, महिला, गरीब व किसान की जो चार जातियां गिनाईं, उनकी सरकार इनमें से किसी की भी हितैषी नहीं है। दिक्कत यह है कि वो समूचे बिजनेस समुदाय की भी परवाह नहीं करती। उसे परवाह है तो चंद देशी-विदेशी उद्योगपतियों की, जो उन पर भरपूर चंदा और खजाना लुटाते हैं। साथ ही उनका एजेंडा संघ परिवार के तमाम अकर्मण्य लोगों को कहीं न कहीं सत्ता से जुड़ी कुर्सियों पर एडजस्ट कर देना है।औरऔर भी