मोदी सरकार ने दस साल में अवाम पर जमकर टैक्स लगाए और उसे सत्ता तंत्र की सेवा में लगाने के साथ-साथ सरकार का पूंजीगत खर्च बढ़ाने में लगा दिया। इससे जहां अंदर-बाहर सबको दिखाने के लिए सड़कों से लेकर हवाई अड्डों समेत तमाम इंफ्रास्ट्रक्चर चमकने लगा, वहीं सरकारी ठेकों से उसके करीबी लोगों व कंपनियों को अच्छा धंधा मिल गया और इनके कमीशन से इलेक्टोरल बॉन्ड के रूप में भाजपा का खजाना भरता चला गया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट अब इलेक्ट्रोरल बॉन्ड स्कीम को अवैध घोषित कर चुका है और चमकते-दमकते पथ, रेलवे स्टेशन व एयरपोर्ट धंसने लगे हैं। साफ हो गया है कि सरकार का बड़ी पूंजी निवेश भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है। अर्थव्यवस्था को तब तक स्थाई गति नहीं मिलेगी, जब तक निजी निवेश नहीं आता। अर्थव्यवस्था में समूचे निवेश को दिखानेवाला सकल स्थाई पूंजी निर्माण या ग्रॉस फिक्स्ड कैपिटल फॉर्मेशन (जीएफसीएफ) वित्त वर्ष 2019-20 में जीडीपी का 31.8% हुआ करता था। यह सरकारी पूंजी निवेश को बढाने के बावजूद बीते वित्त वर्ष 2023-24 में 33.5% तक पहुंचा है। लेकिन इसमें से आधे से ज्यादा केंद्र व राज्य सरकारों का निवेश है, जबकि बाकी रीयल एस्टेट से आया है। निजी क्षेत्र अब भी निवेश नहीं कर रहा। उनकी कंपनियों का क्षमता इस्तेमाल सालों-साल से 74-75% पर अटका पड़ा है क्योंकि देश-विदेश कहीं से मांग नहीं आ रही। अब मंगलवार की दृष्टि…
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