शेयर बाज़ार देश में राजनीतिक स्थिरता चाहता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने एनडीए सरकार में जिस तरह टीडीपी और जेडी-यू की बैसाखियों पर निर्भरता के बावजूद वित्त व कॉरपोरेट मामलात, वाणिज्य व उद्योग, रेल, राजमार्ग, पोर्ट व शिपिंग, डिफेंस, शिक्षा, आईटी और सूचना प्रसारण जैसे तमाम अहम मंत्रालय अपने पास रखे हैं, उससे बाज़ार को निरतंरता का यकीन हो गया है। इसलिए देशी-विदेशी कॉरपोरेट क्षेत्र को लगता है कि मोदी सरकार अपने तीसरे कार्यकाल में उदार आर्थिक सुधारों की नई मंज़िल हासिल कर सकती है। वैसे नीयत सही हो तो आर्थिक सुधारों की राह में गठबंधन सरकार कोई रुकावट नहीं बनती। इसका प्रमाण है 1991 में नरसिंह राव के नेतृत्व में बनी गठबंधन सरकार। तब कांग्रेस के पास लोकसभा में मात्र 232 सीटें ही थीं। लेकिन उसी ने भारत में कोटा-परमिट व इंस्पेक्टर राज को खत्म कर आर्थिक उदारवाद का आगाज़ किया था। इस बार तो भाजपा के पास उससे ज्यादा 240 सीटें हैं। इसलिए वो जो चाहे, आर्थिक सुधार लागू कर सकती है। बस शर्त यही है कि वो राजनीति में जिस तरह का छल-छद्म, झूठ का सहारा लेती है, उसे अर्थनीति से दूर रखे क्योंकि अर्थनीति में सत्यनिष्ठा व ईमानदारी ही चलती है। अब सोमवार का व्योम…
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