देश में काम का और काम भर का रोज़गार तब तक नहीं पैदा होगा, जब तक मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र जमकर नहीं बढ़ता। जीडीपी बढ़ रहा है। लेकिन उसमें मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र का योगदान नहीं बढ़ रहा। मनमोहन सरकार ने 2012 में इसे 2022 तक 25% और मोदी सरकार ने 2014 में इसे 2025 तक 25% पर पहुंचाने का लक्ष्य रखा था। लेकिन यह 2012 में 16% था और अब भी 16% के आसपास अटका है। दरअसल जीडीपी में मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र का योगदान मोदीराज के दस सालों में बढ़ने के बजाय घट गया है। वित्त वर्ष 2014-15 में यह 16.1% हुआ करता था, जबकि 2022-23 में 15.6% और 2023-24 में 15.8% रह गया। ऐसा तब, जब मोदीराज में देशी-विदेशी निवेश के लिए पलक पांवड़े बिछा दिए गए। इंफ्रास्ट्रक्चर चमाचम, कॉरपोरेट टैक्स कम और पीएलआई स्कीम जैसी सब्सिडी। लेकिन न विदेशी निवेश आया और न ही देश का निजी निवेश। मोदी सरकार में मुख्य आर्थिक सलाहकार रह चुके अरविंद सुब्रमणियन इसका एक बड़ा कारण मोदीराज में अडाणी व रिलायंस समूह को मिला प्रश्रय बताते हैं। देशी-विदेशी निवेशकों को लगता है कि वे अरबों लगाएं और अडाणी-अम्बानी सरकारी कृपा से स्पर्धा में बाजी मार ले जाएं तो उनका निवेश फंस जाएगा। दूसरे, वे मोदी सरकार की इलेक्टोरल बॉन्ड जैसी वसूली से भी डरते हैं। इसलिए निवेश करने से बराबर भाग रहे हैं। अब शुक्रवार का अभ्यास…
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