विचित्र-सी हकीकत है कि अर्थव्यवस्था बढ़ रही है। भारत का जीडीपी दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेज़ गति से बढ़ रहा है। लेकिन आम लोगों की खपत घटती जा रही है। सरकार की तरफ से 31 मई 2024 को जारी अद्यतन आंकड़ों के मुताबिक इसे दर्शानेवाला निजी अंतिम खपत खर्च (पीएफसीई) वित्त वर्ष 2021-22 में जीडीपी का 58.1% हुआ करता था, जबकि 2023-24 तक घटकर 55.8% रह गया है। निजी खपत बढ़ेगी नहीं तो निजी उद्योग क्षेत्र आखिर किसके लिए नया पूंजी निवेश करेगा क्योंकि अब भी उसकी 25-26% क्षमता बेकार पड़ेगी। क्षमता इस्तेमाल का स्तर 100% तक पहुंचेगा। उसी के बाद वह नई पूंजी लगाएगा। उदयोगों में क्षमता इस्तेमाल का स्तर तभी बढेगा, जब या तो निर्यात की मांग निकले या देश के भीतर लोगों की क्रय-शक्ति और खपत बढ़ जाए। डॉलर के मुकाबले रुपया गिरते-गिरते 83.50 तक पहुंच चुका है। मगर निर्यात बढ़ने की गुंजाइश नहीं है। वाणिज्य व उद्योग मंत्री पीयूष गोयल दावा करते हैं कि भारत का माल व सेवा निर्यात 2024-25 में 800 अरब डॉलर के पार चला जाएगा। लेकिन सवाल सेवा निर्यात का नहीं, माल निर्यात बढ़ाने का है। दूसरी तरफ देश का अवाम रोज़ी-रोजगार के भयंकर संकट से जूझ रहा है। अब बुधवार की बुद्धि…
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