जीवन बड़ा जिद्दी होता है। वो कहीं भी प्रतिकूल से प्रतिकूल हालात में भी पनप जाता है। पेड़ सूख जाए और उसकी लकड़ी सड़ने लग जाए तो उस पर भांति-भांति के कुकुरमुत्ते उग आते हैं। इसी तरह उद्यमी और उद्योग-धंधे अपने उभरने की ज़मीन खुद बना लेते हैं। कुछ न हो, तब भी वे कुछ न कुछ करने का रास्ता खोज ही निकालते हैं। अभी उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में 45 दिनों तक महाकुम्भ चला। कहने कोऔरऔर भी

उत्तर प्रदेश प्रति व्यक्ति आय में झारखंड और दुनिया के सब-सहारा अफ्रीकी देशों से भी गरीब है। वहां लोगों की कमाई से ₹3,00,000 करोड़ खर्च करवा देने से अर्थव्यवस्था में मूल्य का सृजन होगा या नाश होगा? योगी सरकार को तो ₹7500 करोड़ के खर्च पर ₹9000 करोड़ का टैक्स वगैरह मिल गया। स्थानीय लोगों की कमाई हो गई। रेलवे से लेकर एयरलाइंस ने जमकर कमाया। लेकिन आस्था में डूबे श्रद्धालुओं को क्या मिला? उन्हें कोई शक्तिऔरऔर भी

आज के दौर में दुनिया में शायद ही कहीं धर्म के आधार पर राजनीति होती है। लेकिन भारत में धर्म के आधार पर राजनीति ही नहीं हो रही, बल्कि धंधा भी हो रहा है। वो भी उस धर्म के नाम पर जो इतिहास में कहीं दर्ज ही नहीं है। उसे कभी हिंदू तो कभी सनातन कहने लगते हैं। भारत में प्रचलित जो धर्म इतना व्यापक है कि उसकी कोई एक किताब नहीं, कोई एक आराध्य देव नहीं,औरऔर भी

विश्व बैंक ने आगाह किया है कि भारत का विदेशी ऋण इस साल 2025 में 100 अरब डॉलर और बढ़ सकता है। यह सितंबर 2024 तक 711.8 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर था। ऊपर से देश का विदेशी मुद्रा भंडार 27 सितंबर 2024 को हासिल 704.89 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर से गिरते-गिरते 14 फरवरी 2025को 635.72 अरब डॉलर पर आ चुका है। अंदर की कमज़ोरी और बाहर के बोझ के दो पाटों के बीच भारतऔरऔर भी

देश की अर्थव्यवस्था के इर्द-गिर्द मोदी सरकार द्वारा दस सालों से बनाया गया तिलिस्म धीर-धीरे टूट रहा है। यह तिलिस्म अचानक चिंदी-चिंदी न बिखर जाए, इसकी हरचंद कोशिश की जा रही है। फिर भी चादर हाथ से सरकती जा रही है। विश्व बैंक ने कुछ महीनों पहले कहा था कि अभी जो रफ्तार है, उससे अमेरिका की प्रति व्यक्ति आय एक चौथाई हिस्से तक भी पहुंचने में चीन को दस साल से ज्यादा, इंडोनेशिया को लगभग 70औरऔर भी

शेयर बाज़ार के संजीदा निवेशकों को हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि वे यहां ट्रेडिंग पर दांव लगाने नहीं, बल्कि धैर्य से दौलत बनाने आए हैं। ट्रेडिंग का टेम्परामेंट अलग होता है और निवेश का अलग। दोनों का घालमेल नहीं करना चाहिए। किसी भी शेयर को अपना अंतर्निहित मूल्य हासिल करने के लिए दो-तीन साल देने ही पड़ते हैं। दूसरे, शेयर बाज़ार में दौलत सटीक व शानदार अनुमान से नहीं, बल्कि बड़ी गलतियों से बचकर समझदार फैसले करनेऔरऔर भी

मोदीराज के दस साल में सरकार का बजट जीडीपी की गति से ज्यादा बढ़ा है। मतलब कि सरकार ने अपने तंत्र और स्कीमों पर जितना खर्च किया, उसका लाभ देश की अर्थव्यवस्था को उतना नहीं मिला। इसमें भी देखना ज़रूरी है कि सरकार ने अपना बजट किस-किस मद में ज्यादा बढ़ाया है। लेकिन पहले यह जान लें कि जिन दस सालों में जीडीपी 10.02% की नॉमिनल दर से बढ़ा, उसी दौरान औसत भारतीय की कमाई 8.90% औरऔरऔर भी

भविष्य में कभी कोई मोदी सरकार के कर्मों का हिसाब करेगा, खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कथनी और करनी के अंतर का लेखा-जोखा करेगा तो उनकी राजनीतिक दक्षता, कौशल व धूर्तता की दाद देने से बच नहीं सकता कि कैसे इतने झूठ व पाप के बावजूद कोई शख्स जनमत या तंत्र को मैनिपुलेट करके तीसरी बार दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की सत्ता हासिल कर सकता है। मोदी ने आते ही ‘मिनिमम गवर्मेंट, मैक्सिमम गवर्नेंस’ का नाराऔरऔर भी

मोदी सरकार यकीनन राजनीति में येनकेन प्रकारेण सत्ता पर अजगरी गिरफ्त बनाए हुए है। लेकिन अर्थव्यवस्था में वो अंधे धृतराष्ट्र की गति को प्राप्त हो चुकी है। वो अपने मुठ्ठी भर प्रिय कॉरपोरेट समूहों के स्वार्थ में इतनी अंधी हो चुकी है कि बाकी उसे कुछ नहीं दिख रहा। अर्थव्यवस्था के सामने दो सबसे बड़ी चुनौतियां हैं उत्पादन या मैन्यूफैक्चरिंग को बढ़ाना और लोगों की क्रय-शक्ति या खपत के आधार को बढ़ाना। देश में खपत का मौजूदाऔरऔर भी

विदेशी निवेशक जितना बेच रहे हैं, देशी निवेशक उतना ही खरीद रहे हैं, फिर भी हमारा शेयर बाज़ार गिरा जा रहा है। बेचने-खरीदने का हिसाब एकदम बराबर। ज़ीरो-सम गेम। फिर भी निवेशकों को 76 लाख करोड़ रुपए का विशालकाय घाटा! याद रखें कि अर्थव्यवस्था काया है तो शेयर बाज़ार उसकी छाया। लेकिन छाया है परछाईं नहीं, जो सूरज के उठने-गिरने के साथ बदलती रहे। 27 सितंबर 2024 को निफ्टी-50 सूचकांक 24.34 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड होऔरऔर भी