सरकार फूलती गई, जनता निचुड़ती गई

मोदीराज के दस साल में सरकार का बजट जीडीपी की गति से ज्यादा बढ़ा है। मतलब कि सरकार ने अपने तंत्र और स्कीमों पर जितना खर्च किया, उसका लाभ देश की अर्थव्यवस्था को उतना नहीं मिला। इसमें भी देखना ज़रूरी है कि सरकार ने अपना बजट किस-किस मद में ज्यादा बढ़ाया है। लेकिन पहले यह जान लें कि जिन दस सालों में जीडीपी 10.02% की नॉमिनल दर से बढ़ा, उसी दौरान औसत भारतीय की कमाई 8.90% और खर्च 9.50% की दर से बढ़ा। मतलब सबसे ऊपर सरकार, उसके नीचे देश और उसके भी नीचे देश का आम आदमी। इस दौरान भले ही कॉरपोरेट क्षेत्र की बिक्री 4.70% की सीएजीआर (सालाना चक्रवृद्धि दर) से बढ़ी हो, लेकिन उसका शुद्ध लाभ 18.30% सालाना बढ़ा है। लेकिन उक्त दस सालों में शिक्षा पर बजट खर्च 5.2% और पांच किलो मुफ्त अनाज के बावजूद खाद्य सब्सिडी 5.50% की दर से ही बढ़ी। कहने को स्वास्थ्य पर खर्च 11.10% की सीएजीआर से बढ़ा, लेकिन इस खर्च की रकम शिक्षा से भी कम और सरकार के कुल खर्च का मात्र 1.7% है। फिर बजट का ज्यादा खर्च जा कहां रहा है? एक, दस सालों में सरकार का राजकोषीय घाटा या कहें तो बाज़ार उधारी हर साल 11.90% की दर से बढ़ती गई। दूसरे, सरकार का स्थापना खर्च इस दौरान 18.82% की सालाना चक्रवृद्धि दर से बढ़ा है। अब शुक्रवार का अभ्यास…

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