उद्यमी और धंधे हालात के मोहताज नहीं

जीवन बड़ा जिद्दी होता है। वो कहीं भी प्रतिकूल से प्रतिकूल हालात में भी पनप जाता है। पेड़ सूख जाए और उसकी लकड़ी सड़ने लग जाए तो उस पर भांति-भांति के कुकुरमुत्ते उग आते हैं। इसी तरह उद्यमी और उद्योग-धंधे अपने उभरने की ज़मीन खुद बना लेते हैं। कुछ न हो, तब भी वे कुछ न कुछ करने का रास्ता खोज ही निकालते हैं। अभी उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में 45 दिनों तक महाकुम्भ चला। कहने को वहां आम भारतीयों के लगभग तीन लाख करोड़ रुपए पुण्य पाने और परलोक सुधारने के नाम पर स्वाहा हो गए और आर्थिक मूल्य के सृजन के बजाय उसका विनाश ही हुआ है। हालांकि, संगम में डुबकी लगानेवाले करोडों श्रद्धालुओं को भले ही ठोस कुछ न मिला हो, लेकिन कम से कम उन्हें मन का धन मिला, मन की मुराद पूरी हो गई। साथ ही इस आयोजन से भारत में पर्यटन, खासकर धार्मिक पर्यटन की विराट संभावनाएं उजागर हुई हैं। पर्यटन उद्योग में तगड़ी प्रतिस्पर्धा है, जबरदस्त मारामारी है। होटलों से लेकर एयरलाइंस तक में धंधा खींचने की होड़ है। लेकिन पर्यटन से जुड़ी एक ऐसी कंपनी है जिसका धंधा और एकाधिकार अक्षुण्ण है। तथास्तु में आज पेश कर रहे हैं वही कंपनी…

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