देश की अर्थव्यवस्था के इर्द-गिर्द मोदी सरकार द्वारा दस सालों से बनाया गया तिलिस्म धीर-धीरे टूट रहा है। यह तिलिस्म अचानक चिंदी-चिंदी न बिखर जाए, इसकी हरचंद कोशिश की जा रही है। फिर भी चादर हाथ से सरकती जा रही है। विश्व बैंक ने कुछ महीनों पहले कहा था कि अभी जो रफ्तार है, उससे अमेरिका की प्रति व्यक्ति आय एक चौथाई हिस्से तक भी पहुंचने में चीन को दस साल से ज्यादा, इंडोनेशिया को लगभग 70 साल और भारत को 75 साल लग जाएंगे। इधर हाल ही में विश्व बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री इंद्रमीत गिल ने कह दिया कि मौजूदा साल 2025 भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए चुनौती बनकर आया है। यहां जिस तरह वाहनों से लेकर स्मार्टफोन और टेलिविजन सेट की ब्रिकी घट रही है और खाद्य मुद्रास्फीति थम नहीं रही, उसमे उपभोक्ता उत्पाद बनानेवाली कंपनियों के धंधे से लेकर शेयर तक सिमटते दिख रहे हैं। यूनिलीवर और आईटीसी जैसी एफएमसीजी कंपनियों की हालत खराब है। देश का मध्य-वर्ग सिकुड़ रहा है। ऊपर से भारत पर चढ़ा विदेशी ऋण सितंबर 2024 तक 711.8 अरब डॉलर के ऐतिहासिक शिखर पर जा पहुंचा, जबकि जुलाई 2024 तक यह 682.2 अरब डॉलर हुआ करता था। अब सोमवार का व्योम…
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