विदेशी निवेशक जितना बेच रहे हैं, देशी निवेशक उतना ही खरीद रहे हैं, फिर भी हमारा शेयर बाज़ार गिरा जा रहा है। बेचने-खरीदने का हिसाब एकदम बराबर। ज़ीरो-सम गेम। फिर भी निवेशकों को 76 लाख करोड़ रुपए का विशालकाय घाटा! याद रखें कि अर्थव्यवस्था काया है तो शेयर बाज़ार उसकी छाया। लेकिन छाया है परछाईं नहीं, जो सूरज के उठने-गिरने के साथ बदलती रहे। 27 सितंबर 2024 को निफ्टी-50 सूचकांक 24.34 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा था। 14 फरवरी 2025 को यह अनुपात 20.42 और कल 20.44 रहा है। इस समय दुनिया का सबसे महंगा शेयर बाज़ार अमेरिका का है, जहां का प्रमुख S&P-500 सूचकांक 27.40 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। ऑस्ट्रेलिया और जापान के शेयर बाज़ार भी हम से महंगे हैं। फिर भी क्यों विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) भारतीय शेयर बाज़ार से लगातार भागे जा रहे हैं? अब तो उन्हें रुक जाना चाहिए क्योंकि निफ्टी-50 का पी/ई अनुपात 20 के ऐतिहासिक औसत के करीब पहुंच गया है। एफपीआई भावों की सीमा बांधकर बेचते तो बाज़ार करेक्शन के बाद थम जाता। लेकिन वे तो भावों की परवाह किए बिना बेच रहे हैं। मतलब साफ है कि उन्हें अब भारत की विकासगाथा पर यकीन नहीं रहा। अब मंगलवार की दृष्टि…
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