मोदी सरकार यकीनन राजनीति में येनकेन प्रकारेण सत्ता पर अजगरी गिरफ्त बनाए हुए है। लेकिन अर्थव्यवस्था में वो अंधे धृतराष्ट्र की गति को प्राप्त हो चुकी है। वो अपने मुठ्ठी भर प्रिय कॉरपोरेट समूहों के स्वार्थ में इतनी अंधी हो चुकी है कि बाकी उसे कुछ नहीं दिख रहा। अर्थव्यवस्था के सामने दो सबसे बड़ी चुनौतियां हैं उत्पादन या मैन्यूफैक्चरिंग को बढ़ाना और लोगों की क्रय-शक्ति या खपत के आधार को बढ़ाना। देश में खपत का मौजूदा आधार मनोरंजन और आस्था जैसे अनुत्पादक मदों में लुट रहा है, जबकि उत्पादन में मेक-इन इंडिया और पीएलआई (पोडक्शन लिंक्ड इन्सेंटिव) स्कीम के भरपूर मजे चीन व इज़राइल की कंपनियां लूट रही हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के दौर में भारतीयों की खपत सारा डेटा वीसा, मास्टरकार्ड, गूगल, फेसबुक, वॉट्स-अप व इंस्टाग्राम जैसी अमेरिकी कंपनियों के पास हैं, जबकि उत्पादन का सारा डेटा चीनी कंपनियों के पास हैं। ऊपर से हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन चुनौतियों व समस्याओं को समझने और कुछ साथर्क करने के बजाय एआई को एस्पिरेशनल इंडिया बताने की जुमलेबाज़ी से बाज नहीं आ रहे। इस अंधेरगर्दी में ऐसा कोई आर्थिक सुधार नहीं हो रहा जिससे विकास को ज्यादा श्रम-सघन बनाकर रोज़गार सृजन को बढ़ावा दिया जाए। इससे उलट सरकार सीमित हाथों में देशी-विदेशी पूंजी की सघनता को बढ़ाने की नीतियों पर ही चलती जा रही है। अब बुधवार की बुद्धि…
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