कोई इंसान सुखी हो, इसका मतलब कतई यह नहीं कि वह खुश भी हो। खुशी तो एक अनुभूति है जिसका पारा ऊपर-नीचे होता रहता है। खुश रहना एक कला है, जिसकी आदत बड़े जतन से डालनी पड़ती है।और भीऔर भी

हम घरों के कोने-अँतरों में छोटी-बड़ी तमाम चीजों को बचाकर रखने के आदी हो गए हैं। सोचते हैं कि क्या पता, कभी काम आ जाए, जबकि सोचना चाहिए कि क्या इसके बिना हमारा काम चल सकता है।और भीऔर भी

यूं तो किसी भी आदत तो जड़ से मिटा देना ही अच्छा। लेकिन न मिटे तो उसे मोड़ देना चाहिए। जैसे, हम आदतन भिखारी को पैसा देते हैं। ये एक-दो रुपए हमें नई किताब खरीदने के लिए ज्ञान-पात्र में डाल देने चाहिए।और भीऔर भी