पिछले हफ्ते बाजार के बराबर बढ़ने के बाद हमने अंदेशा जताया था कि रोलओवर के चलते इस हफ्ते बाजार में उतार-चढ़ाव का दौर चलेगा। सोमवार को बाजार लहरों की तरह उठता-गिरता रहा। मंगलवार को उसके गिरने-उठने का ग्राफ किसी माला के आकार का रहा। हालांकि दोनों ही दिन सुबह की गिरावट शाम तक आते-आते संभल गई। इस उथल-पुथल से खास फर्क नहीं पड़ता। इसकी वजह रोलओवर है और बड़े रोलओवर होने अभी बाकी हैं। निफ्टी 5810-5820 केऔरऔर भी

रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) में आई करीब तीन फीसदी की गिरावट ने बाजार को थोड़ा दबाकर रख दिया। फिर भी चुनिंदा स्टॉक्स, खासकर बी ग्रुप के स्टॉक्स में बढ़त जारी है। गौर करने की बात यह है कि पिछले छह महीनों में दो चीजें हुई हैं। एक, जो प्रवर्तक ऊंचे मूल्यों पर भी कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी बेचने को तैयार नहीं थे, उन्हें अब समझ में आ गया है कि फंड जुटाने का सबसे सस्ता व अच्छा तरीकाऔरऔर भी

अण्णा ने लाखों लोगों के सक्रिय समर्थन से जंग जीत ली है। ऐसा सिर्फ इसलिए मुमकिन हुआ क्योंकि मुद्रास्फीति के बोझ तले दबा आम आदमी भ्रष्टाचार से भयंकर रूप से त्रस्त है। लगता है जैसे, आम आदमी को भ्रष्टाचार के तंदूर में डालकर नेता व अफसर अपनी रोटियां सेंक रहे हों। दरअसल, भ्रष्टाचार मुद्रास्फीति की जड़ है। जितना ज्यादा भ्रष्टाचार, उतना ज्यादा काला धन, उतनी ही ज्यादा सरकारी अफसर की कमाई और इसके चलते आम आदमी परऔरऔर भी

पूरा देश भ्रष्टाचार के खिलाफ गोलबंद। दस करोड़ एसएमएस। देश के करीब 80 शहरों से 44 लाख ट्वीट। पुरानी पीढ़ी से लेकर नई पीढ़ी तक। जगह-जगह हजारों लोग हाथों में मोमबत्तियां लिए अण्णा हजारे के साथ आ खड़े हुए। सरकार को इस जन-उभार के आगे झुकना पड़ा। इसी के साथ एक और बात सामने आई है कि हम जिन्हें राष्ट्रवाद के साथ जोड़कर देखते हैं, हमारे वे क्रिकेट खिलाड़ी केवल उस बीसीसीआई के लिए खेलते हैं जिसकेऔरऔर भी

हम पहले से ही थोड़े करेक्शन के लिए तैयार थे और लांग व शॉर्ट सौदों में संतुलन बनाकर चल रहे थे। यह भी एक कला है जिसे निवेशकों व ट्रेडरों को जरूर जानना-समझना चाहिए। बड़े करेक्शन को होने देने में मूलतः कुछ भी गलत नहीं है। कच्चे तेल के दाम, ब्याज दरों के बढ़ने की आशंका, मुद्रास्फीति और कंपनियों के मुनाफे से जुड़ी चिंताओं के चलते ट्रेडरों ने पहले से शॉर्ट पोजिशन बना रखी है और जबऔरऔर भी

बाजार के लोगों में डर बना हुआ है कि इसमें कभी भी करेक्शन आ सकता है, गिरावट आ सकती है। जब तक लोगों में यह डर कायम है और बहुत सारे शॉर्ट सौदे हुए पड़े हैं, तब तक बड़ा करेक्शन आने की कोई गुंजाइश नहीं है। हां, थोड़ा-बहुत ऊपर नीचे हो ही सकता है। फिर भी सावधानी बरतनी जरूरी है। हेजिंग जरूरी है यानी एक जगह का घाटा दूसरी जगह के भरने का इंतजाम जरूरी है। यकीनऔरऔर भी

आज का हाल भी कल जैसा रहा। जहां सेंसेक्स और निफ्टी क्रमशः 0.38 और 0.31 फीसदी गिर गए, वहीं बीएसई के मिड कैप सूचकांक में 0.47 फीसदी और स्मॉल कैप सूचकांक में 0.78 फीसदी बढ़त दर्ज की गई है। इसी तरह एनएसई का सीएनएक्स मिड कैप सूचकांक 0.43 फीसदी और निफ्टी मिड कैप-50 0.55 फीसदी बढ़ा है। नोट करने के बात यह भी है कि सीएनएक्स रीयल्टी सूचकांक में आज 3.34 फीसदी बढ़त दर्ज की गई है।औरऔर भी

सेंसेक्स और निफ्टी की बात करें तो बाजार सुबह से दोपहर तक गिरता रहा, लेकिन अंत आते-आते संभल गया। फिर भी बीएसई के मिड कैप और स्मॉल कैप सूचकांक क्रमशः 0.79 फीसदी और 1.38 फीसदी बढ़ गए। एक बात ध्यान रखें कि बाजार में करेक्शन यानी गिरावट आए या न आए, कंपनी विशेष के बारे में कोई नई सूचना लानेवाली खबर उसके शेयरों के भावों को बढ़ा देगी। हम अबन ऑफशोर, बीजीआर एनर्जी, रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल), रिलायंसऔरऔर भी

भारत ने विश्व कप जीतकर एक देश के रूप में खुद को दुनिया में सबसे ऊपर साबित कर दिया। देश में ऐसा जबरदस्त जोश व जुनून छा गया कि पहली बार फाइनल मैच पर लगा सट्टा 20,000 करोड़ रुपए से भी ऊपर चला गया और मैच के टिकट ब्लैक में 1.75 लाख रुपए में बिके। अगर भारत न जीतता तो देश भर में भयंकर मायूसी छा जाती। लेकिन इस जीत का दुखद पहलू यह है कि हमऔरऔर भी

यह कोई अप्रैल फूल की बात नहीं है। बाजार जब 5200 पर था, तभी मुझे यकीन था कि यह 6000 की तरफ बढ़ेगा और इसने ऐसा कर दिखाया। मार्च काफी घटनाप्रधान महीना रहा, जब बजट और जापान ने बाजार को घेरे रखा। बजट ने माहौल बनाया तो जापान की आपदा ने शॉर्ट के सौदागरों को खेलने का मौका दे दिया। लेकिन बाजार जब अपना रुख पलटकर 200 दिनों के मूविंग औसत (डीएमए) के पार चला गया तोऔरऔर भी