पूरा देश भ्रष्टाचार के खिलाफ गोलबंद। दस करोड़ एसएमएस। देश के करीब 80 शहरों से 44 लाख ट्वीट। पुरानी पीढ़ी से लेकर नई पीढ़ी तक। जगह-जगह हजारों लोग हाथों में मोमबत्तियां लिए अण्णा हजारे के साथ आ खड़े हुए। सरकार को इस जन-उभार के आगे झुकना पड़ा। इसी के साथ एक और बात सामने आई है कि हम जिन्हें राष्ट्रवाद के साथ जोड़कर देखते हैं, हमारे वे क्रिकेट खिलाड़ी केवल उस बीसीसीआई के लिए खेलते हैं जिसके लिए क्रिकेट एक धंधा भर है। ये सब देश या समाज के लिए नहीं, अपने लिए नोट बना रहे हैं। ऊपर से करोड़ों कमानेवाले इन खिलाड़ियों को राज्य सरकारें शिक्षा तक के बजट से निकालकर करोड़ों का उपहार दे रही हैं। इन्हें मुफ्त में प्लॉट और फ्लैट दिए जा रहे हैं।
शेयर बाजार में भी ऐसा ही गंदा खेल चल रहा है। आम नागरिक गंदे धंधे के इस गंदे खेल में पड़ना नहीं चाहता क्योंकि उसे लगता है कि उसकी जेब से क्या जा रहा है। लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से उसके वाजिब हिस्से पर डाला जा रहा डाका उसे कभी दिखता नहीं। असल में हमें ऐसे अण्णा हजारे और मेधा पाटकर की जरूरत है जो शेयरधारकों के हितों के लिए संघर्ष कर सकें। उन सच्चे निवेशकों के लिए, रिटेल निवेशकों के लिए लड़ सकें जिन्हें बाजार में चालबाजों द्वारा ठगा जा रहा है। ऐसा आईपीओ की लिस्टिंग लेकर शेयर बाजार के हर हिस्से में धड़ल्ले से हो रहा है। आज भावों में धांधली और सर्कुलर ट्रेडिंग क्रिकेट जैसा ही बड़ा बिजनेस बन चुकी है।
आईसीएआई (इंस्टीट्यूट ऑफ चार्डर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया) ने हाल ही में सुझाव दिया है कि अगर आईपीओ में तय किया मूल्य निर्धारित मानकों से ज्यादा हो तो इश्यू के मर्चेंट बैंकरों व कंपनी के प्रवर्तकों को भी पब्लिक के साथ अतिरिक्त शेयरों में निवेश करवाना चाहिए ताकि पब्लिक पर डाला जानेवाला बोझ उन्हें भी उठाना पड़े।
भारतीय पूंजी बाजार आकार व आंकड़ों के लिहाज से भले ही दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा पूंजी बाजार बन गया है। लेकिन हकीकत में ये आंकड़े बड़े खोखले व बेरहम नजर आते हैं क्योंकि भारतीय निवेशक लगातार गरीब से गरीबतर होता जा रहा है। हमारे पास उन कदमों की पूरी ब्योरेवार फेहरिस्त है जिन पर फौरन अमल किए जाने की जरूरत है। लेकिन जब पूंजी बाजार से जुड़े लोगों की इनमें दिलचस्पी नहीं हैं, खुद बाजार नियामक संस्था, सेबी महज जुबानी जमाखर्च किए जा रही है, तब इसे इन्हें दिखाने-बताने का क्या फायदा?
संत कबीर का दोहा याद आता है कि रे गंधि, मतिअंध तू, अतर दिखावत काहि। कर अंजुरि को आचमन मीठो कहत सराहि। ये लोग को इत्र को चखकर बोलेंगे कि बड़ा मीठा है!!! ऐसे में हम भी अक्सर निराश हो जाते हैं। सोचते हैं कि चीजों को अपनी अति पर पहुंचने दो। घुटन इतनी बढ़ जाने दो कि निवेशक अपने आप ही सारे बंधनों को तोड़कर धमाका कर दें। तभी मुद्दों को सार्थक जमीन व स्वर मिल पाएगा। हालांकि लगता है कि हमारी यह सोच भी बहुत तर्कसंगत नहीं है और कुछ-कुछ फासीवाद टाइप की है। विस्फोट में सब बिखर जाता है। निर्माण की प्रक्रिया तो पहले ही शुरू करनी पड़ती है।
खैर, निफ्टी 5200 से 5900 तक का लंबा सफर तय कर चुका है। लोगों को लगा कि यह बस एक महीने का मामला है और वे जमकर शॉर्ट हो गए। जबकि इसी दौरान तमाम स्टॉक्स बहुत तेजी से बढ़ गए। इस फासले को पूरा करने के लिए ट्रेडरों को स्टॉक्स में लांग होना पड़ा। लेकिन निफ्टी वे शॉर्ट ही बने रहे। शॉर्ट का मतलब शेयरों के भावों में गिरावट की उम्मीद के साथ उन्हें बेच देना है. जबकि लांग का मतलब बढ़ने की उम्मीद के साथ उन्हें अभी खरीद लेना है। इस तरह के सौदे आमतौर पर डेरिवेटिव सेगमेंट यानी फ्यूचर एंड ऑप्शंस में चलते हैं।
हालांकि अब भी ब्याज दरों में वृद्धि, मुद्रास्फीति, कच्चे तेल के अंतरराष्ट्रीय दाम और कंपनियों के मुनाफे पर चोट की आशंका बनी हुई है। इसके चलते निवेशकों व ट्रेडरों की धारणा नकारात्मक हो गई है जिसके चलते उन्होंने और ज्यादा शॉर्ट सौदे कर लिए हैं। लेकिन जब तक निवेशक व ट्रेडर निफ्टी में शॉर्ट हैं, तब तक यह नहीं गिरेगा। हमारा मानना है कि निफ्टी जल्दी ही 6000 को पार कर जाएगा। हो सकता है कि 6200 तक भी चला जाएगा। लेकिन तब इसमें करेक्शन का आना तय है।
सोना, चांदी और कच्चे तेल में आग लगी हुई है। अमेरिका की आर्थिक हालत में सुधार हो रहा है। वहां ब्याज दरें बढ़ाने की तैयारी है। बराक ओबामा अगले साल के राष्ट्रपति चुनावों में फिर से उतर रहे हैं जिसका मतलब है कि तब तक अमेरिकी बाजार बढ़कर 16,000 अंक तक चला जाएगा।
फिलहाल बी ग्रुप के ज्यादातर शेयरों में 25 फीसदी तक बढ़त हो चुकी है। हमें उम्मीद है कि अगले दो सालों में इनमें 100 से 500 फीसदी तक बढ़त हो सकती है क्योंकि इनकी शेयरधारिता का स्वरूप काफी अहम हो चला है। जो निवेशक गिरावट के दौरान इन्हें बेच चुके हैं, उनके लिए बढ़े दामों पर नए सिरे से एंट्री करना बड़ा कठिन हो गया है।