रिजर्व बैंक देश के बैंकिंग सिस्टम में पर्याप्त तरलता सुनिश्चित करने के लिए सारे उपाय करेगा। रिजर्व बैंक के गवर्नर दुव्वरि सुब्बाराव ने यह दावा किया है। लेकिन उन्होंने नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) में कटौती की संभावना के बारे में कोई भी टिप्पणी करने के इनकार कर दिया। सुब्बाराव गुरुवार को कोलकाता में रिजर्व बैंक के निदेशक बोर्ड की बैठक के बाद मीडिया से बात कर रहे थे। उन्होंने कहा, “सिस्टम में या कुछ बैंकों के साथऔरऔर भी

वित्त मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने सफाई दी है कि सरकार रुपए को गिरने से बचाने के लिए विदेशी मुद्रा की आवाजाही पर कोई नियंत्रण नहीं लगाने जा रही है। इससे पहले इस तरह की खबरें आई थीं कि रिजर्व बैंक के गवर्नर डी सुब्बाराव की अध्यक्षता में वित्तीय स्थायित्व विकास परिषद (एफएसडीसी) की गुरुवार, 8 दिसंबर को होनेवाली बैठक में भारतीय कंपनियों के विदेशी निवेश और बाहरी ऋणों की पूर्व अदायगी पर बंदिश लगाई जाऔरऔर भी

देश की औद्योगिक रफ्तार में आती कमी और डॉलर के मुकाबले रुपए की कमजोरी के बीच विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने भारतीय शेयर बाजार के बैरोमीटर, बीएसई-सेसेक्स की 30 में से 19 कंपनियों में सितंबर 2011 की तिमाही के दौरान अपना निवेश घटा है। जिन कंपनियों में एफआईआई का निवेश स्तर कम हुआ है, उनमें रिलायंस इंडस्ट्रीज, टाटा मोटर्स और भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) शामिल हैं। बीएसई व एनएसई पर उपलब्ध ताजा जानकारी के अनुसार जून सेऔरऔर भी

पेट्रोलियम मंत्री एस जयपाल रेड्डी ने संकेत दिया है कि सरकार तुरंत डीजल या रसोई गैस के दाम नहीं बढ़ाएगी, भले ही रुपए में कमजोरी से आयातित कच्चे तेल की लागत बढ़ रही है। उन्होंने गुरुवार को संसद भवन में संवाददाताओं से बातचीत के दौरान कहा, ‘‘रुपए में कमजोरी ने स्वाभाविक रूप से अप्रत्याशित दिक्कत पैदा कर दी है। इससे वित्त वर्ष 2011-12 में तेल कंपनियों की अंडर रिकवरी 1.32 लाख करोड़ रुपए रहेगी।’’ उन्होंने कहा, ‘‘इसऔरऔर भी

बाजार दो साल के न्यूनतम स्तर को छूकर लौटा है। इस मुकाम पर निवेशकों के विश्वास को फिर से जमाना एकदम टेढ़ी खीर है। बल्कि अभी का जो माहौल है, उसमें हालात के और बदतर होते जाने के ही आसार हैं। सरकार के बयान और कदम बेअसर हैं क्योंकि वे खोखले हैं और उनकी दिशा भी सही नहीं है। आपूर्ति को संभालकर एमसीएक्स में हस्तक्षेप के जरिए कमोडिटी के भाव थामे जा सकते थे। वहीं, करेंसी डेरिवेटिव्सऔरऔर भी

दोपहर साढ़े बारह बजे तक सेंसेक्स जब दो सालों के न्यूनतम स्तर 15478.69 और निफ्टी 4640.95 तक जा गिरा तो हर तरफ कोहराम मच गया। गनीमत है कि उसके बाद स्थिति संभलने लगी और सेंसेक्स अंततः 2.27 फीसदी की गिरावट के साथ 15,699.97 और निफ्टी 2.20 फीसदी की गिरावट के साथ 4706.45 पर बंद हुआ। असल में सेंसेक्स आज सुबह खुला ही करीब-करीब 100 अंक गिरकर, जबकि इतनी कमजोर शुरुआत की कोई ठोस वजह नहीं थी। इसनेऔरऔर भी

भारतीय कंपनियों ने इस कैलेंडर वर्ष 2011 में अब तक करीब 30 अरब डॉलर विदेशी वाणिज्यिक उधार (ईसीबी) से जुटाए हैं। भारतीय मुद्रा में यह कर्ज लगभग 1.50 लाख करोड़ रुपए का बैठता है। लेकिन जनवरी से अब तक डॉलर के सापेक्ष रुपए के 18 फीसदी कमजोर हो जाने से कंपनियों पर इस कर्ज का बोझ 5.40 अरब डॉलर या 27,000 करोड़ रुपए बढ़ गया है। ब्रोकरेज फर्म एसएमसी ग्लोबल सिक्यूरिटीज के रिसर्च प्रमुख व रणनीतिकार जगन्नाधमऔरऔर भी

देश का बढ़ता व्यापार घाटा, विदेशी पूंजी की कम आवक, नतीजतन चालू खाते का बढ़ जाना, ऊपर से पेट्रोलियम तेल रिफाइनिंग व आयात पर निर्भर दूसरी कंपनियों में डॉलर खरीदने के लिए मची मारीमारी ने मंगलवार को डॉलर के सामने रुपए को ऐतिहासिक कमजोरी पर पहुंचा दिया। सुबह-सुबह एक डॉलर 52.73 रुपए का हो गया। रिजर्व बैंक की संदर्भ दर भी 52.70रुपए प्रति डॉलर रखी गई थी। हालांकि शाम तक रुपए की विनिमय दर में थोड़ा सुधारऔरऔर भी

कोई भी कह सकता है कि लगातार नौ सत्रों तक घाटा खाने के बाद सेंसेक्स का उठना लाजिमी था और इतनी ऊंचाई से गिरने के बाद तो मरी हुई बिल्ली भी थोड़ा उछलती है। लेकिन मैं ऐसा नहीं मानता। जब कुछ भी सामान्य नहीं रहा तो बेचारे निवेशक गफलत में पड़ गए कि सब कुछ बाहर से आ रही बुरी खबरों का नतीजा है। तभी अचानक उन्हें अहसास होता है कि ऐसा नहीं था तो झटका लगनाऔरऔर भी

रुपए में कमजोरी का सिलसिला जारी है। डॉलर के सापेक्ष उसकी विनियम दर सोमवार को दोपहर तीन बजे के आसपास 1/52 रुपए से नीचे चली गई। 5 मार्च 2009 के बाद पहली बार रुपया इतना नीचे गिरा है। शाम पांच बजे तक एमसीएक्स एसएक्स में एक डॉलर की दर 52.27 रुपए हो गई, वहीं दिसंबर फ्यूचर्स का भाव 52.50 रुपए रहा है। अगर बाजार की मानें तो जून 2012 तक डॉलर/रुपए की विनिमय दर 53.20 रुपए होऔरऔर भी