रामभरोसे रुपया, वित्त मंत्री ने कहा, वजह बाहरी, हस्तक्षेप करना बेकार

देश का बढ़ता व्यापार घाटा, विदेशी पूंजी की कम आवक, नतीजतन चालू खाते का बढ़ जाना, ऊपर से पेट्रोलियम तेल रिफाइनिंग व आयात पर निर्भर दूसरी कंपनियों में डॉलर खरीदने के लिए मची मारीमारी ने मंगलवार को डॉलर के सामने रुपए को ऐतिहासिक कमजोरी पर पहुंचा दिया। सुबह-सुबह एक डॉलर 52.73 रुपए का हो गया। रिजर्व बैंक की संदर्भ दर भी 52.70रुपए प्रति डॉलर रखी गई थी। हालांकि शाम तक रुपए की विनिमय दर में थोड़ा सुधार आया और अंतर-बैंक मुद्रा बाजार में डॉलर की विनिमय दर 52.29/30 रुपए पर बंद हुई।

रुपया डॉलर के सापेक्ष इस साल जनवरी से लेकर अब तक 18 फीसदी कमजोर हो चुका है। 1 जनवरी 2011 को 44.67 रुपए का एक डॉलर मिल रहा था, वहीं अभी रिजर्व बैंक की संदर्भ दर 50.70 रुपए प्रति डॉलर है। सबसे विचित्र बात है कि हमारे वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने रुपए में बराबर आ रही इस गिरावट पर हाथ खड़े कर दिए हैं। मंगलवार को राजधानी दिल्ली में संवाददाताओं से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि रुपए में गिरावट विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) के भारतीय पूंजी बाजार से निकलने और अंतरराष्ट्रीय वजहों से आई है। इसलिए विदेशी मुद्रा बाजार में रिजर्व बैंक का हस्तक्षेप रुपए को गिरने से नहीं रोक सकता। वैसे, पूंजी बाजार नियामक संस्था, सेबी के अद्यन आंकड़ों के अनुसार एफआईआई ने साल 2011 में अब तक इक्विटी व ऋण प्रपत्रों से निकलने के बजाय शुद्ध रूप से 490.10 करोड़ डॉलर का निवेश किया है।

उधर, वाणिज्य सचिव राहुल खुल्लर ने निर्यातकों व निवेशकों को ढाढस बंधाया है कि उन्हें घबराने की ज़रूरत नहीं है। उनका भी कहना है कि रूपए के अवमूल्यन का कारण अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संकट है। लेकिन उन्होंने यह साफ नहीं किया कि सारी दुनिया में भारतीय रुपया तीन सबसे ज्यादा चोट खानेवाली मुद्राओं में क्यों शुमार है? तुर्की की लीरा इस साल 17 फीसदी और केन्या की शिलिंग 15 फीसदी गिरी है। सवाल उठता है कि अगर अंततराष्ट्रीय वित्तीय संकट ही असली कारण है तो समूचे एशिया में सबसे खराब हालत रुपए की क्यों है? न हमारे वित्त मंत्री और न ही हमारे वाणिज्य सचिव इसका सीधा जवाब देना चाहते हैं।

आगरा में एक समारोह के दौरान वित्त सचिव आर एस गुजराल ने कहा कि रिजर्व बैंक और सरकार हालात पर नजर रखे हुए हैं। रुपए की चाल का निर्धारण बाजार ताकतों द्वारा किया जाता है। इसलिए जब भी अत्यधिक उतार-चढ़ाव होगा, रिजर्व बैंक जरूरी कार्रवाई करेगा। रुपए की कितनी विनिमय दर को आप चिंताजनक मानेंगे, इस पर गुजराल ने कहा कि रुपए में अत्यधिक गिरावट से हमारा आयात बिल प्रभावित होगा। कच्चे तेल के कीमत में आई मामूली गिरावट हम रुपए में आए अवमूल्यन की वजह से खो देंगे। एक बैरल कच्चे तेल की कीमत करीब 107 डॉलर है। निश्चित रूप से उर्वरक और दूसरे चीजों का हमारा आयात बिल प्रभावित होगा।

वहीं, हैदराबाद में आयोजित एक समारोह के दौरान रिजर्व बैंक के गवर्नर डी सुब्बाराव ने भी रुपए में आई तीखी गिरावट के लिए बाहरी कारकों को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने सोसायटी फॉर एग्रीकल्चरल मार्केटिंग के सालाना सम्मेलन के दौरान संवाददताओं के बातचीत में कहा कि पिछले कुछ हफ्तों, खासकर बीते 3-4 दिनों में हमने जो विनिमय दर देखी है, वह वैश्विक कारणों के चलते बनी है। रुपया किस दिशा में जाता है, इसका निर्धारण बाहरी हालात, खासकर यूरोप के ऋण संकट के उलझाव या समाधान से होगा। उन्होंने कहा कि अभी तक रिजर्व बैंक ने तय नहीं किया है कि उसे विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप करना है या नहीं।

उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा, “निश्चित रूप से रिजर्व बैंक हस्तक्षेप कर सकता है। रिजर्व बैंक हस्तक्षेप तब करेगा जब ऐसा करना उसकी नीतियों के अनुरूप होगा। लेकिन यह कदम ठीकठीक कब उठाया जाएगा, इसके बारे में फिलहाल मैं नहीं बता सकता।”

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