30 अरब डॉलर का ईसीबी बना कंपनियों का फंदा

भारतीय कंपनियों ने इस कैलेंडर वर्ष 2011 में अब तक करीब 30 अरब डॉलर विदेशी वाणिज्यिक उधार (ईसीबी) से जुटाए हैं। भारतीय मुद्रा में यह कर्ज लगभग 1.50 लाख करोड़ रुपए का बैठता है। लेकिन जनवरी से अब तक डॉलर के सापेक्ष रुपए के 18 फीसदी कमजोर हो जाने से कंपनियों पर इस कर्ज का बोझ 5.40 अरब डॉलर या 27,000 करोड़ रुपए बढ़ गया है।

ब्रोकरेज फर्म एसएमसी ग्लोबल सिक्यूरिटीज के रिसर्च प्रमुख व रणनीतिकार जगन्नाधम तुनगुंटला का कहना है कि हर तिमाही कंपनियों को अपने वित्तीय खातों में विदेशी मुद्रा पर मार्क टू मार्केट घाटा दिखाना जरूरी है। इसलिए रुपए के अवमूल्यन के पड़ा 27,000 करोड़ रुपए का बोझ कंपनियों की दिसंबर तिमाही के नतीजों को चौपट कर सकता है। बता दें कि जनवरी में रुपए की विनिमय दर 44.67 रुपए प्रति डॉलर थी, जो अब 52.70 रुपए हो चुकी है।

असल में ईसीबी पर ब्याज की सालाना दर आमतौर पर 5-7 फीसदी रहती है, जबकि कंपनियों को भारतीय बैंकों से 12-14 फीसदी सालाना ब्याज पर रुपए में कर्ज मिलता है। इसलिए तमाम कंपनियों ने भारतीय बैंकों के बजाय ईसीबी के जरिए कर्ज जुटाना बेहतर समझा क्योंकि उन्हें कहीं से भी अंदेशा नहीं था कि रुपए को इतनी तगड़ी चपत लग जाएगी।

लेकिन रुपए के 18 फीसदी गिर जाने से ईसीबी पर वास्तविक ब्याज की दर उनके लिए अब 23 से 25 फीसदी पड़ रही है। जिन कंपनियों ने मुद्रा के उतार-चढ़ाव से बचने के लिए हेजिंग कर रखी है, वे तो काफी हद तक बच जाएंगी। लेकिन बाकियों की हालत उनकी ‘समझदारी’ ने बिगाड़ दी है।

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