बाजार दो साल के न्यूनतम स्तर को छूकर लौटा है। इस मुकाम पर निवेशकों के विश्वास को फिर से जमाना एकदम टेढ़ी खीर है। बल्कि अभी का जो माहौल है, उसमें हालात के और बदतर होते जाने के ही आसार हैं। सरकार के बयान और कदम बेअसर हैं क्योंकि वे खोखले हैं और उनकी दिशा भी सही नहीं है। आपूर्ति को संभालकर एमसीएक्स में हस्तक्षेप के जरिए कमोडिटी के भाव थामे जा सकते थे। वहीं, करेंसी डेरिवेटिव्स में फिजिकल डिलीवरी की व्यवस्था अपनाकर चंद बड़े खिलाड़ियों के प्रभुत्व को तोड़ना और रुपए पर रिजर्व बैंक का नियंत्रण कायम करना संभव था। लेकिन चोट कहीं और, मरहम कहीं और लगाने का सिलसिला चल रहा है।
अनिवासी भारतीयों की बाहरी जमा (एनआरई) पर ब्याज दरें बढ़ाने से भी बैंकिंग सेक्टर को मदद नहीं मिलने जा रही। हां, इससे देश में डॉलर का प्रवाह थोड़ा जरूर बढ़ सकता है। अगर सरकार के फैसले विदेशी सलाहकारों की सलाह पर उठाए जा रहे हैं तो यकीनन इनका औचित्य समझा जा सकता है। इनसे विदेशी निवेशकों को मदद मिलेगी क्योंकि वे भारतीय बैंकिंग स्टॉक्स में बड़े पैमाने पर शॉर्ट हो चुके हैं और उन्हें ऐसा कुछ अलग से चाहिए था ताकि वे निचले स्तरों पर अपने सौदे कवर कर सकें।
खैर, अगर आज बाजार कल से नीचे पहुंच कर बंद होता तो माना जा सकता था कि टेक्निकल रूप से वह कमजोर ज़ोन में चला गया है और तब चार्टवालों के मुताबिक निफ्टी 4000 तक गिर सकता था। माहौल उन्हीं के पक्ष में लग रहा था तो उनकी धारणा पर सवाल उठाने की हिम्मत नहीं थी। लेकिन आखिरी एक घंटे में हकीकत ने उन्हें ठेंगा दिखा दिया। बाजार ने ऐसी पलटी मारी कि निफ्टी 1.06 फीसदी बढ़कर 4756.45 पर जाकर बंद हुआ। सेंसेक्स भी 1.01 फीसदी बढ़कर 15,858.49 पर बंद हुआ है।
कल से डेरिवेटिव सौदों (फ्यूचर्स व ऑप्शंस) का नया सेटलमेंट शुरू हो रहा है। मेरा सुझाव तो यही है कि आम निवेशकों को फ्यूचर्स से दूर रहना चाहिए क्योंकि फ्यूचर्स में खेलने का मतलब अपनी कब्र खोदना है। जब तक डेरिवेटिव सौदों में फिजिकल सेटलमेंट की व्यवस्था लागू नहीं होती, तब तक उस्तादों को आपको मारने का लाइसेंस मिला रहेगा और आप चाहकर भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकते। यह साफ दिखाता है कि हम बाजार चलानेवालों से सामने कितने निरीह हैं। फिर भी आम निवेशकों की हिफाजत का दावा करनेवाले हमारे एक्सचेंज कुछ भी नहीं करना चाहते।
वित्त मंत्रालय को भी शेयर बाजार के निवेशकों की ज्यादा परवाह नहीं है क्योंकि केवल 1.5 फीसदी भारतीय ही शेयर बाजार में सक्रिय हैं जो किसी भी बड़े वोट बैंक का हिस्सा नहीं हो सकते। हालांकि यह भी सच है कि शेयर बाजार की मौत अर्थव्यवस्था की कमजोरी का सीधा नतीजा है और अर्थव्यवस्था की कमजोरी अगले चुनावों में सरकार पर बहुत भारी पड़ेगी।
यह एक दुष्चक्र है। भले ही 1.5 फीसदी भारतीय ही शेयरों में निवेश करते हों, लेकिन देश की 40 फीसदी आबादी परोक्ष रूप से शेयर बाजार से जुड़ी हुई है। आप मानें या न माने, शेयर बाजार अर्थव्यवस्था का बैरोमीटर था, है और आगे भी बना रहेगा।
खैर, बुरे दिनों का यह दौर भी बीत जाएगा और अच्छे दिन लौटकर आएंगे। इसलिए आशा का दामन न छोड़ें। हालांकि मैं इतना जरूर कहूंगा कि कम से कम डेरिवेटिव सौदों पर न दांव लगाएं, न दांव बढ़ाएं। अन्यथा आपकी जेब में छेद नहीं, बड़ी सुरंग हो जाएगी। जब भी संभव हो, डिलीवरी आधारित खरीद करें और हालात के अपने पक्ष में मुड़ने का इंतजार करें। ऐसा होकर रहेगा क्योंकि जब हर तरफ अंधेरा छाया रहता है, हाथ को हाथ नहीं सूझता, तभी अचानक कहीं से रौशनी की किरण नुमूदार हो जाती है। भरोसा रखें। हालात का रुख जरूर अपनी तरफ होगा।
प्रेम एक ऐसी जादू की छड़ी है जो इंसान की बड़ी से बड़ी तमाम समस्याओं का समाधान पलक झपकते ही निकाल देती है।
(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है। लेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं पड़ना चाहता। इसलिए अनाम है। वह अंदर की बातें आपके सामने रखता है। लेकिन उसमें बड़बोलापन हो सकता है। आपके निवेश फैसलों के लिए अर्थकाम किसी भी हाल में जिम्मेदार नहीं होगा। यह मूलत: सीएनआई रिसर्च का कॉलम है, जिसे हम यहां आपकी शिक्षा के लिए पेश कर रहे हैं)