कितना अजीब है! संगठन या संस्था में लोगों को लालच देकर रोकना मुश्किल है। पर उनके सामने चुनौतियां पेश कर दो तो वे बड़ी आसानी से रुक जाते हैं। उनके निजी विकास की संभावनाओं के द्वार खोल दो, वे कहीं और जाने का नाम ही नहीं लेंगे।और भीऔर भी

व्यक्तियों के मिलने से समुदाय या सम्प्रदाय बनते हैं, जबकि राष्ट्र का निर्माण संस्थाओं के बिना नहीं हो सकता है। समुदाय या सम्प्रदाय तात्कालिक हितों पर आधारित होते हैं, जबकि संस्थाओं के पीछे दीर्घकालिक हित काम करते हैं।और भीऔर भी

सत्ता की विश्वसनीयता हमेशा संदिग्ध होती है। इसलिए वह हर विरोधी आवाज़ को अविश्सनीय बनाने में जुटी रहती है। उसकी कोशिश रहती है कि हर व्यक्ति, हर संस्था को अविश्वसनीय बना दो ताकि लोग इसे आम मानकर हताश हो जाएं।और भीऔर भी

जीतने के भाव के साथ ही जीने का आनंद है। बाकी नहीं तो हारे को हरिनाम है। यह भाव आप किसी संस्था का हिस्सा बनकर हासिल कर लेते हैं या अपने दम पर लड़ते हुए नई प्रासंगिक संस्थाएं बनाकर।और भीऔर भी

एक व्यक्ति विशाल संस्था से कैसे लड़ सकता है? अकेला चना भाड़ कैसे फोड़ सकता है? लेकिन अंधेरे को चीरने के लिए एक दीया ही काफी है। रावण की लंका जलाने के लिए एक हनुमान ही काफी होता है।और भीऔर भी

अगर कोई व्यक्ति, संस्था या समाज समस्याओं से जूझने के बजाय उनके साथ रहना सीख लेता है तो उसका विकास अवरुद्ध हो जाता है। समस्याएं तो दरवाजे हैं जिन्हें खोलने पर नई राहें निकलती हैं।और भीऔर भी

सिर्फ अपने या अपनों के लिए कमाने से नौकरी होती है, बरक्कत नहीं होती। बरक्कत तब होती है, दौलत तब बरसती है, जब आप किसी सामाजिक संगठन, संस्था या कंपनी के लिए कमाते हो।और भीऔर भी

सब धान बाइस पसेरी तौलनेवाले पंसारी की दुकान चला सकते हैं, नया नहीं ला सकते। समाज, संस्था या कहीं भी बदलाव लाना हो तो पहले उसके आज को बड़ी बारीकी से गहना-समझना पड़ता है।और भीऔर भी