संजय तिवारी आर्थिक मसलों पर काम करते समय भारत में मुख्य रूप से दो तरह की मानसिकता काम करती है। एक, वणिक मानसिकता और दूसरी किसान मानसिकता। उधार, लेन-देन और पूंजी से पूंजी का खेल वणिक मानसिकता है। लेकिन यह भी कोई स्वच्छंद व्यवस्था नहीं होती। इसका बाजार से ज्यादा सामाजिक सरोकारों से लेना-देना होता है। जिस भारतीय बैंकिग प्रणाली को आज हमारे वित्तीय प्रबंधक एक मजबूत व्यवस्था घोषित कर रहे हैं उसके मूल में यही सोचऔरऔर भी