भारत सरकार का प्राथमिक घाटा चालू वित्त वर्ष 2011-12 में अप्रैल से सितंबर तक के पहले छह महीनों में 1,58,311 करोड़ रुपए रहा है, जबकि पूरे वित्त वर्ष के 12 महीनों के लिए बजट में इसका निर्धारित लक्ष्य 1,44,831 करोड़ रुपए का है। इस तरह साल के छह महीने में ही देश का प्राथमिक घाटा पूरे साल के लिए निर्धारित लक्ष्य का 109.3 फीसदी हो चुका है। यह इसलिए भी चिंता की बात है क्योंकि पिछले वित्त वर्ष 2010-11 की पहली छमाही में यह घाटा पूरे साल के बजट अनुमान का 23 फीसदी ही था। वित्त मंत्रालय की तरफ से सार्वजनिक ऋण प्रबंधन पर जारी ताजा तिमाही रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है।
बता दें कि प्राथमिक घाटा (Primary Deficit) ही वो असली पैमाना है जो दिखाता है कि सरकार अपने आय-व्यय को कैसे संभाल रही है। इसकी गणना सरकार के राजकोषीय घाटे (Fiscal Deficit) में से ब्याज अदायगी को निकालकर की जाती है। जैसे, 28 फरवरी 2011 को पेश बजट में वित्त वर्ष 2011-12 के लिए राजकोषीय घाटे का बजट अनुमान 4,12,817 करोड़ रुपए का है। इस साल पिछले ऋणों पर ब्याज अदायगी का अनुमान 2,67,986 करोड़ रुपए है। आप देख सकते हैं कि ब्याज अदायगी को राजकोषीय घाटे में से निकाल दें तो प्राथमिक घाटे का बजट अनुमान 1,44,831 करोड़ रुपए बनता है।
सभी अर्थशास्त्री और नीति नियामक राजकोषीय घाटे पर केंद्रित करते हैं, खासकर इस पर कि वो सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का कितना प्रतिशत है। जैसे, इस बार के लिए राजकोषीय घाटे का बजट अनुमान जीडीपी के 4.6 फीसदी का है। राजकोषीय घाटा मोटे तौर पर सरकार के कुल खर्च और कुल आय का वह अंतर है जो वो बाजार से उधार लेकर पूरा करती है। जैसे, इस साल का कुल खर्च 12,57,729 करोड़ रुपए है, जबकि कुल आय 8,44,912 करोड़ रुपए की है। बाकी 4,12,817 करोड़ रुपए वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने उधार व अन्य देयताओं से हासिल करने का लक्ष्य रखा है। लेकिन यह रकम सरकार की बाजार उधारी से थोड़ी भिन्न होती है। जैसे, 2011-12 के लिए सरकार की सकल बाजार उधारी का बजट अनुमान 4,17,128 करोड़ रुपए और शुद्ध बाजार उधारी का बजट अनुमान 3,43,000 करोड़ रुपए का है।
लेकिन सरकार के असली वित्त प्रबंधन को उसका प्राथमिक घाटा दिखाता है क्योंकि ब्याज अदायगी तो पुराने ऋणों का भार है जिसे पिछले कर्मों का पाप भी कह सकते हैं। वित्त मंत्रालय की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक अप्रैल-सितंबर 2011 तक सरकार के कर और कर-भिन्न राजस्व का संग्रह पिछले साल की बनिस्बत काफी कम रहा है। कुल कर-संग्रह बजट अनुमान का 39.6 फीसदी ही है, जबकि पिछले साल यह 43.4 फीसदी था। प्रत्यक्ष करों में कॉरपोरेट टैक्स का संग्रह मात्र 3.4 फीसदी बढ़ा है, जबकि बजट में इसके 21.5 फीसदी बढ़ने का अनुमान लगाया गया है। इसका कारण कंपनियों को दावे के अनुरूप बड़ी मात्रा में किया गए रिफंड है। व्यक्तिगत टैक्स की स्थिति थोड़ी बेहतर है। इसका संग्रह 17.3 फीसदी बढ़ा है, जबकि बढ़त का बजट अनुमान 16.2 फीसदी का है।
पहली छमाही के दौरान परोक्ष करों में कस्टम ड्यूटी का संग्रह 22.5 फीसदी और सर्विस टैक्स का संग्रह 37.5 फीसदी बढ़ा है, जबकि बजट में इनके बढ़ने का लक्ष्य क्रमशः 15.1 फीसदी और 18.2 फीसदी रखा गया है। लेकिन एक्साइज ड्यूटी से मिला टैक्स केवल 13.9 फीसदी बढ़ा है, जबकि बजट अनुमान 19.2 फीसदी का है। फिर, कर-भिन्न राजस्व के रूप में सरकार को न तो पिछले वर्ष की तरह 3जी स्पेक्ट्रम की नीलामी जैसे कोई भारी भरकम धनराशि मिल पाई और न ही 40,000 करोड़ रुपए का विनिवेश लक्ष्य पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन के एफपीओ से मिले 1144 करोड़ रुपए से आगे बढ़ पाया।
यूं तो पहली छमाही में सरकार का खर्च बजट अनुमान का 47.6 फीसदी ही है, जबकि पिछले साल की पहली छमाही में यह 48.5 फीसदी था। लेकिन राजस्व संग्रह में कमी के कारण इस बार पहली छमाही में सरकार का राजस्व घाटा बजट अनुमान का 72.2 फीसदी और राजकोषीय घाटा बजट अनुमान का 68 फीसदी हो गया है, जबकि पिछले की समान अवधि में यह क्रमशः 27.1 फीसदी और 34.9 फीसदी ही था।