एस्कोर्ट्स लिमिटेड बनी तो 1960 में। लेकिन इसके बनने की शुरुआत देश को आजादी मिलने से तीन साल पहले 1944 में ही हो गई थी। कंपनी ट्रैक्टर व अन्य कृषि उपकरण ही नहीं, ऑटो कंपोनेंट और रेलवे व कंस्ट्रक्शन के काम के उपकरण भी बनाती है। उसने बाकायदा अलग से अपनी पूर्ण स्वामित्व वाली सब्सिडियरी एस्कोर्ट्स कंस्ट्रक्शन इक्विपमेंट नाम से बना रखी है। कंपनी ने कल ही वित्त वर्ष 2010-11 के सालाना नतीजे घोषित किए हैं। आप कहेंगे, इतनी देरी से!! देरी नहीं, समय से क्योंकि एस्कोर्ट्स का वित्त वर्ष अक्टूबर से सितंबर तक का है। अमूमन ऐसा तो चीनी मिलों के साथ होता है क्योंकि पेराई का सीजन अक्टूबर में शुरू होता है। पर एस्कोर्ट्स का चीनी से कोई वास्ता तो है नहीं!
खैर, सितंबर 2011 में समाप्त वित्त वर्ष 2010-11 में एस्कोर्ट्स की अकेले की बिक्री 16.91 फीसदी बढ़कर 3210.15 करोड़ और सब्सिडियरी वगैरह को मिलाकर समेकित बिक्री 21.84 बढ़कर 4050.33 करोड़ रुपए हो गई। लेकिन अकेले का शुद्ध लाभ 12.69 फीसदी घटकर 120.09 करोड़ रुपए और समेकित शुद्ध लाभ 4.25 फीसदी घटकर 126.39 करोड़ रुपए पर आ गया। कंपनी के चेयरमैन व प्रबंध निदेशक राजन नंदा का कहना है कि लाभ के घटने की मुख्य वजह यह है कि हमारे खर्च 20 फीसदी बढ़ गए। इसमें भी कच्चे माल की लागत 24 फीसदी बढ़ गई। नंदा के शब्दों में, “एस्कोर्ट्स के सालाना नतीजे महंगे कच्चे माल, बढ़े हुए पेट्रोलियम मूल्य व ऊंची ब्याज दरों से घिरी मुद्रास्फीति से भरी अर्थव्यवस्था के सीधे असर को दिखाते हैं।”
लेकिन निवेशकों को ढाढस बंधाते हुए वे बताते हैं कि कंपनी आगे आक्रामक मार्केटिंग रणनीति, नए उत्पादों के लांच, हाल में बढ़ाए गए मूल्य और उत्पादन लागत घटाने के जारी प्रयासों से न केवल मुद्रास्फीति के प्रभावों को कम कर पाएगी, बल्कि अपनी लाभप्रदता भी बढ़ाएगी। कंपनी ने अपने शेयरधारकों को प्रसन्न करने के लिए दस रुपए अंकित मूल्य के शेयर पर 1.50 रुपए (15 फीसदी) का लाभांश भी घोषित किया है। गौरतलब है कि कंपनी की 102.30 करोड़ रुपए की इक्विटी का 27.57 फीसदी हिस्सा ही प्रवर्तकों के पास है, जबकि बाकी 72.43 फीसदी पब्लिक के पास है। इसलिए लाभांश का बड़ा फायदा पब्लिक को मिलता है। वैसे प्रवर्तकों ने अपने शेयरों का 19.23 फीसदी (कंपनी की कुल इक्विटी का 5.30 फीसदी) हिस्सा गिरवी रखा हुआ है।
अहम सवाल यही कि एस्कोर्ट्स के स्टॉक से क्या उम्मीद की जाए? क्या यह हमें साल दो साल में फायदा करा सकता है? कंपनी का शेयर ठीक एक साल पहले आज ही तारीख 29 नवंबर 2010 को 212.75 रुपए पर था जो उसका 52 हफ्तों का उच्चतम स्तर है। लेकिन करीब तीन महीने पहले 19 अगस्त 2011 को उसने 63.60 रुपए पर 52 हफ्तों की तलहटी बनाई है। पिछले तीन साल की बात करें तो दिसंबर 2008 में 30.65 रुपए तक भी जा चुका है।
फिलहाल इसका शेयर कल मामूली बढ़त के साथ बीएसई (कोड – 500495) में 78.05 रुपए और एनएसई (कोड – ESCORTS) में 77.90 रुपए पर बंद हुआ है। इसी महीने 9 नवंबर को यह ऊपर में 92.45 रुपए तक जा चुका है। लेकिन बाद के 12 कारोबारी सत्रों में 15.6 फीसदी गिर गया। आगे कहां जाएगा? सीएनआई रिसर्च की मानें तो यह मल्टीबैगर यानी कई गुना बढ़ने की क्षमता वाला स्टॉक है और साल भर में 240 रुपए तक जा सकता है। लेकिन जरा संभलकर क्योंकि सीएनआई ने महीने भर पहले कहा था कि यह एक महीने में 80 रुपए से 150 रुपए तक पहुंच जाएगा। मगर यह तो जहां का तहां अटका पड़ा है।
ये सारे अनुमान असल में दिल को तसल्ली देने के लिए होते हैं। फंडामेंटल्स की बात करें तो एस्कोर्ट्स का समेकित ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) अभी 15.49 रुपए है। इस तरह उसका शेयर मात्र 5.04 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। पिछले दो सालों के दौरान यह 27.27 तक के पी/ई पर ट्रेड हो चुका है। कंपनी की प्रति शेयर बुक वैल्यू 158.75 रुपए है जो उसके बाजार भाव से लगभग दो गुनी है। इसलिए इसमें बढ़ने की गुंजाइश तो भरपूर दिख रही है। कम से कम इसे इस समय बेचना तो नहीं ही चाहिए। कम से कम दो साल की सोच के साथ इसे खरीद लेना चाहिए। बीच में जब भी कभी 25 से 40 फीसदी रिटर्न मिल रहा हो, बेचकर निकल लेना चाहिए। कारण, भरोसा नहीं है कि एक्सकोर्ट्स अपने धंधे में बढ़ रही होड़ से किस हद तक टक्कर ले पाएगी। इसमें औरों जैसी गतिशीलता नहीं नजर आती। बाकी आपकी मर्जी।
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