रिटेल में एफडीआई की लॉबीइंग के सामने पवार का विकेट भी गिरा

जैसे-जैसे दलबल के साथ अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के भारत आने की तारीख करीब आती जा रही है, सरकार के तमाम मंत्री व आला अधिकारी मल्टी ब्रांड रिटेल में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की वकालत करते नजर आ रहे हैं। इसकी खास वजह यह है कि अमेरिका का भारी दबाव इस बात पर है कि भारत मल्टी ब्रांड रिटेल को विदेशी पूंजी निवेश के लिए खोल दे। प्रमुख अमेरिकी स्टोर व दुनिया के सबसे बड़े रिटेलर वॉल मार्ट के चीफ एक्जीक्यूटिव माइक ड्यूक माहौल बनाने के लिए पहले ही भारत पहुंच चुके हैं।

आज, बुधवार को कृषि मंत्री शरद पवार ने कहा कि वे मल्टी ब्रांड रिटेल में विदेशी निवेश लाने के बारे में राज्य सरकारों से बात करेंगे और उन्हें इसके लिए तैयार करवाएंगे। इससे पहले कल योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह आहलूवालिया और खाद्य प्रसंस्करण मंत्री सुबोधकांत सहाय ने रिटेल में एफडीआई लाने की वकालत की थी। आहलूवालिया ने जोर देकर कहा था कि उन्हें मल्टी ब्रांड रिटेल में एफडीआई की इजाजत न देने की कोई वजह नहीं समझ में आती। सहाय ने दावा किया था कि इससे देश के किसानों का भला होगा। इससे पहले वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा ही नहीं, वित्त मंत्रालय के शीर्ष अधिकारी मल्टी ब्रांड रिटेल में कम से कम 51 फीसदी विदेशी निवेश की इजाजात देने की बात कर चुके हैं। वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा ने तो कई महीने पहले अमेरिका यात्रा से लौटने के फौरन बाद इस मसले पर विचार-पत्र जारी करवा दिया था।

बता दें कि असंगठित क्षेत्र की बिखरी-बिखरी किराना दुकानों और कृषि के बाद के सबसे ज्यादा रोजगार देनेवाले क्षेत्र को बचाने के लिए मल्टी ब्रांड रिटेल में विदेशी निवेश की इजाजत देने का भारी राजनीतिक विरोध हो रहा है। इस विरोध की अगुआई लेफ्ट पार्टियां और बीजेपी कर रही है। इसके चलते अभी तक सरकार ने मल्टी ब्रांड रिटेल में विदेशी निवेश की पूरी मनाही कर रखी है। सिंगल ब्रांड रिटेल में 51 फीसदी एफडीआई की इजाजत है, जबकि कैश एंड कैरी या थोक रिटेल व्यापार में 100 फीसदी एफडीआई की अनुमति मिली हुई है। लेकिन देशी-विदेशी लॉबी पिछले कई सालों से मल्टी ब्रांड रिटेल में विदेशी निवेश की अनुमति दिलवाने में लगी हुई है। उसके पीछे खास जोर वॉल मार्ट और केयरफोर जैसी विश्वस्तरीय कंपनियों का है। ये कंपनियां नीति बदले जाने की उम्मीद में पहले ही भारत के कैश एंड कैरी व्यापार में पैर डाल चुकी हैं।

कहा जा रहा है कि रिटेल में विदेशी निवेश के आने से सप्लाई चेन बेहतर हो जाएगी। 40 फीसदी फल व सब्जियों की बरबादी रुक जाएगी। जहां बिचौलियों के खत्म होने से किसानों को अपनी उपज का अच्छा दाम मिलेगा, वहीं सस्ती खरीद के चलते रिटेल स्टोर उपभोक्ताओं को भी सस्ते में चीजें उपलब्ध करवा पाएंगे। इधर मुद्रास्फीति बढ़ी हुई है तो इसका हवाला देते हुए कहा जा रहा है कि विदेशी निवेश के आने से मुद्रास्फीति पर भी लगाम लग सकती है।

बता दें कि विदेशी कंपनियों का खास आकर्षण इसलिए है क्योंकि भारत चीन व जापान के बाद एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है और यहां के मध्य वर्ग की क्रय क्षमता विश्व स्तर की है। भारत में मल्टी ब्रांड रिटेल बाजार का अनुमानित आकार 45,000 करोड़ डॉलर का है।

2 Comments

  1. ये सभी मंत्री भ्रष्ट और बेईमान हैं इनकी वकालत देश और समाज को बर्बादी की ओर ही ले जाएगी…बिदेशी निवेश की इस देश को जरूरत नहीं है बल्कि ये देश दुसरे देशों में निवेश कर सकने योग्य है ..इन भ्रष्ट मंत्रियों की वजह से इस देश और समाज का ये हाल है …वालमार्ट की इस देश के लोगों को जरूरत नहीं है ..इस देश को इमानदार उद्योगपतियों की जरूरत है जो इंसानियत और सामाजिक सरोकार को अपने व्यवसाय में ईमानदारी से लागू करे…

  2. JAISA KI HAMARE MITRA JAI KUMAR JHA JI KA KAHANA HAI, BAHUT HAD TAK THIK LAGATA HAI, LEKIN HAMARA KAHANA HAI KI KYON TATA STEEL AUR RELIANCE GROUP JAISI DIGGAJ COMPANIES, SARKARI KAMO KI SAHBHAGITA SE PICHHE HAT RAHI HAIN.

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