मंगल को अमंगल के आसार, महंगाई थमी नहीं, रिजर्व बैंक बढ़ाएगा ब्याज

पिछले 18 महीनों में रिजर्व बैंक को 12 बार मौका मिला है और बारहों बार उसने ब्याज दरें बढ़ा दीं। मकसद था मुद्रास्फीति को काबू में लाना। लेकिन मुद्रास्फीति तो काबू में आने या पीछे मुड़ने का नाम ही नहीं ले रही। शुक्रवार को सरकार की तरफ से घोषित आंकड़ों के मुताबिक थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित सकल मुद्रास्फीति की दर सितंबर महीने में 9.72 फीसदी रही है।

यह जानकारों के अनुमान 9.70 फीसदी के एकदम करीब है और बीते अगस्त महीने के अनंतिम आंकड़े 9.78 फीसदी से थोड़ी कम है। लेकिन दहाई के इतना करीब है कि रिजर्व बैंक इतनी बार नाकाम होने के बाद इस पर काबू पाने के लिए एक बार फिर ब्याज दरों में 0.25 फीसदी की बढोतरी कर सकता है। मंगलवार, 25 अक्टूबर को वह मौद्रिक नीति की दूसरी त्रैमासिक समीक्षा पेश करनेवाला है और उम्मीद यही है कि वह रेपो को दर 8.25 फीसदी से बढ़ाकर 8.50 फीसदी और रिवर्स रेपो दर को 7.25 फीसदी से बढ़ाकर 7.50 फीसदी कर देगा। अगर वह न बढ़ाए तो इसे करिश्मा ही माना जाएगा।

असल में इधर सरकार से लेकर उद्योग जगत तक ने औद्योगिक विकास दर घटने व निवेश की कमजोर मांग का दोष ऊंची ब्याज दरों को बताया है जिसके लिए सीधे-सीधे रिजर्व बैंक जिम्मेदार है। लेकिन रिजर्व बैंक सख्त मौद्रिक नीति के पुराने रवैए पर बदस्तूर कायम है। शुक्रवार को सितंबर के आंकड़े जारी होने के बाद रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर के सी चक्रवर्ती ने कहा, “अगर आप मुद्रास्फीति को नीचे लाना चाहते हैं तो आपको टेक्नोलॉजी के जरिए उत्पादन लागत घटानी होगी। फिलहाल अगर मुद्रास्फीति 9-10 फीसदी के ऊंचे स्तर पर बनी हुई है तो हमें तात्कालिक रूप से कुछ तो करना ही पड़ेगा।”

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (पीएमईएसी) के चेयरमैन और रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर सी रंगराजन ने भी एक निजी चैनल से बातचीत में कहा कि मुद्रास्फीति में गिरावट के ऐसे कोई संकेत नहीं हैं जिससे रिजर्व बैंक सख्त मौद्रिक नीति में बदलाव लाने की दिशा में आगे बढ़े। उन्होंने कहा कि यह सुकूनदेह स्थिति नहीं है। मौद्रिक नीति में बदलाव के लिए मुद्रास्फीति में कमी आनी चाहिए और निश्चित गिरावट के स्पष्ट संकेत होने चाहिए। लेकिन ऐसे कोई संकेत नहीं मिले हैं।

रंगराजन के लिए सितंबर महीने में सकल मुद्रास्फीति का दहाई अंक के करीब होना चिंता का विषय है। मुद्रास्फीति में पिछले महीने की तुलना में गिरावट के बावजूद खाद्य उत्पाद, ईंधन और मैन्यूफैक्चर्ड उत्पादों सहित कई वस्तुओं के दाम बढ़े हैं। एक साल पहले सितंबर 2010 में सकल मुद्रास्फीति की दर 8.98 फीसदी थी। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस साल जुलाई की सकल मुद्रास्फीति का संशोधित आंकड़ा 9.36 फीसदी रहा जबकि इसका अनंतिम आंकड़ा 9.22 फीसदी था।

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