प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने स्पष्ट किया है कि सूचना अधिकार कानून में कोई ढील नहीं दी जाएगी। सरकार पारदर्शिता के लिए सूचना के अधिकार को और अधिक कारगर हथियार बनाना चाहती है लेकिन वह कुछ चिंताओं पर ध्यान देने के लिहाज से उसकी गहन समीक्षा भी करना चाहती है। गौरतलब है कि सरकारी महकमे के कुछ लोग और केंद्रीय मंत्री तक इस पारदर्शिता कानून में संशोधन की मांग करते आ रहे हैं। उनका मानना है कि यह कानून कामकाज में हस्तक्षेप करता है।
प्रधानमंत्री ने शुक्रवार को राजधानी दिल्ली में केंद्रीय सूचना आयुक्तों के दो दिवसीय सालाना अधिवेशन को संबोधित हुए कहा कि आरटीआई कानून से सरकार की विचार-विमर्श की प्रक्रिया पर प्रतिकूल असर नहीं पड़ना चाहिए और ईमानदार लोक सेवक अपने विचार रखते समय हतोत्साहित नहीं होने चाहिए। बता दें कि 2005 में आरटीआई कानून आने के बाद के पिछले छह सालों में हर हाल इस अधिकार के तहत सूचना मांगने वालों की संख्या इजाफा हुआ है।
प्रधानमंत्री के मुताबिक इस दौरान निवेदनों को खारिज करने के मामलों में लगातार कमी आई है। यह वर्ष 2007-08 में 7.2 फीसदी, 2009-10 में 6.4 फीसदी और 2010-11 में 5.2 फीसदी पर आ गई। आयोग के समक्ष अपील और शिकायतों के अनुपात में भी कमी आई है।
प्रधानमंत्री ने आरटीआई कानून की तारीफ करते हुए कहा, “मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि सरकारी अधिकारियों के कई ऐसे कामों को जनता के सामने लाने में सूचना के अधिकार अधिनियम का व्यापक व कारगर उपयोग किया जा रहा है, जो कभी जनता के सामने नहीं आ पाते। मुझे लगता है कि हम अपने प्रशासन में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने में और आगे बढ़े हैं। सूचना के अधिकार की उपयोगिता और उसकी ताकत को अब पहले की तुलना में ज्यादा महसूस किया जा रहा है।”