ज़रा नज़र तो डालें सुपर सेल्स पर

जो कंपनी ठीक पिछले बारह महीनों में अपने हर शेयर पर 79.35 रुपए का शुद्ध लाभ कमा रही हो, जिसके शेयर की बुक वैल्यू (रिजर्व + इक्विटी / कुल जारी शेयरों की संख्या) 200.88 रुपए हो, जिसका पी/ई अनुपात पिछले साल भर से पांच, छह, सात कर रहा हो, फिर भी उसके शेयरों को पूछनेवाले न हों तो भारतीय शेयर बाजार की गली को अंधों की गली ही कहना ज्यादा ठीक होगा। या, बहुत हुआ तो यूं कहा जा सकता है कि कुछ गड़ेरिये भेड़ों के भीड़ को चलाए जा रहे हैं।

जी हां, सुपर सेल्स इंडिया लिमिटेड (बीएसई – 512527, एनएसई – SUPER) की हालत देखकर ऐसा ही लगता है। कल बीएसई में उसके कुल सिर्फ 115 शेयरों में कारोबार हुआ जिसमें से 118 शेयर डिलीवरी के लिए थे, जबकि एनएसई में ट्रेड हुए 771 शेयरों में से 744 डिलीवरी के लिए थे। कंपनी का 10 रुपए अंकित मूल्य का शेयर फिलहाल 292 रुपए पर चल रहा है। साल भर पहले अप्रैल 2010 में यह 5.38 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा था। अक्टूबर 2010 में यह उठकर 7.30 के अनुपात तक चला गया। इसके बाद लगातार गिरता जा रहा है। नवंबर में 6.67, दिसंबर में 6.22, जनवरी 2011 में 5.67, फरवरी में 4.43 और अब कल 31 मार्च 2011 को 3.68 पर पहुंच गया है इसका पी/ई अनुपात। इसका 52 हफ्ते का उच्चतम स्तर 452 (26 अक्टूबर 2010) और न्यूनतम स्तर 245 रुपए (3 मार्च 2011) का है।

ऐसा नहीं है कि कंपनी बहुत वाहियात हो और उनका धंधा मंदा चल रहा हो। दिसंबर 2010 की तिमाही में उसने 45.58 करोड़ की आय पर 2.56 करोड़ का टैक्स चुकाने के बाद 5.54 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया है, जबकि साल भर पहले दिसंबर 2009 की तिमाही में उसने 31.30 करोड़ की आय पर 1.37 करोड़ का टैक्स अदा करने के बाद 5.41 करोड़ का शुद्ध लाभ हासिल किया था। इस तरह कंपनी की आय 45.62 फीसदी बढ़ी है, जबकि शुद्ध लाभ में मात्र 2.40 फीसदी का इजाफा हुआ है जिसका खास कारण कच्चे माल की लागत का 12.80 करोड़ से बढ़कर 20.98 करोड़ हो जाना है।

सुपर सेल्स इंडिया (सुपरसेल्स डॉट को डॉट इन) 1981 में बनी कंपनी है। टेक्सटाइल मशीनरी लगाने व बेचने से शुरुआत की थी। यह मशहूर कंपनी लक्ष्मी मशीन टूल्स (एलएमडब्ल्यू) को चलानेवाले परिवार का हिस्सा है। 1985 में उसने 31,104 स्पिंडल्स क्षमता की एक स्पिनिंग मिल खरीद ली। तभी से स्पिनिंग के धंधे में है। फिलहाल उसकी तीन स्पिनिंग इकाइयां तमिलनाडु में हैं। वह सीएनसी मशीन टूल्स क्षेत्र में भी मौजूद है और गियर का उत्पादन वित्त वर्ष 2010-11 से शुरू कर दिया है जिसका सकारात्मक असर अब कंपनी के नतीजों पर दिखाई देगा। उसने 2006 में बिजली उत्पादन के लिए 75 विंडमिल्स खरीदी। अभी वह 27.50 मेगावॉट बिजली बना रही है।

2009-10 में उसकी आय 23 फीसदी बढ़कर 128.41 करोड़ और शुद्ध लाभ 1955 फीसदी यानी करीब बीस गुना बढ़कर 18.08 करोड़ रुपए हो गया था। अभी-अभी बीते वित्त वर्ष 2010-11 में सितंबर के बाद से रूई की कीमतों में उछाल के बावजूद कंपनी ने अपना लाभ मार्जिन ठीकठाक स्तर पर बनाए रखा है। उसका परिचालन लाभ मार्जिन सितंबर 2010 की तिमाही में 38.92 फीसदी और दिसंबर 2010 की तिमाही में 30.38 फीसदी रहा है। कंपनी की टेक्सटाइल डिवीजन के साथ-साथ उसकी पवन ऊर्जा डिवीजन भी लगातार कई तिमाहियों से अच्छा काम कर रही है।

कंपनी कुल शेयर पूंजी 3.07 करोड़ रुपए है। इसका 82.16 फीसदी पब्लिक और 17.84 फीसदी प्रवर्तकों के पास है। एफआईआई व डीआईआई के पास इसके नगण्य शेयर हैं। इसके कुल शेयरधारकों की संख्या 6542 है। आठ बड़े शेयरधारकों के पास इसके 19.07 फीसदी शेयर हैं। कंपनी ने 2009-10 के लिए 10 रुपए पर 10 रुपए यानी 100 फीसदी का लाभांश दिया है। सारे पहलुओं को देखते हुए एक बात साफ है कि छोटी अवधि के लिए इसमें निवेश अच्छा रिटर्न नहीं दे सकता। लेकिन अगर कोई वॉरेन बफेट की तरह वैल्यू इनवेस्टिंग करना चाहता है तो यह स्टॉक तीन से पांच साल में काफी आकर्षक रिटर्न दे सकता है।

नया वित्त वर्ष 2011-12 भारतीय अर्थव्यवस्था और उद्योग व कॉरपोरेट क्षेत्र के लिए शुभ हो। यही कामना है क्योंकि ऐसा होने पर हमारे-आप जैसे निवेशकों के लिए यह अपने-आप ही शुभ हो जाएगा। अर्थकाम की ख्वाहिश है कि नया वित्त वर्ष निवेश की संजीदा संस्कृति को देश के कोने-कोने तक ले जाए और लोगबाग कहें कि हमें मुद्रास्फीति के बढ़ने से फर्क नहीं पड़ता क्योंकि हमने अपनी बचत को ऐसी जगह लगाया है जहां हमें उससे ज्यादा रिटर्न मिल रहा है।

 

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