फैसला भारत सरकार। देश में सड़क से लेकर संसद तक विरोध। लेकिन अमेरिका में स्वागत। वॉशिंगटन से जारी बयान में आधिकारिक तौर पर दलाली का काम करनेवाली अमेरिका-भारत बिजनेस परिषद ने मल्टी ब्रांड रिटेल में 51 फीसदी एफडीआई (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) और सिंगल ब्रांड रिटेल में एफडीआई की सीमा 51 से बढ़ाकर 100 फीसदी किए जाने का स्वागत किया है। उसने केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा गुरुवार रात को लिए गए इस फैसले को ‘साहसिक’ बताया है और कहा है कि इससे खाद्य पदार्थों की कीमतों और महंगाई में कमी आएगी। अमेरिका में बैठकर भारत की महंगाई की चिंता। कितनी महान आत्माएं हैं इस संसार में!!!
दूसरी तरफ शुक्रवार को संसद के दोनों सदनों में सरकार के फैसले के खिलाफ जमकर हंगामा हुआ और संसद की कार्यवाही सोमवार तक के लिए स्थगित करनी पड़ी। मुख्य विपक्षी दल बीजेपी ने खुदरा व्यापार को विदेशियों के खोलने के इस फैसले को राष्ट्रद्रोही करार दिया है। उसका कहना है कि इससे किसानों और छोटे दुकानदारों की कमर टूट जाएगी। राज्यसभा में बीजेपी के उपनेता एस एस अहलूवालिया ने कहा कि मल्टी ब्रांड रिटेल में एफडीआई के विषय पर सरकार ने एकतरफा निर्णय लिया है। इस विषय पर विपक्ष से विचार-विमर्श नहीं किया गया। संसद की दो स्थाई समितियों ने इसके विरोध में विचार व्यक्त किए थे।
यूपीए की सहयोगी पार्टी तृण मूल कांग्रेस के नेता व रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी ने भी कहा कि इस फैसले पर पहले चर्चा की जरूरत थी। उन्होंने कैबिनेट की बैठक में इसका विरोध किया था। सीपीएम नेता सीताराम येचुरी ने कहा कि जब संसद का सत्र चल रहा हो, तब कैबिनेट का इस तरह फैसला करना लोकतंत्र की मर्यादा के खिलाफ है। सरकार के इस कदम के खिलाफ बीजेपी नेता उमा भारती हिंसक तेवर अपनाती दिख रही हैं। उन्होंने लखनऊ में मीडिया से बातचीत करते हुए कहा, “रिटेल क्षेत्र में विदेशी निवेश को बढ़ाने के खिलाफ मैं लखनऊ के अमीनाबाद में वॉलमार्ट का पुतला दहन करूंगी। अगर उत्तर प्रदेश में वॉलमार्ट का एक भी स्टोर खुला तो मैं अपने हाथों से उसमें आग लगा दूंगी। भले ही मुझे जेल हो जाए।”
उधर सरकार अपने फैसले को तार्किक और देश व किसानों के हित में बताने के लिए सफाई दर सफाई दिए जा रही है। संसदीय कार्य राज्यमंत्री राजीव शुक्ला ने संसद भवन परिसर में संवाददाताओं से कहा कि इस मामले में किसानों और छोटे दुकानदारों के हितों का ख्याल रखा गया है और उनके संरक्षण की व्यवस्था की गई है। उन्होंने सरकार के इस फैसले से देश में ईस्ट इंडिया कंपनी का दौर लौटने की आशंकाओं को खारिज करते हुए उन्होंने कहा कि ऐसा संभव नहीं है। किसी भी क्षेत्र में पूंजी निवेश अच्छा ही होता है और खुदरा क्षेत्र की इन कंपनियों का संचालन भारतीय ही करेंगे।
केंद्रीय वाणिज्य व उद्योग मंत्रालय ने अलग से सफाई दी है कि कैसे मल्टी ब्रांड रिटेल से किसानों से लेकर उपभोक्ता तक का फायदा होगा और रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे। मंत्रालय का कहना है कि भारत दुनिया में फलों व सब्जियों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। लेकिन कोल्ड स्टोरेज वगैरह की सुविधा न होने से इसका 35 से 40 फीसदी हिस्सा बरबाद हो जाएगा। मल्टी ब्रांड रिटेल में एफडीआई के साथ शर्त जोड़ी गई है कि रिटेलर इस तरह का इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करेंगे। लेकिन सरकार ने इस बात का कोई जवाब नहीं दिया कि कोल्ड-चेन बनाने के लिए ऑटोमेटिव रूट से 100 फीसदी एफडीआई की इजाजत पहले से दी जा चुकी है तो अभी तक किसी विदेशी निवेशक ने इस काम में हाथ क्यों नहीं डाला?
सरकार का कहना है कि इससे एग्रो प्रोसेसिंग, अनाजों की छंटाई, मार्केटिंग, लाने-ले जाने का प्रबंधन और फ्रंट-एंड रिटेल धंधे में भारी रोजगार के अवसर पैदा होंगे। अगले पांच सालों में फ्रंट-एंड कामों में 15 लाख और बैक-एंड कामों में 17 लाख रोजगार के अवसर पैदा होंगे। वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा ने 40 लाख से ज्यादा रोजगार के नए अवसरों की बात की। लेकिन इस तथ्य को काटने के लिए उनके पास कोई वाजिब जवाब नहीं था कि देश में कृषि के बाद सबसे ज्यादा रोजगार रिटेल व्यापार ने दे रखा है। केपीएमजी की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2007-08 में रिटेल सेक्टर ने 3.31 करोड़ लोगों को रोजगार दे रखा था। इसके सामने आनंद शर्मा जी का 40 लाख का आंकड़ा कहीं नहीं टिकता।
सरकार ने यह भी बताने की कोशिश की है कि चीन जैसे देश तक ने मल्टी ब्रांड रिटेल में 100 फीसदी विदेशी निवेश की छूट दे रखी है। वहां 1996 से 2001 के बीच 600 हाइपर मार्केट खुले। लेकिन इसी दौरान किराना दुकानों की संख्या घटने के बजाय 19 लाख से बढ़कर 25 लाख हो गई। साथ ही 1992 से 2001 के दौरान रिटेल व होलसेल सेक्टर में रोजगार कर रहे लोगों की संख्या 2.80 करोड़ से बढ़कर 5.40 करोड़ हो गई।
बता दें कि चीन ने 1992 से 1996 तक चुनिंदा प्रांतों के विशेष इलाकों में मल्टी ब्रांड रिटेल में 49 फीसदी एफडीआई की इजाजत दी थी। इस प्रयोग के सफल होने के बाद 100 फीसदी एफडीआई की छूट दे दी गई। इस पर भारत सरकार का कहना है कि वह भी अभी केवल दस लाख से ज्यादा आबादी वाले शहरों में ही मल्टी ब्रांड रिटेल में 51 फीसदी एफडीआई की अनुमति दे रही है। इस तरह ऐसे स्टोर मात्र 53 शहरों में ही खुल सकेंगे, जबकि देश में कुल 8000 से ज्यादा शहर हैं।
खैर, इस सारे शब्दजाल के पीछे असली बात यही है कि सरकार वॉलमार्ट से लेकर केयरफोर और इकिया जैसे विदेशी स्टोरों को भारत में मुनाफा कमाने का मौका देना चाहती है, जबकि परिवार की तरह बेहद खराब हालात में दुकानें चलानेवाले लोग परेशान हो गए हैं कि कहीं उनका धंधा-पानी न बंद हो जाए। नोट करने की बात यह है कि वामदलों ने बैंकों के कंप्यूटरीकरण का जबरदस्त विरोध इस आधार पर किया था कि इससे रोजगार के अवसर कम हो जाएंगे। लेकिन हकीकत में रोजगार के अवसर भी बढ़ गए और ग्राहकों को बेहतर सेवा भी मिलने लग गई।