देश की आर्थिक विकास दर जून से सितंबर 2011 तक की तिमाही में 6.9 फीसदी रही है। यह सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में दो सालों से ज्यादा वक्त में किसी भी तिमाही में हुई सबसे कम विकास दर है और लगातार तीसरी तिमाही में 8 फीसदी से नीचे रही है। चिंता की बात यह है कि इस दौरान मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र की विकास दर मात्र 2.7 फीसदी रही है, जबकि खनन क्षेत्र बढ़ने के बजाय 2.9 फीसदी घट गया है। कृषि क्षेत्र की विकास दर 3.2 फीसदी के सामान्य स्तर पर है।
केंद्रीय सांख्यिकी व कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय से जुड़े केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) की तरफ से बुधवार को जारी आंकड़ों के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2011-12 की दूसरी तिमाही में भारत का जीडीपी 12,27,254 करोड़ रुपए रहा है। यह पिछले वित्त वर्ष 2010-11 की समान अवधि के जीडीपी 11,48,472 करोड़ रुपए से 6.9 फीसदी ज्यादा है। इस दौरान बिजली, गैस व जल आपूर्ति क्षेत्र में 9.8 फीसदी, व्यापार, होटल, परिवहन व संचार में 9.9 फीसदी और फाइनेंस, बीमा, रीयल एस्टेट व बिजनेस सेवाओं में 10.5 फीसदी वृद्धि दर्ज की गई। लेकिन मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर की कम वृद्धि और खनन क्षेत्र के घट जाने से जीडीपी की विकास दर नीचे आ गई। इस साल की पहली तिमाही (अप्रैल-जुलाई 2011) में जीडीपी की विकास दर 7.7 फीसदी रही है, जबकि जनवरी-मार्च 2011 की तिमाही में 7.8 फीसदी थी।
वित्त मत्री प्रणव मुखर्जी ने दूसरी तिमाही की आर्थिक विकास दर को सरकार के अनुमान से कम बताया है और कहा है कि वैश्विक आर्थिक हालात घरेलू अर्थव्यवस्था की विकास दर पर प्रतिकूल असर डाल रहे है। वैसे, यह विकास दर बाजार व विशेषज्ञों के अनुमान के अनुरूप है क्योंकि कई दिनों से जीडीपी की विकास दर के लिए 6.9 फीसदी का ही आंकड़ा हर तरफ टहल रहा था। यही वजह है कि जीडीपी के आंकड़ों का शेयर बाजार पर कोई नकारात्मक असर नहीं पड़ा है और बीएसई सेंसेक्स और एनएसई निफ्टी दोनों ही दोपहर तक करीब आधा फीसदी बढ़ चुके थे।
बैंक ऑफ अमेरिका–मेरिल लिंच के अर्थशास्त्री इंद्रनील गुप्ता ने मुंबई में कहा, “यह विकास दर कमोबेश हमारी अपेक्षा के अनुरूप है। हमें वित्त वर्ष की बाकी दो तिमाहियों में भी इसी तरह इसके 7 फीसदी के आसपास रहने की उम्मीद हैं।”
मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर का योगदान जीडीपी में अभी 15.71 फीसदी है। इस क्षेत्र की विकास दर जुलाई-सितंबर 2011 में मात्र 2.7 फीसदी रही है, जबकि पिछली तिमाही में यह 7.2 फीसदी और पिछले साल की समान तिमाही में 7.8 फीसदी थी। जीडीपी में 11.06 फीसदी का योगदान रखनेवाला कृषि क्षेत्र इस बार 3.2 फीसदी बढ़ा है, जबकि पिछली तिमाही में यह 3.9 फीसदी और पिछले साल की समान तिमाही में 5.4 फीसदी बढ़ा था।
खनन क्षेत्र में आई गिरावट की वजह सुप्रीम कोर्ट की तरफ से कर्नाटक व गोवा में लगाए गए प्रतिबंध को बताया जा रहा है। लेकिन कुल मिलाकर यही कहा जा रहा है कि रिजर्व बैंक ने जिस तरह मार्च 2010 के बाद से 13 बार ब्याज दरें बढ़ाई हैं, उससे मुद्रास्फीति को थामने का उसका घोषित मकसद तो नहीं पूरा हुआ, लेकिन आर्थिक विकास को जरूर लगाम लग गई। अब माना जा रहा है कि रिजर्व बैंक ब्याज दरें बढ़ाने का सिलसिला रोक देगा। साथ ही पूरे वित्त वर्ष 2011-12 में आर्थिक विकास दर के अनुमान को 7.6 फीसदी से और नीचे ले आएगा। बीते वित्त वर्ष 2010-11 में भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर 8.5 फीसदी रह चुकी है। रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति की अगली मध्य-त्रैमासिक समीक्षा शुक्रवार, 16 दिसंबर को पेश करनेवाला है, जबकि तीसरी तिमाही की समीक्षा मंगलवार, 24 जनवरी 2012 को पेश की जाएगी।