भारती एयरेटल ने बाड़ तो बांधी नहीं

बाजार के बारे में क्या कहा जाए! यहां कोई न्यूनतम स्तर भी न्यूनतम स्तर नहीं होता। जैसे, नव भारत वेंचर्स ने पिछले साल 29 नवंबर 2010 को 295.10 रुपए पर तलहटी बनाकर 302 रुपए पर बंद हुआ तो उसका तब का पी/ई अनुपात 5.33 था और शेयर की बुक वैल्यू थी 234.06 रुपए। ऐसे में इसमें निवेश की सलाह तो बनती ही थी। लेकिन यह शेयर 30 अगस्त 2011 को 158 रुपए के नए न्यूनतम स्तर पहुंच गया और अभी 185 रुपए के आसपास चल रहा है। यह अलग बात है कि बीच में 2 दिसंबर 2010 को 345 रुपए के शिखर तक भी गया था।

बड़े-बड़े विद्वान कहते हैं कि नीचे में खरीदो, ऊपर में बेचो। लेकिन ऐसे में कैसे समझा जाए कि कौन-सा नीचे है और कौन-सा ऊपर? फिर, क्या बस यही देखना पर्याप्त है? क्या यह देखना जरूरी नहीं है कि कंपनी धंधे के जोखिम को कैसे संभाल रही है? कल एंजेल ब्रोकिंग के संस्थापक व सीएमडी दिनेश ठक्कर एक चैनल पर ठोंके पड़े थे कि निवेशकों को इस समय मिड कैप व स्मॉल कैप के चक्कर में न पड़कर लार्ज कैप कंपनियों के शेयर खरीद लेने चाहिए क्योंकि वे काफी निचले स्तरों पर मौजूद हैं। अलग-अलग कंपनी को देखना चाहिए। जैसे, हिंदुस्तान यूनिलीवर इस समय महंगा है, लेकिन आईटीसी सस्ता है। आदि-इत्यादि। इसी सिलसिले में उन्होंने भारती एयरटेल का भी नाम लिया।

भारती एयरटेल देश की सबसे बड़ी मोबाइल सेवाप्रदाता कंपनी। बीते वित्त वर्ष 2010-11 में 38,015.80 करोड़ की आय पर 7716.90 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ। परिचालन लाभ मार्जिन (ओपीएम) 34.33 फीसदी, शुद्ध लाभ मार्जिन (ओपीएम) 20.30 फीसदी। चालू वित्त वर्ष में सितंबर 2011 की तिमाही में कंपनी की आय तो 9.30 फीसदी बढ़कर 10,164.50 करोड़ रुपए हो गई। लेकिन शुद्ध लाभ 37.75 फीसदी घटकर 1307.50 करोड़ रुपए पर आ गया। ओपीएम 32.80 फीसदी रहा, पर एनपीएम 12.86 फीसदी पर आ गया।

कंपनी ने 4 नवंबर को ये नतीजे घोषित किए थे। तब यह 397.95 रुपए पर था। इसके बाद उसका पांच रुपए अंकित मूल्य का शेयर 16 नवंबर को 412.25 रुपए तक चला गया तो 23 नवंबर को नीचे में 354.95 रुपए तक भी गिर गया। सेंसेक्स व निफ्टी में शामिल ए ग्रुप के इस लार्ज कैप स्टॉक में दो हफ्ते में ही 14 फीसदी से ज्यादा का उत्पात समझ में नहीं आता। ऐसी वोलैटिलिटी तो स्मॉल व मिड कैप स्टॉक्स में होनी चाहिए। ऐसे लार्ज कैप सटॉक में क्यों? हमें निवेश जारी रखना है तो इन पक्षों को भी समझना पड़ेगा। मोटामोटी बातों और सूत्रों से काम नहीं चलेगा।

खैर, भारती एयरटेल का शेयर कल बीएसई (कोड – 532454) में 3.80 फीसदी गिरकर 373.45 रुपए और एनएसई (कोड – BHARTIARTL) में 3.56 फीसदी गिरकर 373.70 रुपए पर बंद हुआ। उसके इस महीने के फ्यूचर्स का भाव अभी 374.45 रुपए चल रहा है। स्टैंड-एलोन रूप से कंपनी का ठीक पिछले बारह महीनों (टीटीएम) का ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) 16.92 रुपए और समेकित रूप से 13.02 रुपए है। इस तरह स्टैंड-एलोन नतीजों को देखें तो उसका शेयर 22.07 और समेकित नतीजों को देखें तो 28.67 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। यह इसी साल 2 फरवरी 2011 को 11.70 के पी/ई पर ट्रेड हो चुका है, जब यह 304.25 रुपए की तलहटी पर पहुंच गया था। हाल-फिलहाल ऊपर में यह 22.39 के पी/ई तक गया है जब 1 अगस्त 2011 को 444.70 रुपए तक चला गया था।

क्या इस समय भारती एयरटेल में निवेश करना सही रहेगा? अपनी सीमित समझ से मुझे लगता है, नहीं। कारण, कंपनी की बैलेंस शीट के मुताबिक 31 मार्च 2011 तक उस पर बकाया ऋण 61,671 करोड़ रुपए का था। इस ऋण का 73 फीसदी हिस्सा डॉलर में है। 30 सितंबर 2011 तक कंपनी पर चढ़े कर्ज की मात्रा 67,491 करोड़ रुपए हो गई है। पिछले कुछ दिनों से डॉलर के मुकाबले रुपया थोड़ा संभला है। लेकिन सितंबर के बाद से वह करीब-करीब 19 फीसदी कमजोर हो चुका है।

क्या भारती ने डॉलर-रुपए की विनिमय दर की मार से बचने के लिए हेजिंग कर रखी थी? कंपनी का कहना है कि उसके डॉलर ऋण का बड़ा हिस्सा यूरोपीय सब्सिडियरी भारती एयरटेल इंटरनेशनल (नीदरलैंड्स) बीवी के नाम से है और उसकी कामकाज की मुद्रा डॉलर है। इसलिए डॉलर-रुपए की ऊंच-नीच का उस पर कोई असर नहीं पड़ेगा। लेकिन कंपनी ने दक्षिण अफ्रीकी कंपनी ज़ैन के अधिग्रहण के लिए हासिल ऋण की भी हेजिंग नहीं की है। ऐसे में ब्रोकरेज फर्म एडेलवाइस की एक रिपोर्ट के मुताबिक कंपनी पर डॉलर ऋणों की अदायगी का बोझ 4200 करोड़ रुपए बढ़ सकता है। कंपनी को मोटे तौर पर 2013 में 4000 करोड़ रुपए, 2014 में 8000 करोड़ रुपए, 2015 में 12,000 करोड़ रुपए और 2016 में 16,000 करोड़ रुपए का ऋण लौटाना है।

हालांकि दूसरा पक्ष यह है कि कंपनी को इधर मोबाइल के धंधे से काफी कैश मिल रहा है। होड़ थमने से मोबाइल कपनियां शुल्क भी बढ़ाने लगी हैं। पिछली चार तिमाहियों में भारती एयरटेल ने सारे निवेश व खर्चों के बाद 4670 करोड़ रुपए का मुक्त कैश फ्लो हासिल किया है। ऐसे में शायद पुराने शेयरधारकों को बहुत फिक्र करने की जरूरत नहीं है। लेकिन नए निवेशकों को इसमें अभी और गिरावट का इंतजार करना चाहिए क्योंकि इसके शेयर के मौजूदा भावों में रुपए की चाल का असर शायद शामिल नहीं है।

कंपनी की 1898.80 करोड़ रुपए की इक्विटी में प्रवर्तकों का हिस्सा 68.33 फीसदी है, जबकि एफआईआई के पास उसके 17.14 फीसदी और डीआईआई के पास 8.69 फीसदी शेयर हैं। अच्छी बात यह है कि प्रवर्तकों ने अपना कोई शेयर गिरवी नहीं रखा है। हां, कंपनी इधर अपनी झांकी बनाने में जबरदस्त निवेश कर रही है। इस चक्कर में हुआ यह है कि उसकी गुडविल व ब्रांड वैल्यू जैसी अमूर्त आस्तियो का मूल्य 64,894 करोड़ रुपए पर पहुंच गया है, जबकि उसकी नेटवर्थ इससे कम 51,258 करोड़ रुपए ही है। जानकार बताते हैं कि किसी भी कंपनी के धंधे के लिए यह अच्छी बात नहीं होती।

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