एक तरफ केंद्र की यूपीए सरकार अण्णा हज़ारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को न संभाल पाने से परेशान हैं, दूसरी तरफ शेयर बाजार की गिरावट व पस्तहिम्मती ने सरकार के प्रमुख कर्णधार व संकटमोचक वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी को हिलाकर रख दिया है। दिक्कत यह भी है कि हमारे शेयर बाजार की गिरावट की मुख्य वजह चूंकि वैश्विक हालात हैं, इसलिए वित्त मंत्री ढाढस बंधाने के अलावा कुछ कर भी नहीं सकते।
शुक्रवार को वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर डॉ. सुब्बा राव और प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष डॉ. सी रंगराजन के साथ वैश्विक आर्थिक स्थिति पर गंभीर विचार-विमर्श किया। सारी बातचीत अमेरिकी अर्थव्यवस्था के धीमेपन और यूरोप के ऋण संकट पर केन्द्रित रही। यूरोप की ऋण समस्या और विश्व अर्थव्यवस्था से जुड़ी चिंताओं के कारण अमेरिका व यूरोपीय बाजारों में तेज गिरावट आई है। अमेरिका में विशेष रूप से ऐसी कंपनियां ज्यादा प्रभावित हुईं जिनका धंधा पूरी दुनिया में फैला है।
लेकिन समीक्षा बैठक में इस बात पर तसल्ली व्यक्त की गई कि अमेरिका व यूरोप के शेयर बाजार सूचकांकों में गुरुवार की तेज गिरावट की तुलना में भारतीय शेयर बाजार के सूचकांक में ज्यादा गिरावट नहीं आई है। शुक्रवार को निफ्टी व सेंसेक्स दोनों में 1.99 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई जो अमेरिका व यूरोपीय बाजारों में आई गिरावट की लगभग एक तिहाई ही है। एशियाई बाजारों की तुलना में भी भारतीय शेयर बाजार की स्थिति बेहतर है। कुछ प्रमुख एशियाई बाजारों में 4 से 6 फीसदी गिरावट आई है।
समीक्षा बैठक के बाद जारी बयान में वित्त मंत्रालय ने कहा है कि अमेरिका और यूरोप में गिरावट का असर अल्पकालिक तौर पर हमारे बाजार पर भी पड़ा है लेकिन विकसित देशों के विपरीत भारत अपनी समस्याओं से निपटने में अधिकतर देशों से बेहतर स्थिति में है। दुनिया के कुछ निवेश बैंकों ने भारत की रेटिंग अंडरवेट से बढ़ाकर मार्केट-वेट कर दी है जो अपने-आप में भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती का सबूत है। मौजूदा संकट से भारत में विदेशी पेंशन फंड और अन्य संस्थागत दीर्घकालिक निवेशकों का निवेश बढ़ने की संभावना है। भारत इस निवेश के लिए काफी अच्छी स्थिति में है।
वित्त मंत्री ने ढाढस बंधाते हुए कहा कि हमारी अर्थव्यवस्था तेजी से आगे बढ़ रही है। यहां के मूलाधार मजबूत हैं और समस्याओं से जूझ रहे विश्व में इनका आकर्षण ज्यादा बढ़ गया है। श्री मुखर्जी का कहना था, “हम वर्तमान चुनौती को दीर्घकालिक रूप से भारत में विकास के बड़े अवसर के रूप में देखते हैं।” उन्होंने विश्वास जताया कि भारत वर्तमान स्थिति के साथ मजबूती से निपटने में पी तरह सक्षम है।
उधर लोकसभा में वित्त राज्यमंत्री नमो नारायण मीणा ने भी एक लिखित जवाब में दावा किया कि भारत में किसी तरह का आर्थिक धीमापन नहीं है। यह अलग बात है कि कच्चे तेल का दाम ऊंचे स्तर पर बने हुए हैं। लेकिन अब इसमें भी कमी आने का सिलसिला शुरू हो चुका है। उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती के संदर्भ में अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) के वर्ल्ड इकनॉमिक आउटलुक का भी जिक्र किया।