यूरोज़ोन एक ऐतिहासिक परियोजना है। भारत चाहता है कि यूरोज़ोन फले-फूले क्योंकि यूरोप की खुशहाली में ही हमारी खुशहाली है। यह कहना है कि हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का। फ्रांस में पर्यटन के लिए मशहूर रिविएरा इलाके के सबसे अच्छे शहर कान में हो रहे रहे जी-20 शिखर सम्मेलन के लिए रवाना होने से पहले बुधवार को प्रधानमंत्री ने यह बात कही।
दो दिन का यह सम्मेलन गुरुवार-शुक्रवार (3-4 नवंबर) को होना है। जर्मन चांसलर एंजेला मैर्केल, फ्रांस के राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी, अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा व चीनी प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ समेत विश्व के सभी औद्योगिक देशों के शीर्ष नेता इस सम्मेलन में शिरकत कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का कहना है, “भारत जैसी विकासशील अर्थव्यवस्थाएं अपने सामने मौजूद व्यापक चुनौतियों का मुकाबला कर सकें, इसके लिए अनुकूल वैश्विक आर्थिक माहौल जरूरी है। आज के परस्पर निभर्रता वाले समय में अन्य देशों में होनेवाले उतार-चढ़ाव के प्रभाव और हमारी अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले मुद्रास्फीति के दबावों से हमारी चिंता बढ़ना स्वाभाविक है।”
बता दें कि कान शिखर सम्मेलन ऐसे समय पर हो रहा है, जब यूरोज़ोन ऋण-संकट में फंसा है। यह संकट वैश्विक अर्थव्यव्यवस्था के लिए चिंता का बहुत बड़ा कारण बन गया है। कुछ दिनों पहले यूरोपीय संघ और यूरोज़ोन के हुए दो शिखर सम्मेलनों से बाजार में विश्वास बहाल करने में मदद मिली है। लेकिन इसका कोई स्थाई असर नहीं हुआ है। प्रधानमंत्री ने कहा, “यह लाज़िमी है कि यूरोप और अन्य क्षेत्रों में पैदा हुई आर्थिक चुनौतियों से निपटने के लिए जो कठिन फैसले लेने जरूरी हैं, वे जल्दी ले लिए जाएं।”
इधर दिलचस्प बात यह भी हुई है कि हमारे वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने यूरोप को संकट से निकलने में सहायता की पेशकश कर दी है। बुधवार को राजधानी दिल्ली में संवाददाताओं से उन्होंने कहा, “उन्हें दीवालिया होने के मसले का सच्चा आकलन करने दीजिए। अपनी समस्याएं खुद सुलझाने दीजिए। उसके बाद पूरक वित्तीय सहायता पर विचार किया जा सकता है।” हालांकि वित्त मंत्री से जब यह पूछा गया कि क्या भारत यूरोपीय वित्तीय स्थायित्व के लिए जारी किए जा रहे बांडों को खरीदेगा, तब वे कन्नी काट गए।
सम्मेलन में वैश्विक शासन के मुद्दे पर भी चर्चा होगी। भारत के लिए यह मुद्दा महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष और वित्तीय प्रणाली में सुधार की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जा सकेगा। लेकिन इन सारी बातों के बीच एक अहम मसला यह है कि अमेरिका में वॉल स्ट्रीट से शुरू हुआ जन-प्रदर्शन यूरोप के तमाम देशों तक फैल चुका है। कान में भी हज़ारो की तादाद में प्रदर्शनकारी जुटे हुए हैं। सुरक्षा के तगड़े इंतजाम हैं और कोशिश यही है कि सम्मेलन स्थल के आसपास किसी को फटकने न दिया जाए। लेकिन देखिए, कल और परसों सम्मेलन स्थल के बाहर क्या होता है।