देश में बचत खातों के अलावा बैंकों को हर तरह की डिपॉजिट पर ब्याज दर तय करने की छूट को मिले हुए तेरह साल से ज्यादा हो चुके हैं। अब बचत खाते में जमा रकम की ब्याज दर को भी बाजार शक्तियों के हवाले कर देने की तैयारी है। रिजर्व बैंक ने इस विषय में एक बहस-पत्र जारी किया है जिसमें इसके तमाम फायदे-नुकसान गिनाए गए हैं। लेकिन तर्कों का पलड़ा बचत खातों की ब्याज दर को नियंत्रण-मुक्त करने की तरफ ही झुका हुआ है। रिजर्व बैंक ने इस पर सभी लोगों से 20 मई तक सुझाव मांगे हैं।
अगर फैसला बदलाव के पक्ष में हुआ तो 1 मार्च 2003 से 3.5 फीसदी सालाना पर अटकी बचत खातों की ब्याज दर बदल जाएगी। देश में 1997 से इसके अलावा हर तरह की बैक जमा पर ब्याज दर पर कोई अंकुश नहीं है। बैंक कर्ज के मामले में केवल दो लाख रुपए तक के छोटे ऋणों और रुपया निर्यात ऋण पर बंदिश रखी गई थी। लेकिन इन्हें भी 1 जुलाई 2010 से बेस रेट की प्रणाली लागू होने का साथ खत्म कर दिया गया। इस तरह बैंकों के धंधे में बचत खाते की जमा पर ब्याज ही वो इकलौती दर है जिस पर अंकुश लगा हुआ है।
लेकिन ये बेहद संवेदनशील मसला है। बैंकों की कुल जमा का 22.1 फीसदी बचत खातों से आता है। इस तरह की बचत में आम परिवारों का अधिकतम हिस्सा है। इसलिए यह राजनीतिक रूप से काफी संवेदनशील मसला भी है। इसलिए रिजर्व बैंक इस मामले में बहुत फूंक-फूंक कदम रखना चाहता है। बैंकिग उद्योग, कॉरपोरेट क्षेत्र व सरकारी विभागों के अलावा वह आम लोगों की राय लेने के बाद ही कोई फैसला करेगा।
रिजर्व बैंक बचत खाते पर ब्याज दर को मुक्त करने की पेशकश अतीत में 2002-03 और 2006-07 की सालाना मौद्रिक नीति में कर चुका है। इस बीच 1 अप्रैल 2010 से वह बचत खातों में जमा राशि पर ब्याज की गणना दैनिक आधार पर करने का नियम लागू कर चुका है। इससे आम लोगों को अपने बचत खाते पर ब्याज दर वही 3.5 फीसदी रहने के बावजूद ज्यादा ब्याज मिलने लगा है। रिजर्व बैंक गवर्नर दुव्वरि सुब्बाराव ने 2 नवंबर 2010 को मौद्रिक नीति की दूसरी त्रैमासिक समीक्षा में कहा था कि बचत खातों की ब्याज दर को मुक्त करने के बारे में बहस-पत्र दिसंबर से पहले पेश कर दिया जाएगा। अब करीब चार महीने बाद ही सही, वह वादा पूरा कर दिया गया है।
बचत खाते पर ब्याज दर को मुक्त करने का सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि बैंकों के बीच जमाराशि के इस सबसे सस्ते स्रोत को खींचने की होड़ मच जाएगी। नतीजतन आम बचतकर्ता को ज्यादा ब्याज मिल सकती है। लेकिन होड़ के चलते यह भी हो सकता है कि बैंक छोटी बचत वालों को कोई तवज्जो ही न दें। फिर वित्तीय समावेश के लिए सरकार की तरफ से चलाई गई नो फ्रिल खातों जैसी मुहिम खत्म हो सकती है। पर, रिजर्व बैंक के बहस-पत्र में कहा गया है कि ऐसे मसलों को विशेष सरकारी प्रावधानों से सुलझाया जा सकता है। जैसे, इस समय कर्ज पर ब्याज दर मुक्त होने के बावजूद किसानों को बेस रेट से नीचे 7 फीसदी ब्याज पर कर्ज तो मिलता ही है।
रिजर्व बैंक को दूसरा फायदा यह लगता है कि इससे मौद्रिक नीति के असर को सही तरीके से नीचे पहुंचाया जा सकता है। उसका कहना है कि जब 22 फीसदी जमा पर उसकी नीति का कोई फर्क ही नहीं पड़ता तो जाहिरा तौर पर मौद्रिक नीति के उपाय उतने कारगर नहीं हो सकते। उनका कहना है कि बचत खातों में चालू खाते व सावधि जमा का तत्व एक साथ होता है। इसे ध्यान रखना जरूरी है।
अध्ययन से पता चला है कि बचत खाते में जमा 90 फीसदी राशि लंबे समय तक पड़ी रहती है जिसे बैंकिंग में कोर सेविंग्स डिपॉजिट माना जाता है। इसलिए इस हिस्से पर लोगों को बाजार दर के हिसाब से ब्याज मिलना समय की मांग है। यहां चेक की सुविधा वाले बचत खातों और बगैर चेक की सुविधा वाले बचत खातों में भी अंतर किया गया है। ग्रामीण व कस्बाई इलाकों में ज्यादातर बचत खाते बिना चेक की सुविधा वाले हैं। इसलिए उन पर ज्यादा ब्याज दिया जा सकता है।