ऊपर वाला सब पर बराबर मेहरबान रहता है। सूरज चाहे भी तो किसी को कम या ज्यादा धूप कैसे दे सकता है!! हमें मिल नहीं पाता तो इसमें दोष खुद हमारा या हमारे सामाजिक तंत्र का है।और भीऔर भी

मस्तिष्क हर पल समस्याओं का हल खोजने में लगा रहता है, जबकि मान्यताओं  व रूढ़ियों से बनी मानसिकता उसे खींचती रहती है। तरक्की वही लोग कर पाते हैं जिनका मस्तिष्क मानसिकता को हराता रहता है।और भीऔर भी

जितने ज्यादा लोग आप से जुड़ते जाते हैं, उतना ही आप धनवान बनते जाते हैं क्योंकि पैसा कुछ नहीं, औरों के लिए आपकी उपयोगिता का अमूर्तन है। आप अपने अंदर डूबकर भी सबके बन सकते हैं और बाहर निकलकर भी।और भीऔर भी

कोई चीज खो जाए तो ढूंढने पर मिल सकती है। लेकिन कोई विचार खो जाए तो लाख ढूंढे नहीं मिलता। शब्द उड़ जाते हैं तो विचार खो जाता है। बस, बचती है एक कचोट। इसलिए लिख लिया कीजिए। लिखना जरूरी है।और भीऔर भी

जो लोग अपने समय से बहुत आगे या पीछे होते हैं, वे ज्यादा नहीं जीते। और, जो लोग अपने समय के साथ चलते हैं, वे दार्घायु होते हैं। समय के साथ प्रकृति का यही करार है। दोनों का यही तालमेल है।और भीऔर भी

बताते हैं कि दूसरों को अपने जैसा समझो। आत्मवत् सर्वभूतेषु। लेकिन दूसरा तो हमसे भिन्न है। स्वतंत्र व्यक्तित्व है उसका। हम जब भी इसे नहीं समझते, अपनी ही बातें थोपने लगते हैं तो तकरार बढ़ जाती है। इसलिए हरेक की भिन्नता का सम्मान जरूरी है।और भीऔर भी

आज की भागमभाग भरी जिंदगी में हम लोगों से बातें खूब करते हैं, लेकिन मिलते नहीं। इसलिए जान-पहचान वालों की भीड़ के बीच भी अकेले होते चले जाते हैं। अरे, कभी घर तो आइए। बात ही नहीं, मुलाकात भी करते हैं। खोल से निकलकर रिश्तों की बुनियाद रखते हैं।और भीऔर भी

जो बाहर है, वही तो अंदर है। प्रकृति ही बाहर है और भीतर भी। इसलिए किसी के सामने झुककर आपके अंदर की शक्ति नहीं जगती। इसके लिए तो अंदर की इंजीनियरिंग और सर्जरी जरूरी है।और भीऔर भी