कैबिनेट ने लोकपाल विधेयक के मसौदे को गुरुवार को मंजूरी दे दी और इस विधेयक को अगले हफ्ते सोमवार, एक अगस्त से शुरू हो रहे संसद के मानसून सत्र में एक-दो दिन के भीतर ही पेश कर दिया जाएगा। प्रस्तावित विधेयक के तहत केंद्रीय मंत्री से लेकर सांसद और ए ग्रुप के अफसर तक लोकपाल के दायरे में आएंगे। उन्हे दंडित करने के लिए लोकपाल को सीआरपीसी, 1973 के सेक्शन 197 या भ्रष्टाचार निरोधक अधनियम 1988 के सेक्शन 19 के तहत पहले से मंजूरी लेना जरूरी नहीं होगा। लेकिन कोई भी प्रधानमंत्री जब तक पद पर है, तब तक उसके खिलाफ लोकपाल कोई कदम नहीं उठा सकता।
बताते हैं कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपनी अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में खुद को लोकपाल के दायरे में रखे जाने की पेशकश की। लेकिन कैबिनेट के अन्य सहयोगियों ने इसके नफे-नुकसान पर लंबी चर्चा के बाद इस पद को प्रस्तावित भ्रष्टाचार निरोधी निकाय के दायरे से बाहर रखने का फैसला किया।
कैबिनेट की बैठक के बाद सूचना व प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी, कानून मंत्री सलमान खुर्शीद और प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री वी नारायण सामी ने संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में बताया कि प्रधानमंत्री के खिलाफ कोई भी शिकायत सात साल तक मान्य रहेगी और इस अवधि में उनके पद से हटने पर उनके खिलाफ लोकपाल के तहत जांच शुरू की जा सकेगी।
सरकार का दावा है कि उसने अण्णा हज़ारे व नागर समाज की की तरफ से सुझाए गए 40 बिंदुओं में से 34 को विधेयक के मसौदे में शामिल कर लिया है। लेकिन तीन मुद्दों पर हजारे पक्ष को सरकार के रुख पर घनघोर आपत्ति है। उनका कहना है कि प्रधानमंत्री, उच्च न्यायपालिका और संसद के भीतर सांसदों के आचरण को प्रस्तावित विधेयक से बाहर रखना सरकार गलत है।
अण्णा हजारे पक्ष में शामिल पूर्व आईपीएस अधिकारी किरण बेदी ने इसे राष्ट्र के साथ छल करार दिया। उन्होंने कहा कि यह विधेयक अगर एक बार पारित हो जाता है तो इससे उन अन्य राज्यों पर भी असर पड़ेगा, जिनकी लोकायुक्त का गठन करने की योजना है। ऐसे राज्य अब मुख्यमंत्री पद को लोकायुक्त के दायरे से बाहर रखना चाहेंगे। किरण बेदी ने कहा कि सरकार ने सुनहरा मौका खो दिया है।
कर्नाटक के लोकायुक्त और संयुक्त मसौदा समिति के सदस्य न्यायमूर्ति संतोष हेगड़े ने कहा कि इस विधेयक में उन प्रावधानों को शामिल नहीं किया है जिनकी मांग नागर समाज के सदस्य कर रहे थे। हेगड़े ने कहा कि मुझे नहीं लगता कि यह काफी मजबूत विधेयक होगा। 44 साल से लोकपाल विधेयक पारित नहीं हुआ और अब वे ऐसा विधेयक पारित कराना चाहते हैं तो बिल्कुल भी मजबूत नहीं होगा।
हालांकि न्यायपालिका को लोकपाल के दायरे से अलग रखने को सही ठहराते हुए कानून मंत्री खुर्शीद ने कहा कि न्यायपालिका की स्वायत्ता और स्वतंत्रता को बनाए रखना जरूरी है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि न्यायपालिका को जवाबदेही से मुक्त किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इसके लिए न्यायिक जवाबदेही विधेयक 2010 संसद में पेश हो चुका है और वह अभी संसद की स्थाई समिति के पास विचाराधीन है।
संसद में सांसदों के आचरण को लोकपाल के दायरे से बाहर रखने के बारे में पूछे गए सवालों के जवाब में खुर्शीद ने कहा कि संसद सर्वोच्च है और लोकसभा अध्यक्ष की अनुमति के बिना उसके सदस्यों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो सकती। अध्यक्ष यदि सांसद के किसी मामले को लोकपाल के समक्ष भेजना उचित समझते हैं तो वे ऐसा कर सकेंगे।
प्रस्तावित विधेयक के मुताबिक, लोकपाल संस्था में एक अध्यक्ष और आठ अन्य सदस्य होंगे। इनमें से आधे सदस्य न्यायपालिका से होंगे। लोकपाल की अपनी जांच इकाई और अभियोजन इकाई होगी। अध्यक्ष पद पर सुप्रीम कोर्ट के किसी सेवारत या सेवानिवृत्त प्रधान न्यायाधीश या जज को नियुक्त किया जा सकता है। लोकपाल में गैर-न्यायिक पृष्ठभूमि वाले उन्हीं सदस्यों को शामिल किया जाएगा जो पूरी तरह ईमानदार और असाधारण क्षमता वाले होंगे और जिन्हें भ्रष्टाचार विरोधी क्षेत्र और अन्य जिम्मेदारी वाले पदों का कम से कम 25 वर्ष का अनुभव हो।
लोकपाल की नियुक्ति प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली समिति करेगी। इस समिति में लोकसभा अध्यक्ष, राज्यसभा के सभापति, लोकसभा और राज्यसभा में विपक्ष के नेता, कैबिनेट के एक सदस्य और सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के एक-एक सेवारत न्यायाधीश शामिल रहेंगे। लोकपाल को हटाने का अधिकार राष्ट्रपति के पास होगा।
खुर्शीद ने स्पष्ट किया कि लोकपाल की निष्पक्षता को बनाए रखने के लिए यह प्रावधान किया गया है कि इस पद पर आसीन होने के बाद वह भविष्य में कभी भी किसी दल से नहीं चुनाव नहीं लड़ सकेंगे। उन्होंने कहा कि लोकपाल की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए इसके सदस्यों में किसी नेता को शामिल नहीं करने का फैसला किया गया है।
लोकपाल को भ्रष्ट नौकरशाहों की भ्रष्ट तरीकों से जुटाई गई संपत्ति को जब्त करने के भी अधिकार होंगे। उसे सरकार द्वारा पूर्ण या आंशिक रूप से वित्तीय मदद प्राप्त करने वाले या जनता से दान हासिल करने वाली किसी सोसाइटी या लोगों के संगठन अथवा ट्रस्ट के निदेशक, प्रबंधक, सचिव या अन्य किसी अधिकारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करने के अधिकार होंगे। लेकिन जनता के दान से चलनेवाले धार्मिक संगठनों को लोकपाल के दायरे से बाहर रखा जाएगा।