अपने भारत की ज़मीनी हकीकत यह है कि यहां बेरोज़गारी के सारे आंकड़े व पैमाने फेल हो जाते हैं। दुनिया भर में बेरोज़गारी दर की परिभाषा यह है कि 15 साल से ऊपर की कामकाज़ी उम्र के जितने लोग काम की मांग कर रहे हैं, उनमें से कितने प्रतिशत लोगों को काम नहीं मिल रहा। जितने लोग काम मांग रहे हैं, उनकी कुल संख्या को देश की श्रमशक्ति भी कहा जाता है। अपने यहां विचित्र स्थिति है कि गरीब लोग बेरोज़गार रहना गवारा नहीं कर सकते। वे कुछ न कुछ काम न करें तो गुजारा नहीं कर सकते। उन्हें रिक्शा खींचने से लेकर अंडे व सब्जी बेचने जैसा कोई न कोई नाम करना ही पड़ता है। नहीं तो भूखों मर जाएंगे। इनकी संख्या कितना है, पता नहीं। लेकिन सरकार जिन 80 करोड़ लोगों को पांच किलो अनाज मुफ्त देने का कार्यक्रम चला रही है, उनमें से अधिकांश इसी तरह के रोज़गार में लगे लोग होंगे। अब मंगलवार की दृष्टि…
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