कहां तो अर्थव्यवस्था को हर साल कम से कम 8% की दर से बढ़ना था और कहां उसकी विकास दर 4-5% तक गिर गई। वह भी तब, जब जीडीपी की गणना का तरीका बदल दिया गया। राजनीति में लंबी जुबान या लफ्फाजी चल जाती है। लेकिन अर्थनीति में बड़बोलापन करोड़ों लोगों की ज़िंदगियां तबाह कर देता है। नोटबंदी ने जिन लाखों छोटे उद्योगों की कमर तोड़ी, वे आज तक नहीं उठ पाए हैं। अब शुक्रवार का अभ्यास…
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