देश के गली-मोहल्लों तक बिखरी 55 लाख किराना दुकानों के व्यापारी सड़कों पर उतरे। उनमें डर समा गया है कि मल्टी-ब्रांड रिटेल में 51 फीसदी एफडीआई (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) आने से उनका वजूद मिट सकता है। दावा किया जा रहा है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल के इस फैसले के खिलाफ गुरुवार को बुलाए गए भारत बंद में पांच करोड़ लोगों ने शिरकत की है। दावों की सत्यता नापने का कोई जरिया नहीं है। लेकिन यह सच है कि बीजेपी से लेकर बीएसपी, तृणमूल कांग्रेस, तेलुगू देशम पार्टी, सपा व लेफ्ट और अल्ट्रा लेफ्ट तक ने इस बंद का साथ दिया है। राजनीतिक पार्टियों के इस रुख के चलते गुरुवार को आठवें दिन भी संसद नहीं चल सकी।
महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान पश्चिम बंगाल, गुजरात, दिल्ली, बिहार, झारखंड. असम, केरल, झारखंड, ओडिशा, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश व तमिलनाडु समेत देश के कोने-कोने में इसका असर नजर आया। कहीं कम तो कहीं ज्यादा। बीजेपी कार्यकर्ताओं ने दिल्ली में कम से कम बीस जगहों पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के पुतले फूंके।
व्यापारियों के शीर्ष संगठन कनफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (सीएआईटी) के महासचिव प्रवीण खंडेलवाल ने दावा किया कि खुदरा क्षेत्र में एफडीआई के सरकार के निर्णय के खिलाफ आहूत इस बंद में पूरे देश के व्यापारियों ने हिस्सा लिया है। संगठन की दिल्ली इकाई के अध्यक्ष नरेंद्र मदन ने कहा कि बंद में हिस्सा लेने के लिए बड़ी संख्या में व्यापारियों ने अपनी दुकानें बंद रखीं। फेडरेशन ऑफ कर्नाटक चैंबर ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्री ने बैंगलोर में अपने कार्यालय के समक्ष धरना प्रदर्शन किया। कनफेडरेशन ऑफ वेस्ट बंगाल ट्रेड एसोसिएशंस (सीडब्ल्यूबीटीए) ने बताया कि कि सभी सहायक व्यापारिक संगठन बंद के आह्वान के साथ रहे।
भारत बंद के तहत उत्तर प्रदेश में व्यावसायिक प्रतिष्ठान बंद रहे। बंद के समर्थन में लखनऊ में प्रदर्शन कर रहे सपा के कार्यकर्ताओं की पुलिस से झड़प हो गई, जिसके बाद पुलिस ने उन्हें तितर-बितर करने के लिए लाठीचार्ज किया। केंद्र सरकार के खिलाफ नारेबाजी करते हुए सपा कार्यकर्ताओं ने विधानसभा के सामने वॉलमार्ट और केंद्र सरकार का पुतला फूंका।
झारखंड की राजधानी रांची में सुबह से ही विभिन्न क्षेत्रों में गाड़ियों का आना-जाना बहुत सीमित था। दुकानें और व्यावसायिक प्रतिष्ठान पूरी तरह बंद रहे। फेडरेशन ऑफ झारखंड चैंबर्स ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष सज्जन सर्राफ ने कहा कि फेडरेशन भारत में इस तरह की निवेश की छूट का घोर विरोध करता है और इसीलिए समूचे झारखंड में व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को बंद रखा गया। उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर से लेकर कटक, बरहामपुर, संबलपुर, राउरकेला और बालेश्वर सहित कई शहरों में बंद के चलते कारोबारी गतिविधियां प्रभावित हुईं।
बिहार में बंद का असर कम रहा। हालांकि बंद को सीपीआई, सीपीएम, फॉरवर्ड ब्लॉक व आरएसपी जैसे वाम दलों और बीजेपी, जेडीयू और आरजेडी का समर्थन मिला हुआ था। बंद का आंशिक असर पटना, लखीसराय, भागलपुर, जहानाबाद सहित अन्य कई जिलों में देखा गया। सीपीआई (माले), आइसा, स्वदेशी जागरण मंच और कुछ अन्य मजदूर संघों ने व्यापारियों के साथ मिलकर रैलियां निकालीं। लेफ्ट पार्टियों ने एफडीआई के विरोध में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का पुतला दहन किया।
उत्तराखंड के अलग-अलग जिलों में बंद का व्यापक असर देखा गया। राज्य के अलग-अलग जिलों से मिली रिपोर्ट के अनुसार, व्यापारिक प्रतिष्ठान, स्कूल, दुकानें और पेट्रोल पंप भी बंद रहे। सडकों पर यातायात काफी कम था। कुछ स्थानों पर खाने-पीने की दुकानें भी बंद रहीं। राज्य के चमोली, उत्तरकाशी, पौडी, टिहरी, पिथौरागढ, अल्मोडा, बागेश्वर, नैनीताल, हरिद्वार, ऋषिकेश सहित अन्य जिलों से मिली रिपोर्ट के अनुसार बंद का व्यापक असर देखा गया। दुकानदारों ने अपनी दुकानों को बंद कर रखा था। कई स्थानों पर व्यापारियों ने केन्द सरकार के इस निर्णय के खिलाफ नारेबाजी भी की। देहरादून में बंद के दौरान पल्टनबाजार, धामावाला, घंटाघर, चकराता रोड, सर्वे चौक, राजपुर रोड, डालनवाला सहित अन्य क्षेत्रों की अधिकांश दुकानें बंद रहीं।
राजस्थान में बंद का मिलाजुला असर देखने को मिला। खुदरा व्यापारियों ने सरकार के फैसले का विरोध करते हुए राजधानी जयपुर के वैशाली में स्थित कार्फुर मॉल के बाहर प्रदर्शन किया। व्यापारी एफडीआई का नाम ऐसे ले रहे थे जैसे देश में कभी डंकन का विरोध हुआ था। वे हो सकता है एफडीआई का पूरा रूप न जानते हों, लेकिन उन्हें पता है कि इससे क्या होनेवाला है।
इस राजनीति हंगामे और हो-हल्ले के बीच राजनीतिक दलों से लेकर अण्णा हज़ारे जैसे सामाजिक कार्यकर्ता तक कह रहे हैं कि वॉल मार्ट, केयरफोर, टेस्को या मेट्रो जैसी विदेशी कंपनियों का आना देश में ईस्ट इंडिया कंपनी के आने जैसा है। लेकिन मौजूदा व्यवस्था में किसानों व ग्राहकों के बीच कम से कम छह स्तरों पर बिचौलियों की जो फौज लगी है या राज्यों को एपीएमसी (एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्केटिंग कमिटी) एक्ट के तहत जितना टैक्स मिलता है, उस पर कोई सवाल नहीं उठा रहा है। कोई नहीं पूछ रहा है कि किसानों के हित में बने नए मॉडल एपीएमसी एक्ट को अभी तक 28 में से ज्यादातर ने क्यों नहीं अपनाया है।
व्यापारियों और राजनीतिक पार्टियों के शोर में बिखरा-बिखरा किसान बेआवाज़ है। यह सच है कि विदेशी दुकानों के आने से देश और देशवासियों को भला नहीं होगा, लेकिन वर्तमान स्थिति भी तो कोई आदर्श स्थिति नहीं है। ऐसे में भला कैसे व किससे होगा, सोचा यह जाना चाहिए। लेकिन वोट बैंक और सस्ती लोकप्रियता हासिल करने में लगी राजनीतिक पार्टियों को यह सोचने की फुरसत नहीं है।