कोई कहे कि आपका धन कुछ महीने या एकाध साल में दोगुना कर देगा तो उस पर यकीन न करें। कोई कहे कि पांच साल में दोगुना कर देंगे तो गिन लीजिए कि इसका सालाना चक्रवृद्धि रिटर्न (सीएजीआर) 14.87% बनता है। सरकार बोले कि उसने दस साल में जीडीपी दोगुना कर दिया है तो समझिए कि सालाना विकास की दर 7.18% ही रही है। धन के बढ़ने के झांसे से बचना बहुत ज़रूरी है। हाल ही मेंऔरऔर भी

पिछले कई सालों से भारतीय निवेशकों के लिए बुलबुलों का दौर चल रहा है। पहले क्रिप्टो करेंसी। इसके बाद स्मॉल-कैप स्टॉक्स पर दांव लगाने का जुनून। फिर रेलवे से लेकर डिफेंस क्षेत्र तक की सरकारी कंपनियों ने गदर काटा। अब निवेशकों में आईपीओ का उन्माद। असल में जब भी शेयर बाज़ार तेज़ी पर होता है तो माहौल को भुनाने के लिए कंपनियां चीलों और मर्चेंट बैंकर उनके सेनानी कौओं की तरह नादान निवेशकों के झुंड पर टूटऔरऔर भी

शेयर बाज़ार सरपट दौड़ रहा है। अच्छी कंपनियों के शेयर पहुंच के बाहर। फिर भी निवेशक खरीदे जा रहे हैं। उन्हें डर है कि कहीं वे तेज़ी के इस दौर से बाहर न रह जाएं। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) भी इधर जमकर खरीदने लगे हैं। एक बात तो तय है कि शेयरों के भाव अंततः उनके पीछे उमड़े धन के प्रवाह से निर्धारित होते हैं। लेकिन लोगबाग तो वही शेयर खरीदते हैं जिनका बढ़ना लगभग तय होताऔरऔर भी

निवेश की दुनिया में अब तक के सफलतम शख्स हैं वारेन बफेट। दस दिन पहले 30 अगस्त 2024 को ही वे 94 साल के हुए हैं। इसके दो दिन पहले उनकी निवेश फर्म बर्कशायर हैथवे का बाज़ार पूंजीकरण एक ट्रिलियन या एक लाख डॉलर तक पहुंच गया। यह रकम कितनी बड़ी है, इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि भारत जैसी दुनिया की पांचवी अर्थव्यवस्था का आकार अभी 3.7 ट्रिलियन डॉलर का है जिसेऔरऔर भी

दुख में सुमिरन सब करें, सुख में करे न कोय। जो दुख में सुमिरन करे, दुख काहे को हो। दुर्दिन में कोई किसी को नहीं पूछता। जीवन और समाज का यह नियम शेयर बाज़ार पर भी लागू होता है। जिन कंपनियों के सितारे बुलंदी पर होते हैं, उनके पीछे हर कोई भागता है। इसलिए उनके शेयर चढ़ते ही चले जाते हैं। वहीं, किसी समय बुलंदी पर रही कंपनी जब किसी मुसीबत या तात्कालिक वजह से गिरने लगतीऔरऔर भी

आर्थिक विकास को समझना और निवेश करना है तो हमें नॉमिनल और रीयल या मौजूदा मूल्यों पर दिख रहे ऊपर-ऊपर के आंकड़े और स्थिर मूल्यों पर निकाले गए असली आंकड़े का अंतर साफ समझना होगा। नहीं तो कोई भी हमें चरका दे देगा। जैसे, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बार 15 अगस्त को लालकिले से बखाना कि हम प्रति व्यक्ति आय को दोगुना करने में सफल हुए हैं। लेकिन नहीं बताया कि किसने साल में और सतहीऔरऔर भी

शेयर बाज़ार का निवेश उनके लिए नहीं जो तुरत-फुरत कुछ पाना चाहते हैं। निवेश के लिए लम्बे समय की सोच की दरकार है। उसी से मन की शांति और धन की समृद्धि मिलती है। जो शेयर बाज़ार से फटाफट कुछ पाना चाहते हैं, उनके लिए एकाध दिन से लेकर एक-दो महीने की ट्रेडिंग का रास्ता है। लेकिन उन्हें ट्रेडिंग की बेचैनी व तनाव के ऊपर धन डूबने का रिस्क भी उठाने को तैयार रहना चाहिए। ट्रेडिंग सेऔरऔर भी

शेयर बाज़ार बड़ा समदर्शी होता है। उसे धन के प्रवाह से मतलब है। वो धन काला है या सफेद, उसे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। उसे इससे भी फर्क नहीं पड़ता कि कुछ लोगों के पास इफरात धन आ रहा है, जबकि ज्यादातर लोग बदहाल होते जा रहे हैं। इधर सरकार जहां कहीं भी गुंजाइश है, वहां से जमकर टैक्स वसूल रही है। साथ ही देश के नाम पर ऋण लेने में कोई कोताही नहीं बरत रही।औरऔर भी

निफ्टी-50 सूचकांक दो दिन पहले पहली बार 25,000 अंक के पार चला गया। क्या इसका वास्ता जीडीपी के बढ़ते आंकड़ों से है? हो सकता है। लेकिन इसका बड़ा वास्ता बाज़ार में सट्टेबाज़ी की नीयत से आए धन के भारी प्रवाह से भी है। कारण, जीडीपी के बढ़ते आंकडों के पीछे छिपी हकीकत यह है कि आमजन की खपत पर टिकी कंपनियों का धंधा ठहरा पड़ा है। जीडीपी की चमक ऐसी कंपनियों के लिए फीकी है। सरकारी कृपा,औरऔर भी

अफसोस की बात है कि अपने यहां 2.5 लाख रुपए की इनकम टैक्स मुक्त सीमा 2014-15 से जस की तस चली आ रही है, जबकि तब से अब तक दस साल में मुद्रास्फीति की औसत दर 5.50% रही है। इस हिसाब से तब के 2.5 लाख रुपए आज के 4.27 लाख रुपए हो चुके हैं। लेकिन सरकार के लिए धन के समय मूल्य या टाइम वैल्यू ऑफ मनी का कोई मतलब नहीं। वो महंगाई को डिस्काउंट किएऔरऔर भी