बाजार की उम्मीद और अटकलें खोखली निकलीं। रिजर्व बैंक गवर्नर दुव्वरि सुब्बाराव ने ब्याज दरों में कोई तब्दीली नहीं की है। बल्कि, जिसकी उम्मीद नहीं थी और कहा जा रहा था कि सिस्टम में तरलता की कोई कमी नहीं है, मुक्त नकदी पर्याप्त है, वही काम उन्होंने कर दिया। सीआरआर (नकद आरक्षित अनुपात) को 4.75 फीसदी से घटाकर 4.50 फीसदी कर दिया है। यह फैसला इस हफ्ते शनिवार, 22 सितंबर 2012 से शुरू हो रहे पखवाड़े सेऔरऔर भी

जब आर्थिक विकास दर घटकर 5.3 फीसदी पर आ गई हो, अप्रैल के औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईआई) में महज 0.1 फीसदी बढ़त दर्ज की गई हो और निवेश जगत में हर तरफ मायूसी का आलम हो, तब अगर 23 में से 17 अर्थशास्त्री मान रहे थे कि रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति की पहली मध्य-तिमाही समीक्षा में रेपो दर में चौथाई फीसदी कमी (8 फीसदी से 7.75 फीसदी) कर देगा तो उनका मानना कोई नाजायज नहीं था। लेकिनऔरऔर भी

भारतीय रुपया बुधवार को डॉलर के सापेक्ष तीन महीने के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया। दिन भर में जितना भी बढ़ा था, शाम तक सारा कुछ धुल गया। विदेशी मुद्रा डीलरों को लगता है कि रिजर्व बैंक ने ब्याज दर में जितनी कटौती करनी थी, कर दी है। आगे इसकी गुंजाइश बेहद कम है। आज खुद रिजर्व बैंक के गवर्नर दुव्वरि सुब्बाराव ने भी कह दिया कि मुद्रास्फीति बढ़ने का जोखिम कायम है, इसलिए ब्याज दरों कोऔरऔर भी

गुरुवार को डॉलर के सापेक्ष रुपए की विनिमय दर में करीब 1.2 फीसदी का झटका लगा है। बुधवार को एक डॉलर की विनिमय दर 50.775/785 रुपए थी, जबकि गुरुवार को यह 51.39/40 रुपए पर पहुंच गई। यह 12 दिसंबर 2011 के बाद किसी एक दिन में रुपए को लगा सबसे तगड़ा झटका है। विदेशी मुद्रा बाजार में इसकी दो वजहें मानी जा रही हैं। एक तो तेल आयातकों की तरफ से लगातार बढ़ रही डॉलर की मांग।औरऔर भी

नए साल का पहला महीना बीएसई सेंसेक्स और रुपए के लिए ऐतिहासिक बढ़त का महीना रहा है। जनवरी में सेंसेक्स 11.3 फीसदी बढ़ा है। यह पिछले 18 साल में जनवरी के दौरान सेंसेक्स में हुई सबसे ज्यादा बढ़त है। इससे पहले जनवरी 1994 में 19.4 फीसदी बढ़ा था। इसी तरह भारतीय रुपए के लिए भी जनवरी का महीना पिछले 17 सालों की सबसे ज्यादा बढ़त का साक्षी रहा। इस महीने डॉलर के सापेक्ष रुपया 7.45 फीसदी मजबूतऔरऔर भी

आज, शुक्रवार को डॉलर की विनिमय दर दोपहर ढाई बजे के आसपास 49.44 रुपए तक चली गई। याद कीजिए कि दिसंबर 2011 में मैंने रुपए के बारे में क्या कहा था। मैंने कहा था कि रुपया जनवरी में ही डॉलर के सापेक्ष 50 से नीचे चला जाएगा, जबकि दिग्गज लोग लिखित रिपोर्ट जारी कर रहे थे कि वो 58 रुपए पर पहुंच जाएगा। यह सच महज रुपए पर ही नहीं, तमाम स्टॉक्स पर भी लागू हो जाताऔरऔर भी

दुनिया में कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों और कमजोर होते रुपए के चलते सरकारी तेल मार्केटिंग कंपनियों (ओएमसी) की अंडर-रिकवरी चालू वित्त वर्ष 2011-12 में 1.40 लाख करोड़ रुपए के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच सकती है। यह आकलन है देश की प्रमुख रेटिंग एजेंसी क्रिसिल की रिसर्च शाखा का। अंडर-रिकवरी का मतलब उस नुकसान से है जो ओएमसी को डीजल, रसोई गैस व कैरोसिन को सरकार निर्धारित दामों पर बेचने के चलते उठाना पड़ता है। उनका लागतऔरऔर भी

उम्मीद है कि रुपया पिछले कुछ महीनों से चल रही गिरावट का सिलसिला तोड़कर अब स्थिर हो जाएगा। अगर ऐसा नहीं होता तो उसमें आई तेज हलचल को रोकने के लिए रिजर्व बैंक विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप करने को तैयार है। रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर सुबीर गोकर्ण ने गुरुवार को सिंगापुर में आयोजित एक समारोह में यह बात कही। उन्होंने कहा, “हम किसी भी तेज एकतरफा हलचल को रोकने के लिए मजबूत कदम उठाएंगे।” उन्होंनेऔरऔर भी

भारतीय अर्थव्यवस्था के साथ भारतीय मुद्रा के दुर्दिन भी थमने का नाम नहीं ले रहे। सोमवार को डॉलर के सापेक्ष रुपए की विनिमय दर 52.87 रुपए पर पहुंच गई जो अब के इतिहास की सबसे कमजोर दर है। हालांकि पिछले स्तर से 1.53 फीसदी की गिरावट के साथ 52.84 / 85 रुपए पर बंद हुई। इससे पहले रुपया 22 नवंबर को डॉलर से सापेक्ष 52.73 रुपए तक गिर गया था। विदेशी मुद्रा डीलरों का कहना है किऔरऔर भी

सरकार ने अपने अनुमानों को जमीनी हकीकत से मिलाने की कोशिश की है। उसने अर्थव्यवस्था की छमाही समीक्षा में चालू वित्त वर्ष 2011-12 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के बढ़ने का अनुमान 7.25 फीसदी से 7.50 फीसदी कर दिया है। फरवरी में बजट पेश करते वक्त इसके 9 फीसदी बढ़ने का अनुमान लगाया गया था। वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने शुक्रवार को संसद में देश के आर्थिक हालात की मध्य-वार्षिक समीक्षा पेश की। इस समीक्षा रिपोर्ट मेंऔरऔर भी