केंद्र हालात के आगे लाचार, विकास का अनुमान 9 से सीधे 7.25% पर

सरकार ने अपने अनुमानों को जमीनी हकीकत से मिलाने की कोशिश की है। उसने अर्थव्यवस्था की छमाही समीक्षा में चालू वित्त वर्ष 2011-12 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के बढ़ने का अनुमान 7.25 फीसदी से 7.50 फीसदी कर दिया है। फरवरी में बजट पेश करते वक्त इसके 9 फीसदी बढ़ने का अनुमान लगाया गया था। वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने शुक्रवार को संसद में देश के आर्थिक हालात की मध्य-वार्षिक समीक्षा पेश की।

इस समीक्षा रिपोर्ट में स्वीकार किया गया है कि सरकार व्यापार संतुलन की गंभीर समस्या से रू-ब-रू है और राजकोषीय घाटे के निर्धारित लक्ष्य के भीतर रख पाना दूभर हो जाएगा। वित्त मंत्रालय का कहना है, “इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को हासिल करना इस साल आसान नहीं होगा।” हालांकि मंत्रालय ने इसका कोई नया संशोधित अनुमान नहीं पेश किया। बजट में कहा गया था कि इस बार राजकोषीय घाटा जीडीपी का 4.6 फीसदी रहेगा। दिक्कत यह है कि अभी तक जहां कर प्राप्तियां बजट अनुमान से कम चल रही हैं, वहीं सरकारी खर्च काफी तेज रफ्तार से बढ़ रहा है।

चालू वित्त वर्ष में अक्टूबर तक के सात महीनों में शुद्ध कर राजस्व मात्र 7.3 फीसदी बढ़ा है, जबकि सरकारी खर्च करीब 10 फीसदी बढ़ गया है। सरकार ने यह भी माना है कि पूंजी बाजार की खराब अवस्था को देखते हुए सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के विनिवेश से 40,000 करोड़ रुपए जुटाने का बजट लक्ष्य पूरा कर पाना कठिन होगा। साल के खत्म होने में अब चार महीने से भी कम बचे हैं। ऐसे में अर्थशास्त्रियों का कहना है कि राजकोषीय घाटा जीडीपी के 4.6 फीसदी के बजाय 5.6 फीसदी रहेगा।

सरकार अपने खजाने की किसी भी कमी को बाजार से उधार लेकर पूरा करेगी। इससे बांड बाजार में एक तरह की घबराहट है। सरकार पहले ही अपना उधारी लक्ष्य 52,800 करोड़ रुपए बढ़ा चुकी है। उसका कहना है कि खर्चों के बढ़ने की मुख्य वजह सब्सिडी का बढ़ जाना है। इसी बुधवार को वित्त मंत्री ने लोकसभा में बताया था कि सब्सिडी का बोझ इस बार करीब एक लाख करोड़ रुपए ज्यादा रहेगा।

इस बीच विदेश व्यापार पर भी दबाव बढ़ने लगा है। पिछले वित्त वर्ष में देश का व्यापार घाटा 104.04 अरब डॉलर था। लेकिन इस साल मार्च तक इसके बढ़कर 155 से 160 अरब डॉलर हो जाने का अंदेशा है। विदेशी बाजारों में भारतीय माल की मांग कमजोर पड़ती जा रही है। इससे बहुत मुश्किल लगता है कि सरकार चालू वित्त वर्ष 2011-12 के लिए निर्धारित 300 करोड़ डॉलर का निर्यात लक्ष्य हासिल कर लेगी। खुद वाणिज्य सचिव राहुल खुल्लर से शुक्रवार को बताया कि इस बात के स्पष्ट प्रमाण मिले हैं कि हमारे निर्यात की वृद्धि दर धीमी पड़ रही है। इससे व्यापार संतुलन की गंभीर समस्या पैदा हो सकती है।

सरकार रुपए के कमजोर होते जाने से मुद्रास्फीति का मोर्चा भी नहीं संभाल पा रही है। इस साल डॉलर के सापेक्ष हमारा रुपया करीब 17 फीसदी कमजोर हो चुका है। इससे देश में होनेवाले आयात की लागत बढ़ गई है। मार्च 2010 से लेकर अब तक रिजर्व बैंक 13 बार ब्याज दरें बढ़ा चुका है। लेकिन इसके बावजूद सकल मुद्रास्फीति की दर पिछले ग्यारह महीनों से लगातार 9 फीसदी के ऊपर चल रही है। हालांकि सरकार का कहना है कि इस महीने से इसमें कमी आना शुरू हो जाएगी और मार्च 2012 तक यह 7 फीसदी के लक्ष्य के भीतर आ जाएगी।

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