ढाई बजते ही खेल शुरू होता है उनका

भारतीय अर्थव्यवस्था ने कमजोरी दिखाई है। जीडीपी की विकास दर सुस्त पड़ी है। कॉरपोरेट क्षेत्र के लाभार्जन के अनुमान घटा दिए गए हैं। दुनिया से नकारात्मक खबरें आ रही हैं। और, बाजार में फौरन सुधार की कोई आशा नहीं है। इन सारी बातों के मद्देनज़र अगर मंदड़िए हर बढ़त पर बेच रहे हैं तो उनका ऐसा करना जायज है। मंदड़ियों की यह ताजातरीन उम्मीद भी गलत नहीं कही जा सकती है कि निफ्टी 2700 तक जा सकता है। लेकिन इस सोच व धारणा के अनुरूप बाजार इस समय ओवरसोल्ड अवस्था में जा पहुंचा है।

बाजार की स्थिति हर दिन निफ्टी में 100 अंकों तक की गिरावट के साथ भी बदल जा रही है। इसकी सीधी-सी वजह यह है कि अब अपफ्रंट मार्जिन देना अनिवार्य कर दिया गया है। इसके अलावा कैश सेटलमेंट की व्यवस्था अलग जलवे दिखा रही है। इसलिए पूरा बाजार सटोरियों की जकड़बंदी में आ गया है। सुबह निफ्टी कमजोरी के साथ 4870.75 पर खुला। फिर दस बजे तक 4900 पर पहुंच गया। फिर ढाई बजे तक 50 अंकों के दायरे में घूमता रहा। इसके बाद एकबारगी 4918.35 तक उठ गया और आखिर में 1.56 फीसदी की गिरावट के साथ 4866.70 पर बंद हुआ।

क्या आपने नोट किया है कि इधर अक्सर हर दिन बाजार सुबह दस बजे से लेकर दोपहर ढाई बजे तक कमोबेश शांत रहता है और गिरने या उठने की असली हरकत दोपहर ढाई बजे के बाद शुरू होती है? ऐसा क्यों है कि जो एफआईआई बेचना चाहते हैं, वे घंटे-घंटे के ऑर्डर के बजाय एकमुश्त शाम को क्यों बेचते हैं? यह संकेत है इस बात का कि कारोबार के अंतिम दौर में बाजार को तोड़ने या उठाने के सघन प्रयास होते हैं क्योंकि आखिरी 45 मिनटों में निवेशक किसी नई पोजिशन में ट्रेड ही नहीं करते।

जेट एयरवेज और पैंटालून रिटेल कैश सेटलमेंट के शिकार बनने के आदर्श उदाहरण हैं। जेट जब 275 रुपए पर था, तभी मैंने आपको आगाह कर दिया था कि यह टूटकर 220 से 230 रुपए तक पहुंच जाएगा। ऐसा 9 दिसंबर से पहले हो चुका है। आज यह नीचे में 229.25 तक जाने के बाद 235.80 रुपए पर बंद हुआ है। इसी तरह पैंटालून रिटेल हाल में 224 से गिरकर 178 रुपए तक पहुंचा है जो 20 फीसदी से ज्यादा की गिरावट है। इस बीच जो लोग पुराने स्तर से चिपके रह गए, उन्हें यह अंतर कैश में देकर निकलना पड़ा।

एसबीआई और आईएफसीआई में इसका उल्टा किस्सा है। चूंकि पिछले सेटलमेंट के आखिरी दिन आईएफसीआई 20 रुपए और एसबीआई 1640 रुपए पर थे, इसलिए ये दोनों इस सेलटमेंट के आखिरी दिन तक अच्छी बढ़त दिखाएंगे। मुझे कोई अचंभा नहीं होगा जो आईएफसीआई 30 रुपए और एसबीआई 2100 रुपए पर पहुंचकर न बंद हो। यहां भी कैश का अंतर करामात दिखाएगा। आईएफसीआई के बारे में तो तगड़ी अफवाह है कि यह किसी और के हाथ में जा रहा है। इसके कॉल ऑप्शंस में बटोरने का क्रम दिख रहा है जो शायद अपने-आप में इस बात का संकेत हो सकता है।

खैर, जो भी हो। इतना साफ हो चला है कि यूपीए सरकार सुधारों समेत हर मोर्चे पर नाकाम साबित हुई है। उसे यह तक पता नहीं कि मुद्रास्फीति क्यों बढ़ रही है और करेंसी व शेयरों में चल रही जुएबाजी ने कैसे रिटेल निवेशकों के हितों का गला घोंट दिया है। असल में यह सारी बातें चुनाव के लिहाज से भी सरकार के लिए हालात को और बदतर बना सकती हैं। सरकार को जो चीज गर्दिश से बचा सकती है, वह यही है कि वो जल्दी से जल्दी अर्थव्यवस्था को संकट से उबार ले, जैसा कि उसने 2008 में किया था। अगर चीन में औद्योगिक उत्पादन 12.5 फीसदी बढ़ सकता है तो भारत में क्यों नहीं? आज जरूरत है कि हम सीआरआर में कटौती कर दें और अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पर ले आएं। इसके बाद सारी चीजें अपने-आप दुरुस्त होना शुरू हो जाएंगी।

चीन में मुद्रास्फीति घटकर 4.2 फीसदी पर आ गई है। अब वह सीआरआर में 0.50 फीसदी की और कमी गवारा कर सकता है। अर्थशास्त्रियों को लगता है कि यह आज शाम तक ही हो सकता है। अगर ऐसी ही सक्रियता भारतीय रिजर्व बैंक भी दिखाए, जो अब संभव है क्योंकि खाद्य मुद्रास्फीति तीन सालों के न्यूनतम स्तर पर आ गई है तो बाजार पर छाया मंदी का कोप कट सकता है। इससे कॉरपोरेट क्षेत्र राहत की सांस लेगा। यह तय है कि कॉरपोरेट क्षेत्र के विकास के बिना देश का विकास कतई नहीं हो सकता।

कर संग्रह को बढ़ाने के लिए जरूरी है कि व्यक्तिगत आयकर की अधिकतम दर को 30 फीसदी से घटाकर 15 फीसदी कर दिया जाए क्योंकि इससे जिन भी लोगों के पास काला धन है, वे टैक्स चुकाकर उसे बाहर निकाल लाएंगे। बजट की घड़ी करीब आती जा रही है। केवल 80 दिन और बचे हैं। लेकिन इसको लेकर अभी तक बाजार में कोई सुगबुगाहट नहीं शुरू हुई। मेरा मानना है कि भले ही सारे कारक नकारात्मक हों, लेकिन बजट अपने-आप में इकलौता इतना बड़ा कारक है जो बड़े पैमाने पर शॉर्ट सेलिंग को रोक सकता है।

जो कुछ भी होता है, उसमें कम से कम एक पहलू जरूर ऐसा होता है, जिसके बारे में हम पहले से सोच चुके होते हैं।

(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है। लेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं पड़ना चाहता। इसलिए अनाम है। वह अंदर की बातें आपके सामने रखता है। लेकिन उसमें बड़बोलापन हो सकता है। आपके निवेश फैसलों के लिए अर्थकाम किसी भी हाल में जिम्मेदार नहीं होगा। यह मूलत: सीएनआई रिसर्च का कॉलम है, जिसे हम यहां आपकी शिक्षा के लिए पेश कर रहे हैं)

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