भारतीय अर्थव्यवस्था के साथ भारतीय मुद्रा के दुर्दिन भी थमने का नाम नहीं ले रहे। सोमवार को डॉलर के सापेक्ष रुपए की विनिमय दर 52.87 रुपए पर पहुंच गई जो अब के इतिहास की सबसे कमजोर दर है। हालांकि पिछले स्तर से 1.53 फीसदी की गिरावट के साथ 52.84 / 85 रुपए पर बंद हुई। इससे पहले रुपया 22 नवंबर को डॉलर से सापेक्ष 52.73 रुपए तक गिर गया था।
विदेशी मुद्रा डीलरों का कहना है कि जल्दी ही एक डॉलर 54 रुपए का हो सकता है। इंडसइंड बैंक की एसेट-लायबिलिटी कमिटी के प्रमुख मोजेज हार्डिंग का कहना है, “मैं रिजर्व बैंक के हस्तक्षेप के अलावा रुपए के पक्ष में एक भी सकारात्मक कारक नहीं देख पा रहा हूं। विदेशी मुद्रा के सीमित भंडार के कारण रिजर्व बैंक के भी हाथ बंधे हैं। इसलिए यह जल्दी ही डॉलर के मुकाबले 54 रुपए तक जा सकता है।”
वैसे, रिजर्व बैंक कह चुका है कि वह विदेशी मुद्रा बाजार में तभी हस्तक्षेप करेगा, जब वहां उतार-चढ़ाव ज्यादा होंगे। उसका लक्ष्य रुपए को किसी खास स्तर पर टिकाना या पहुंचाना नहीं है। लेकिन ताजा आंकड़े दिखाते हैं कि उसने अक्टूबर में लगातार दूसरे महीने बाजार में डॉलर बेचकर हस्तक्षेप किया है। इसके बावजूद रुपया एशिया की सबसे बदतर मुद्रा बना हुआ है। शुक्रवार को जारी आंकड़ों के अनुसार 2 दिसंबर तक हमारा विदेशी मुद्रा भंडार 308.84 अरब डॉलर का है। वहीं चीन का विदेशी मुद्रा भंडार इस समय हमसे करीब दस गुना, 3200 अरब डॉलर का है।
आईडीबीआई बैंक के ट्रेजरार एन एस वेंकटेश का कहना है, “हमारी विकासगाथा धूमिल पड़ रही है। शेयर बाजार में गिरावट है। विदेशी निवेशक यहां से धन निकाल रहे हैं। यूरो ज़ोन की हालत सुधरी नहीं है। इन सारी चीजों के मेल ने रुपए का कचूमर निकाल रखा है। इसके ऊपर से तेल आयातकों ने डॉलर की मांग चढ़ा रखी है। लेकिन मुझे लगता है कि रिजर्व बैंक इसे 53 रुपए के आसपास थाम लेगा।”