एक तरफ हमारी सरकार चीन के साथ बढ़ने व्यापार घाटे पर चिंता जता रही है। वहीं दूसरी तरफ हकीकत यह है कि जहां चीन सस्ते व परिष्कृत मैन्यूफैक्चर्ड उत्पादों से भारतीय बाजार को पाटे पड़ा है, वहीं हम चीन को मानव बाल जैसी अपरिष्कृत चीजें निर्यात कर रहे हैं।
वाणिज्य राज्यमंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने लोकसभा में एक लिखित उत्तर में बताया कि सरकार चीन के साथ बढ़ते व्यापार घाटे को लेकर चिंतित है। अप्रैल-जुलाई 2011 के चार महीनों में यह व्यापार घाटा 12.6 अरब डॉलर का रहा है। वहीं, ज्योतिरादित्य ने ही लोकसभा में भारत द्वारा निर्यात किए जानेवाले इंसानी बालों के आंकड़े भी पेश किए।
उन्होंने बड़े गर्व से बताया कि 2009-10 में दुनिया भर में मानव बालों का कुल निर्यात 133.9 करोड़ डॉलर था जिसमें भारत का योगदान 19.39 करोड़ डॉलर (14.5 फीसदी) था। भारत ने इस बालों का सबसे बड़ा 44.5 फीसदी हिस्सा (8.63 करोड़ डॉलर) चीन को निर्यात किया था। 2008-09 में भारत से हुए 17.91 करोड़ डॉलर के मानव बाल निर्यात में से 8.04 करोड़ डॉलर (44.9 फीसदी) चीन से मिले थे। बीते वित्त वर्ष 2010 में हमारा बाल निर्यात 18.11 करोड़ डॉलर रहा है जिसका 54.1 फीसदी हिस्सा (9.79 करोड़ डॉलर) चीन को गया था।
आप सोच रहे होंगे कि निर्यात के लिए इंसानों के बाल मिलते कहां से होंगे? तो, बालों के निर्यात का सबसे बड़ा स्रोत आंध्र प्रदेश का तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम या तिरुपति मंदिर है। भारत सरकार बालों के निर्यातकों को एडवांस लाइसेंस स्कीम (एएलएस) और ड्यूटी इनटाइटलमेंट पासबुक (डीईपीबी) स्कीम के तहत तमाम प्रोत्साहन भी देती है। यह बात खुद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बड़े गर्व के साथ लोकसभा को बताई।