वैसे तो देश के खजाने और मौद्रिक नीति के प्रबंधन का कोई वास्ता किसी आस्था नहीं है। लेकिन रिजर्व बैंक में लगता है कि शीर्ष पर कहीं कोई हनुमान-भक्त बैठा है क्योंकि उसकी सालाना मौद्रिक नीति और हर तिमाही समीक्षा मंगलवार को ही आती रही है। 20 अप्रैल को 2010-11 की सालाना मौद्रिक नीति आई। 27 जुलाई 2010 को पहली समीक्षा, 2 नवंबर 2010 को दूसरी समीक्षा और 25 जनवरी 2011 को तीसरी समीक्षा हुई। इसमें सेऔरऔर भी

रिजर्व बैंक ने बड़े साफ शब्दों में कह दिया है कि नए वित्त वर्ष 2011-12 के बजट में वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने सब्सिडी के लिए जो प्रावधान किया है, वह वास्तविकता के अनुरूप नहीं है। सोमवार को नए साल की मौद्रिक नीति जारी करने से पहले अर्थव्यवस्था की समग्र स्थिति के आकलन में रिजर्व बैंक ने यह बात कही है। रिजर्व बैंक के दस्तावेज में कहा गया है कि बजट में सब्सिडी की गिनती यह मानकरऔरऔर भी

देश में बचत खातों के अलावा बैंकों को हर तरह की डिपॉजिट पर ब्याज दर तय करने की छूट को मिले हुए तेरह साल से ज्यादा हो चुके हैं। अब बचत खाते में जमा रकम की ब्याज दर को भी बाजार शक्तियों के हवाले कर देने की तैयारी है। रिजर्व बैंक ने इस विषय में एक बहस-पत्र जारी किया है जिसमें इसके तमाम फायदे-नुकसान गिनाए गए हैं। लेकिन तर्कों का पलड़ा बचत खातों की ब्याज दर कोऔरऔर भी

रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष में आठवीं बार ब्याज दरें (रेपो व रिवर्स दर) बढ़ा दी हैं। इसका सीधा असर बैंकों द्वारा दिए जा रहे ऑटो, होम और कॉरपोरेट लोन पर पड़ेगा। लेकिन बैंक फिलहाल इस महीने ब्याज दरों में कोई नई वृद्धि नहीं करने जा रहे हैं। इंडियन ओवरसीज बैंक के चेयरमैन व प्रबंध निदेशक (सीएमडी) एम नरेंद्र का कहना है कि रिजर्व बैंक द्वारा मौद्रिक नीति को कड़ा किए जाने का तत्काल कोई असरऔरऔर भी

बैंकर से लेकर अर्थशास्त्री तक कहे जा रहे हैं कि रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति की मध्य-तिमाही समीक्षा में ब्याज दरें बढ़ा देगा। खासकर फरवरी में थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति के उम्मीद से ज्यादा 8.31 फीसदी रहने पर लगभग पक्का माना जा रहा है कि रिजर्व बैंक नीतिगत दरों यानी रेपो और रिवर्स रेपो दर को 0.25 फीसदी बढ़ाकर क्रमशः 6.75 फीसदी और 5.75 फीसदी कर देगा। लेकिन सूत्रों के मुताबिक रिजर्व बैंक इस बार ऐसाऔरऔर भी

हमारे नीति-नियामकों के लिए थोड़े सुकून की बात है कि तीन महीने बाद खाद्य मुद्रास्फीति की दर अब दहाई से इकाई अंक में आ गई है। 26 फरवरी को खत्म हफ्ते में इसकी दर 9.52 फीसदी दर्ज की गई है जबकि इसके ठीक पिछले हफ्ते में यह 10.39 फीसदी पर थी। इस तरह इनमें 87 आधार अंकों की कमी आ गई है। एक आधार अंक या बेसिस प्वाइंट का मतलब 0.01 फीसदी होता है। इन आंकड़ों सेऔरऔर भी

रिजर्व बैंक ग्राहक सेवाओं को लेकर बैंकों के प्रति अपना रुख कड़ा करनेवाला है। बहुत संभावना है कि सेबी के पूर्व चेयरमैन एम दामोदरन की अध्यक्षता में बैंकों की ग्राहक सेवाओं पर गठित समिति हफ्ते भर बाद 15 फरवरी को अपनी रिपोर्ट रिजर्व बैंक को सौंप देगी। वैसे, यह रिपोर्ट के आने में करीब दो हफ्ते की देर हो चुकी है क्योंकि रिजर्व बैंक ने 2 नवंबर 2010 को मौद्रिक नीति की दूसरी त्रैमासिक समीक्षा में कहाऔरऔर भी

कल अचानक जिस तरह की कयासबाज़ी बढ़ गई थी कि रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति की तीसरी त्रैमासिक समीक्षा में ब्याज दरें 0.50 फीसदी बढ़ा सकता है, वह आज मंगलवार को पूरी तरह हवाई निकली। रिजर्व बैंक ने उम्मीद के मुताबिक रेपो और रिवर्स रेपो दर में 0.25 फीसदी की वृद्धि कर दी है। अब तत्काल प्रभाव से रेपो दर 6.25 फीसदी से बढ़कर 6.5 फीसदी और रिवर्स रेपो दर 5.25 फीसदी से बढ़कर 5.50 फीसदी हो गईऔरऔर भी

शेयर बाजार के विशेषज्ञों का मानना है कि बीते सप्ताह मामूली सुधार के बाद 25 जनवरी को बहुप्रतीक्षित भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समीक्षा बैठक से इस सप्ताह बाजार की दिशा निर्धारित होगी। रेपो व रिवर्स रेपो दर 0.25 फीसदी बढ़ सकती है, जबकि सीआरआर को 6 फीसदी पर यथावत रखे जाने की उम्मीद है। बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) में 21 जनवरी को समाप्त सप्ताह में उतार-चढ़ाव का रूख दिखाई पड़ा और सप्ताहांत में यह 0.77औरऔर भी