रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति में अब सस्पेंस या चौंकाने जैसी चीज नहीं रह गई है। हर किसी को पता है कि वह रेपो व रिवर्स दर में 0.25 फीसदी वृद्धि कर ब्याज दरें बढ़ाने का संकेत देगा। बहुत हुआ तो यह वृद्धि 0.50 फीसदी हो सकती है। इसके अनुरूप मंगलवार से रेपो दर 6.75 फीसदी से बढ़कर 7 या 7.25 फीसदी और रिवर्स रेपो दर 5.75 फीसदी से बढ़कर 6 या 6.25 फीसदी हो जाएगी। लेकिन आर्थिक समाचार पत्र ‘मिंट’ की एक रिपोर्ट के अनुसार रिजर्व बैंक बचत खातों पर ब्याज दर को 3.5 फीसदी से बढ़ाकर 4 फीसदी कर सकता है।
अगर ऐसा होता है कि यह सचमुच चौंकानेवाला कदम होगा क्योंकि मार्च 2003 से ही बचत खाते में जमाराशि पर ब्याज की दर 3.5 फीसदी पर अटकी हुई है। असल में भारतीय बैंकों के धंधे में इकलौती यही दर है जो सायास तय की जाती है। जमा और कर्ज की बाकी सभी ब्याज दरों को मुक्त किया जा चुका है। रिजर्व बैंक का काम बस इशारा भर करना होता है। वो किसी बैंक को ऋण या अन्य जमा पर खास ब्याज दर तय करने के लिए बाध्य नहीं कर सकता। लेकिन बचत खातों पर अभी तक उसी का राज चलता है।
रिजर्व बैंक अब इस ‘राज’ से तौबा करना चाहता है। इस सिलसिले में उसने पिछले ही हफ्ते 28 अप्रैल को एक विमर्श-पत्र जारी किया है। असल में बचत खाते की ब्याज दर को भी मुक्त करने की कोशिशें बार-बार हो चुकी हैं। लेकिन बैंक इसकी बात उठते ही हल्ला मचाने लगते हैं कि इससे उनके जमा की लागत बढ़ जाएगी और जिसका असर उनके लाभ मार्जिन पर पड़ेगा।
बता दें कि बैंकों की कुल जमा का लगभग 22 फीसदी भाग बचत खातों से मिलता है। कहने को यह चालू खातों की तरह डिमांड डिपॉजिट में आते हैं। लेकिन व्यवहार में बचत खातों की 90 फीसदी रकम ग्राहक खर्च नहीं करता, बचाकर रखता है। इसलिए मात्र 3.5 फीसदी ब्याज देकर बैंकों को कर्ज पर चढ़ाने के लिए काफी रकम मिल जाती है। मिंट की रिपोर्ट में बैंकिंग सूत्रों के हवाले बताया गया है कि रिजर्व बैंक बचत खाते की ब्याज दर को 4 फीसदी कर बैंकों के पारंपरिक विरोध को काटना चाहता है ताकि जब कभी इन दरों को भी मुक्त किया जाए तो वे लागत बढ़ने का रोना न रो सकें।
रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार भारतीय बैंकों की कुल जमा अभी 53.25 लाख करोड़ रुपए है। इसमें से बचत खातों की रकम 11.72 लाख करोड़ रुपए है। अगर इन पर ब्याज की दर 3.5 से बढ़ाकर 4 फीसदी कर दी गई तो बैंकों पर 5857 करोड़ रुपए का नया बोझ पड़ेगा। यह रकम पिछले वित्त वर्ष 2009-10 में बैंकों के शुद्ध लाभ का करीब 11 फीसदी बैठती है। लेकिन बहुत मुमकिन है कि व्यवहार में बैंकों के लिए यह नुकसान के बजाय फायदे का सौदा बन जाए।
देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई (भारतीय स्टेट बैंक) के चेयरमैन प्रतीप चौधुरी का कहना है, “पब्लिक के पास लगभग 9 लाख करोड़ रुपए कैश के रूप में पड़े हुए हैं। अगर बचत खातों पर ब्याज की दर थोड़ी आकर्षक हो गई तो इसका बड़ा हिस्सा बैंकिंग सिस्टम में आ सकता है। इससे बैंकिंग सिस्टम में तरलता बढ़ेगी और हो सकता कि जमा व उधार, किसी पर भी ब्याज दरें बढ़ाने की जरूरत न पड़े।” जाहिर है कि एसबीआई चेयरमैन के मुताबिक बचत खाते पर ब्याज दर बढ़ाने से बैंकों की कासा (चालू व बचत खाते) जमा बढ़ जाएगी जिससे उनके कुल फंड की लागत या तो स्थिर रहेगी या कम हो जाएगी।