शेयर बाज़ार में ट्रेडिंग या निवेश के लिए डीमैट एकाउंट का होना ज़रूरी है और अद्यतन आंकड़ों के मुताबिक इस समय देश में कुल लगभग 2.11 करोड़ डीमैट एकाउंट हैं। इसका एक फीसदी भी पकड़ें तो हर दिन करीब दो लाख लोग ट्रेडिंग या निवेश करते होंगे। लेकिन इनमें से बमुश्किल दो हज़ार ही होंगे जो बाकायदा सोच-समझ कर धन लगाते या निकालते हैं। बाकी ज्यादातर लोग यहां अनाड़ियों की तरह मुंह उठाए चले जाते हैं। वैसेऔरऔर भी

फाइनेंस की दुनिया में चाहे कोई योजना बनानी हो, किसी स्टॉक या बांड का मूल्यांकन करना हो या बकाया होमलोन की मौजूदा स्थिति पता करनी हो, हर गणना और फैसला हमेशा आगे देखकर किया जाता है, पीछे देखकर नहीं। पीछे देखकर तो पोस्टमोर्टम होता है और पोस्टमोर्टम की गई चीजें दफ्नाने के लिए होती हैं, रखने के लिए नहीं। इसलिए बस इतना देखिए कि आपके साथ छल तो नहीं हो रहा है। भरोसे की चीज़ पकड़िए औरऔरऔर भी

स्वार्थों का जमावड़ा है बाज़ार। तगड़ी मारामारी। किस्मत नहीं, अक्ल का खेल चलता है। जिसमें जितना हुनर, जितनी बुद्धि, जितनी जानकारी, जितनी सावधानी, वह उतना ही कामयाब। लेकिन किताबी ज्ञान भी नहीं चलता। मने बद्धू आवड़ेछे (एमबीए) का गुरूर नहीं चलता। समझ व्यावहारिक होनी चाहिए। बहुत से एमबीए यहां फेल हो जाते हैं। एक बात मन में कहीं गहरे बिठा लें कि पैसा बनाने का कोई शॉर्टकट नहीं है। पैसा या धन समाज की तरफ से सदियोंऔरऔर भी

लंबे दौर में अच्छे-बुरे का लॉजिक जरूर चलता होगा, लेकिन छोटे समय में शेयर बाज़ार में केवल एक लॉजिक चलता है। वो यह कि डिमांड ज्यादा है कि सप्लाई। इसी के जुड़ा है कि लालच ज्यादा है कि डर। अगर डिमांड या लालच का पलड़ा भारी है तो शेयर के भाव बढ़ेंगे। अगर डर के चलते लोग निकल रहे हैं और सप्लाई ज्यादा है तो शेयर के भाव गिरेंगे। समझदार ट्रेडर इसी नापतौल के बाद दांव चलतेऔरऔर भी

जिस तरह सियारों के झुंड में पड़ा शेर सियार नहीं बन जाता, कौओं के झुंड में फंसा हंस कौआ नहीं बन जाता, वैसे ही निवेश-निवेश के शोर में आम भारतीय निवेशक ट्रेडर से निवेशक नहीं बन सकता। अभी भारतीय कॉरपोरेट सेक्टर की जो स्थिति है, उसमें उसे ऐसा बनना भी नहीं चाहिए। पांच साल के ऊपर का निवेश किसी म्यूचुअल फंड की लांग टर्म इक्विटी स्कीम में और उससे पहले शुद्ध ट्रेडिंग। आज क्या हैं ट्रेडिंग केऔरऔर भी

शेयर बाज़ार के मंजे हुए ट्रेडरों की बात अलग है। लेकिन उन लोगों के लिए, जिन्होंने शेयर बाज़ार में अभी-अभी ट्रेडिंग शुरू की होती है, स्टॉप लॉस लगते ही जैसे कलेजे से एक कतरा कटकर नीचे गिर जाता है। लगता है कि किसी ने सरे-राह जेब काट ली। हालांकि स्टॉप लॉस किसी भी ट्रेडर के जीवन का एक अपरिहार्य हिस्सा है। गिरते हैं घुड़सवार ही मैदान-ए-जंग में। लेकिन स्टॉप लॉस को लेकर मन में कोई खांचा फिटऔरऔर भी

निफ्टी को आज बाधा का सामना कर पड़ सकता है। पहली बाधा 5970 पर है। वहां भी क्लेश खत्म नहीं होगा। 6000 तक पहुंचना आसान नहीं है। इसलिए आज करेक्शन या गिरावट का अंदेशा है। फिर भी अगर निफ्टी 6000 का स्तर पार कर गया तो अगली बाधा उसे 6025 पर झेलनी पड़ेगी। अगले हफ्ते मंगलवार को रिजर्व बैंक बताएगा कि वह देश में औद्योगिक निवेश को बढ़ाने के लिए ब्याज दरों को घटाना सही मानता हैऔरऔर भी

यकीन नहीं आता। लेकिन कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय की तरफ से निवेशकों को पूंजी बाज़ार में पारंगत बनाने के लिए जारी 156 पेज की नई किताब के पेज नंबर 84 पर बताया गया है कि, ‘भारतीय बाज़ार में केवल रिटेल निवेशकों को ही डे-ट्रेड की इजाज़त है।’ डे ट्रेडिंग का मतलब शेयरों की उस खरीद-फरोख्त से है, जिन्हें दिन के दिन में निपटा लिया जाता है। बाज़ार बंद होने से पहले ही सारी पोजिशंस काट ली जाती हैं।औरऔर भी

तीर ठीक निशाने पर। गुरुवार को निफ्टी बड़े आराम से 5850 का स्तर पार कर गया। वजह है इस साल भी अच्छे मानसून की अच्छी संभावना और विदेशी बाज़ारों में फ्यूचर्स की शुरुआती बढ़त। एस एंड पी 500 और डाउ जोन्स दोनों ही बढ़कर बंद हुए हैं। विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने अपने यहां कल 630.47 करोड़ रुपए की शुद्ध खरीद की, जबकि म्यूचुअल फंडों व बीमा कंपनियों समेत घरेलू संस्थाओं की शुद्ध बिक्री 715.11 करोड़ रुपएऔरऔर भी

बुधवार को बाजार सुबह से बढ़ना शुरू हुआ तो शाम तक बढ़ता ही गया। इसमें देश की किसी घटना, वाकये या फैसले का नहीं, बल्कि विदेशी स्थितियों का योगदान था। अमेरिका के डाउ जोन्स सूचकांक का अब तक की सबसे ऊंची चोटी पर पहुंचना बहुत बड़ी बात है। यूरोप में भी शेयर बाजार 2008 के क्रैश के बाद नई ऊंचाई पर हैं। ऐसे खुशनुमा माहौल में आज भी तेज़ी के बने रहने का अनुमान है। हालांकि मामलाऔरऔर भी