गिरें तो वहीं से उठें
आदमी को वहीं से उठना चाहिए जहां वह गिरता है। जीवन में यही नियम लागू होता है। जो गिरते कहीं और हैं और उठना कहीं और से चाहते हैं वे कभी खड़े नहीं हो पाते, दौड़ना तो बहुत दूर की बात है।और भीऔर भी
आदमी को वहीं से उठना चाहिए जहां वह गिरता है। जीवन में यही नियम लागू होता है। जो गिरते कहीं और हैं और उठना कहीं और से चाहते हैं वे कभी खड़े नहीं हो पाते, दौड़ना तो बहुत दूर की बात है।और भीऔर भी
समय का अपना चक्र होता है। जो इसे पकड़ नहीं पाते, इसके हिसाब से चल नहीं पाते, वे जीवन की बहुत सारी खुशियों से महरूम रह जाते हैं। देर से सोकर उठनेवाले कभी भी सूर्योदय का आनंद नहीं उठा पाते।और भीऔर भी
ऊंचा उठने की एक सीमा होती है। उसके बाद ठहरकर अगल-बगल बढ़ना होता है। फिर एक से अनेक होकर विस्तार का सिलसिला चलता है। प्रकृति से लेकर विचार व रचना तक यही होता है। समझ लें तो अच्छा है।और भीऔर भी
जिंदगी में हताश होकर गिरना बहुत आसान है। लेकिन यह निर्जीव पत्थर का स्वभाव है, जिंदा इंसान का नहीं। हम किसी लिखी-लिखाई स्क्रिप्ट के पात्र भी नहीं हैं। निमित्त या कठपुतली नहीं है हम। सजीव हैं हम।और भीऔर भी
© 2010-2020 Arthkaam ... {Disclaimer} ... क्योंकि जानकारी ही पैसा है! ... Spreading Financial Freedom