बढ़ना-ठहरना

ऊंचा उठने की एक सीमा होती है। उसके बाद ठहरकर अगल-बगल बढ़ना होता है। फिर एक से अनेक होकर विस्तार का सिलसिला चलता है। प्रकृति से लेकर विचार व रचना तक यही होता है। समझ लें तो अच्छा है।

1 Comment

  1. विस्तार दोनों प्रकार से होता है, थोड़ा उठकर फैलना पड़ता है।

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