एमआरपीएल की व्यथा-कथा

एमआरपीएल (मैंगलोर रिफाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड) ने कल ही अपने तिमाही नतीजे घोषित किए हैं और ये नतीजे काफी अच्छे रहे हैं। कंपनी का 13,964 करोड़ रुपए का विस्तार कार्यक्रम भी समय से आगे चल रहा है। फिर भी उसका शेयर दो फीसदी से ज्यादा गिरकर एनएसई (कोड – MRPL) में 82.30 रुपए और बीएसई (कोड – 500109) में 82.50 रुपए पर बंद हुआ। पिछले चार महीने से वो 75 से 85 रुपए के बीच डोल रहा है। लेकिन जानकारों की मानें तो इसमें अब निर्णायक चाल आनेवाली है। कुछ अच्छी खबरें भी इसकी मूल कंपनी ओएनजीसी घोषित करनेवाली है जिससे इसका स्टॉक 120 रुपए तक जा सकता है। अभी अगर यह शेयर गिरा हुआ है तो इसलिए कुछ ऑपरेटरों ने इसे बटोरने के लिए दबाकर रखा हुआ है।

सितंबर 2010 की तिमाही में कंपनी का शुद्ध लाभ पिछले साल की सितंबर तिमाही से 57 फीसदी बढ़कर 281.57 करोड़ रुपए हो गया है, जबकि ठीक पिछली जून 2010 की तिमाही से तो यह करीब दस गुना है क्योंकि तब इसका शुद्ध लाभ 28.46 करोड़ रुपए ही था। उसका पिछले बारह महीने (टीटीएम) का ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) 4.69 रुपए है और उसका शेयर इस समय 17.58 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। उसकी बुक वैल्यू 33.65 रुपए है। इस लिहाज से एमआरपीएल को बहुत सस्ता शेयर नहीं माना जा सकता। लेकिन भावी संभावनाएं ही इसका असली दम हैं और शेयरों में निवेश आज की नहीं, कल ही स्थिति को सोच-समझकर किया जाता है।

इस कंपनी की गाथा भी बड़े उतार-चढ़ाव वाली रही है। कभी यह आदित्य बिड़ला समूह और सरकारी कंपनी हिंदुस्तान पेट्रोलियम (एचपीसीएल) का संयुक्त उद्यम हुआ करती थी। इसके प्रवर्तकों में आदित्य बिड़ला समूह की तीन कंपनियां – इंडियन रेयॉन, ग्रासिम इंडस्ट्रीज और इंडो गल्फ फर्टिलाइजर्स शामिल थीं। 1988 से 1999 तक ठीकठाक चली। इस बीच 1993 में डिबेंचरों के पब्लिक इश्यू से 1143 करोड़ रुपए भी जुटाए। लेकिन साल 2000 में वह घाटे में आ गई। सब कुछ स्वाहा हो गया तो उसे 2003 में सरकारी कंपनी ओएनजीसी के हवाले कर दिया गया है। आदित्य बिड़ला समूह के सारे शेयर ओएनजीसी ने खरीद लिए। एमआरपीएल तब से ओएनजीसी की सब्सिडियरी बन गई।

ओएनजीसी ने साल भर के भीतर ही इसका कायाकल्प कर दिया। 2004-05 में एमआरपीएल ने ओएनजीसी को उसकी करीब 37 फीसदी इक्विटी के एवज में 125.54 करोड़ रुपए का लाभांश दिया। 2005-06 में यह लाभांश 87.87 करोड़ और 2006-07 में 100.43 करोड़ रुपए रहा। ओएनजीसी ने इसे खरीदने पर लगभग 600 करोड़ रुपए लगाए थे और उसे यह निवेश चंद सालों में लाभांश के रूप में वापस मिल गया। एमआरपीएल भी अब सरकार की प्रथम श्रेणी की मिनी नवरत्न कंपनी बन गई है।

अभी एमआरपीएल की इक्विटी 1752.60 करोड़ रुपए है जो दस रुपए अंकित मूल्य के शेयरों में विभाजित है। इसका 71.63 फीसदी हिस्सा ओएनजीसी और 16.96 फीसदी हिस्सा हिंदुस्तान पेट्रोलियम के पास है। एफआईआई के पास इसके 1.14 फीसदी और डीआईआई के पास 2.12 फीसदी शेयर हैं। इस तरह कंपनी के 91.58 फीसदी शेयर तो प्रवर्तकों या संस्थाओं के पास हैं। हालांकि उसके 5,46,240 छोटे शेयरधारक हैं जिनका निवेश इसमें एक लाख रुपए से कम है। ऐसे निवेशकों के पास कंपनी की कुल 7.18 फीसदी इक्विटी है।

मौजूदा स्थिति में यही कहा जा सकता है कि एमआरपीएल मरकर जिंदा हुई कंपनी है। इसमें फिलहाल कोई जोखिम नहीं है। कंपनी की विस्तार योजनाएं शानदार हैं। सब कुछ पटरी पर है। इसमें लंबे समय के लिए निवेश किया जा सकता है। बाकी इतना हमेशा ख्याल रखें कि पैसा आपका है। इसलिए निवेश का फैसला भी खुद पूरी जिम्मेदारी के साथ सब कुछ ठोंक बजाकर करें।

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